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कृष्ण .
प्राचीन चरित्रकोश
कृष्ण
इसी समय इंद्रप्रस्थ से युधिष्टिर ने दूतद्वारा अपना नाते भेजा। किन्तु कुछ लाभ न हुआ। कृष्ण आयेगा, इस राजसूय यज्ञ का विचार कृष्ण को कथन कर, उसको | लिये धृतराष्ट्र ने हस्तिनापुर से वृकस्थल तक मार्ग सुशोभित पाचारण किया। कृष्ण के सामने प्रश्न निर्माण हुआ कि, | किया था (म. उ. ७१.९३)। दुर्योधन ने कृष्ण को किस को अग्रस्थान दे। उद्धव ने, प्रथम इंद्रप्रस्थ जा कर भोजन का निमंत्रण दिया। कृष्ण ने उसे अमान्य किया पश्चात् जरासंध के यहाँ जाने की मंत्रणा, कृष्ण को दी।। (म. उ. ८९.११)। वहाँ दिये गये भाषण से कौरवों के कृष्ण ने स्वयं इंद्रप्रस्थ जा कर, जरासंध के बंदिस्त राजाओं | सब दुष्कृत्य स्पष्ट हुए । सब सदस्यों को पांडवों का पक्ष को तुरन्त ही मुक्त करने का आश्वासन दूतद्वारा भेजा। न्यायसंगत प्रतीत हुआ। भीष्म द्रोणादिक भी कृष्ण के
राजसूय यज्ञ के लिये भी, जरासंध जैसे प्रतापी प्रति- | समर्थक बने । भीष्म, द्रोणाचार्य, गांधारी, धृतराष्ट्र, कण्व, स्पर्धी का विनाश आवश्यक था । इसलिये ब्राह्मण वेष में | नारदादि ने अनेक प्रकार से दुर्योधन को समझाया। कृष्ण, अर्जुन तथा भीम जरासंध के पास उपस्थित हुए। | किन्तु वह नहीं माना। वहाँ गदायुद्ध में भीमद्वारा जरासंध का वध हुआ। सभा की शांति नष्ट होते देख, दुःशासन ने दुर्योधन उसके पुत्र को गद्दी पर बिठा कर, ये सब लौट आये (म. | को इशारे से बाहर जाने को कहा। भीष्म ने इस समय, स. १२.२२)। .
'क्षत्रियों का विनाश काल समीप है,' यों प्रकट - शिशुपालवध--करुषाधिप. पौंड्रक वासुदेव, तथा | किया। दुर्योधन का कृष्ण को बंदिस्त करने का विचार था, करवीराधिप शृगाल यादव का कृष्ण ने वध किया। भीष्म | जो सात्यकि ने सभा में प्रकट किया। उल्टे दुर्योधन को ने राजसूय यज्ञ में कृष्ण को अग्रपूजा का मान दिया। ही पांडवों के यहाँ बाँध कर ले जाने का सामर्थ्य कृष्ण ने इस कारण शिशुपाल ईष्या से भड़क उठा। तब सुदर्शन | विदित किया । तब धृतराष्ट्र, विदुरादि न दुय चक्र से कृष्ण ने शिशुपाल का वध किया। यज्ञसमाप्ति के |
पर्याप्त निर्भर्त्सना की । कृष्ण ने इस समय अपना उग्र : बाद यह द्वारका गया। बाद में शाल्व, दंतवक्र तथा विश्वरूप प्रकट किया । सब भयभीत हुये। कृष्ण शांति से विदूरथ का भी वध कृष्ण ने किया।
सभागृह के बाहर आया । दुर्योधन के न मानने की बात भारतीययुद्ध-पांडव वनवास में थे। उस समय उनके | धृतराष्ट्रद्वारा विदित होते ही कृष्ण ने हस्तिनापुर छोडा - यहाँ कृष्ण गया था। कृष्ण ने कहा, 'मेरे होते हुए (म. उ. १२९)। बाहर आकर कर्ण को उसका पांडवों 'तक्रीडा असंभव हो जाती थी। कुछ दिन वहीं रह कर,
से भ्रातृसंबंध कथित कर, उसे पांडवपक्ष में आने का . सुभद्रा तथा अभिमन्यु को लेकर यह द्वारका गया (म.
आग्रह किया। उसके न मानने पर, कृष्ण उपप्लव्य व. १४.२४)। पांडव काम्यकवन में थे। कृष्ण सत्यभामा | चला आया। युद्धार्थ तैयारियाँ प्रारंभ हुई (म. उ. के साथ वहाँ गया था। कुछ दिन वहाँ रह कर द्वारका
| १३८-१४१)। लोटा (म. व. १८०.२२४)। दुर्योधन के कथनानुसार | कृष्ण ने धृष्टद्युम्न तथा सात्यकि की सहायता से पांडव दुर्वास पांडवों के यहाँ गया था। तब द्रौपदी की सहायता सेना की बलिष्ठ सिद्धता की (म. उ. १४९.७२)। कर कृष्ण ने दुर्वास ऋषि को तुष्ट किया (म. व. परि. | अर्जुन की प्रार्थना पर कृष्ण ने उसका रथ दोनों सेनाओं १.२५)। अभिमन्यु के विवाहार्थ कृष्ण उपप्लव्य गया के बीच ला कर खडा किया । आप्तजन तथा बाँधवों के था । तब सम्मिलित राजाओं की उपस्थिति में इसने संहार का चित्र सामने देखकर अर्जुन युद्धनिवृत्ति की पांडवों के हिस्से का प्रश्न उठाया । दुर्योधन को बातें करने लगा। कुष्ण ने उसे 'गीता' सुनाकर, पुनः अमान्य है यह जान कर, इसने उधर जाने का निश्चय | युद्धार्थ सिद्ध किया (म. भी. २३-४०)। यह दिन किया (म. वि. ६७)। अर्जुन तथा दुर्योधन कृष्ण के | मार्गशीर्ष शुद्ध त्रयोदशी था। समीप युद्धार्थ सहायता माँगने गये। दुर्योधन की माँग के ___ कृष्ण ने पांडवों को महान् संकटों से बचाया। रथ के अनुसार उसे यादव सेना दी। स्वयं अर्जुन के पक्ष में | अश्वों की सेवा की। उन्हें पानी तक पिलाया (म. गया । युद्ध में प्रत्यक्ष भाग न लेने की कृष्ण की प्रतिज्ञा द्रो. १७५.१५)। भगदत्त के वैष्णवास्त्र से अर्जुन की थी। फिर भी अर्जुन ने उसे ही माँग लिया (म. उ.७)। रक्षा की (म. द्रो. २८.१७)। अभिमन्युवध के बाद,
इस प्रकार युद्ध की तैयारियाँ कौरव-पांडव कर रहे थे। | सुभद्रा का सांत्वन किया (म. द्रो. ५४.९)। भूरिश्रवा को तब युधिष्ठिर ने धृतराष्ट्र के यहाँ कृष्ण को मध्यस्थ के | अन्तिमसमय में स्वर्ग की जानकारी दी (म. द्रो. ११८.
प्रा. च. २१]
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