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कृष्ण
प्राचीन चरित्रकोश
का अध्ययन किया (ब्रह्म. १९४ २१ ह. बं. २. ३२० भा. १०. ४५. ३६; विष्णु. ५. २१ ) । सांदीपनि ने इन्हें गायत्री मंत्रोपदेश देने का भी उल्लेख है (दे. भा. ४. २. १ ) । इसके उपनयन प्रसंग में देव, नंद, यशोदा तथा विधवा कुन्ती उपस्थित थीं ( ब्रह्मवै. ४. १०१ ) । इस संजय कृष्ण की आयु १२ वर्षों की थी ( भा. ४. दे. २४) । गुरुदक्षिणा के रूप में सांदीपनि का, सूत पुत्र दत्त कृष्ण 'ने सजीव कर दिया (पद्म. २. २४६ ब्रह्म. १९४. (२१)। वहीं पंचों का वध कर के विख्यात पांचजन्य शंख कृष्ण ने प्राप्त किया (भा. १०.४५.४२; म. भी. २२. १६ ) ।
विवाह -- इसने शिशुपाल का पराभव कर के, भीष्मक राजा की कन्या रुक्मिणी का हरण किया । स्यमन्तकमणिप्रसंग में, जांबवती तथा सत्यभामा से इसका विवाह हुआ । इसी समय सत्राजित का वध करनेवाले शतधन्यन् का
कृष्ण
भवती को पुत्र प्राप्ति हो इस हेतु से कृष्ण ने महादेव की तपस्या कर के, उससे वर प्राप्त किया (म. अनु. ४६ ) |
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एक बार यह अपनी स्त्रियों से क्रीड़ा कर रहा था । तब नारद के आदेशानुसार जांबवतीपुत्र सांब वहाँ गया । उस समय कृष्ण की पत्नियों ने मद्यपान किया था । अतएव वे उस पर मोहित हो गई। तब कृष्ण ने उन्हें तत्र शाप दिया कि, 'तुम लोग चुरा ली जाओगी। किन्तु दास्यद्वारा बताये गये व्रत द्वारा तुम्हारा उदार होगा ? | इसने सांब को शाप दिया कि, तुम कुष्ठरोगी बनोगे (पद्म. सृ. २३; स्कंद्र. ७.१.१०१ ) ।
मथुरा में यशोदा की कन्या एकानंगा के साथ रामकृष्ण की भेंट हुई। इसके लिये ही कृष्ण ने कंस का वध किया ( म. स. १.२१.१४२८ - १४३० ) । बाणासुर के. हज़ार
इसने वध किया । कुछ काल के बाद, कृष्ण कुछ यादवों हाथ भी इसने तोड़े (ब्रह्मांड. ३.७२.९९-१०२; वायु.
सह पांडवों से मिलने के लिये इन्द्रप्रस्थ गया | तब चातुर्माससमाप्ति तक पांडवों ने इसे वही रख लिया । उस काल में इसका कालिंदी से विवाह हुआ। बाद में द्वारका जाने पर, मित्रबंदा, सत्यानाशशिती), भद्रा, कैकेयी तथा लक्ष्मणा (मुलक्षणा ) का स्वपराक्रम से हरण कर के इसने विवाह किया ( भा. १०.५८; ९०.२९ - ३० ) । इसके अष्टनायिकाओं में सुलक्षणा, नामजिती तथा सुशीला थी। सुमित्रा, शैव्या, सुभीमा, मात्री, कौसल्या, विरजा (पद्म. सु. १३. १५५-१५६ ) अनुविंदा तथा सुनंदा यो भिन्न नाम भी प्राप्त हैं (पद्म. पा. ७०-३३ ) । इन में कई नाम गुणदर्शक दीखते हैं।
कृष्ण ने नरकासुर का वध किया । उसके कारागृह में सोलह हजार स्त्रियाँ थीं। उन्हें मुक्त कर कृष्ण ने उनसे विवाह किये (भा.१०.५९.३३; विष्णु . ५.२९.३१ ) । इस प्रकार उनके उद्धार का श्रेय भी संपादन किया। एक ही समय अनेक रूप धारण करने का कृष्ण में सामर्थ्य था ।
नरकासुर का वध कर के खौटते समय, कृष्ण ने इंद्र का पारिजात वृक्ष तोड़ दिया। तब क्रोधित हो कर इंद्र ने कृष्ण से युद्ध किया परंतु इन्द्र का बस नहीं चला । तब कृष्ण ने उससे कहा कि, जतक मैं पृथ्वी पर हूँ, तब तक यह वृक्ष यहीं रहने दो | बाद में उसे ले जाना ( पद्म, ३. २४८-२४९) ।
कृष्ण के कुल अस्सी हजार पुत्र थे ( पद्म. स. १३) । पुत्रों के नाम उनकी माताओं के चरित्र में देखिये ।
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८८.९८ - १०१ ) ।
इसके अधों के नाम शैव्य, सुत्रीय मेषपुष्प तथा बलाहक थे (म. आय.१.४.३४२४ ) | पांडवों के राजसूप तथा अधमेथ में यह उपस्थित था (म. आय. ८. ९ ) ।
जरासंध के कारण जरासंध क्रुद्ध हुआ ।. कंस जरासंध का दामाद था उस समय जरासंघ सम्राट था। जरासंध के कारागार में हजारों नृप बंदिवान थे। उन्होंने भी कृष्ण के पास अपनी मुक्तता के लिये संदेश भिजवाया था ! कृष्ण ने यादवसभा में इस प्रश्न को उठाया । जरासंध ने मथुरा पर आक्रमण किया । कई राजा उसके सहायक थे। कृष्ण ने उसका सत्रह बार पराजय किया । कालयवन का भी जरासंध ने सहाय्य लिया । कालयवन ने मथुरा को चारों ओर घेरा डाला । कृष्ण, इस समय अगतिक हो कर भागते भागते, मुचकुंद सोया था वहाँ आया । पीछे कालयवन भी आ पहुँचा। कृष्ण से आँखों से ओझल हो गया। मुचकुंद धन द्वारा मारा गया।
जरासंध के आक्रमण के भय से कृष्ण मथुरा छोड़ कर सुदूर द्वारका में आ बसा वहाँ इसने आनी राजधानी बसायी । जरासंध भी द्वारका पहुँचा । तब कृष्ण प्रवणगिरि में जा छिना जरासंध ने यहाँ भी आग लगा दी तथा वह छोटा कृष्ण बच गया। कुछ खानों पर प्रवणगिरि की जगह गोमंतक का उल्लेख हैं।
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