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कृष्ण
प्राचीन चरित्रकोश
वसुदेवदेवकी को कारागार में रखा । देवकी के सात पुत्रों को क्रम से उसने पटक मारा कृष्ण आठवाँ पुत्र है, जिसका जन्म विक्रम संवत् के अनुसार, भाद्रपद वद्य अष्टमी की मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र पर हुआ। वह दिन बुधवार था ( निर्णय सिंधु ) ।
वसुदेव उग्रसेन का मंत्री था। उग्रसेन को बंदिस्त कर के कंस राजगद्दी पर बैठा था। अतः कंस पहले से वसुदेव को प्रतिकूल था । वसुदेव के देवकी से उत्पन्न पुत्रों को ही नहीं, बल्कि अन्य स्त्रियों से प्राप्त पुत्रों को भी कंस द्वारा मारे जाने का उल्लेख, भागवत को छोड़ कर, अन्य शुराणों में मिलता है (वायु. ९६.१७३ १७८)।
वसुदेव ने कृष्ण की रक्षा के लिये, गोकुल में नंद के घर पहुँचाया। गोकुल से यशोदा की कन्या ले कर वसुदेव पुनः कारागार में उपस्थित हुआ । कंस ने उस धन्या को भी मारने का यत्न किया, किन्तु वह हाथ से छूट गयी । यहीं कंस को पता लगा कि, वमुदेवसुत पैदा हो कर सुरक्षित स्थान पर पहुँच गया है।
नन्दकुलोपाध्याय गर्गमुनि ने गुप्तरूप से कृष्ण का जातक तथा नामकरण संस्कार किया। इसी समय कृष्ण के जीवन कृत्यों का भविष्यकथन भी किया।
कृष्ण
बाललीला प्रथमं फंस ने कृष्णधार्थ पूतना भेजी, जो उसकी बहन वा दाई थी गोकुल के बालकों को । विषयुक्त स्तनपान करा कर मारने का क्रम पूतना ने बारी रखा। कृष्ण को स्तनपान कराने पर कृष्ण ने उसका पूरा सहू चूस लिया तथा उसके प्राण लिये ।
पास समाप्त होती है । पूतना, धेनुक, प्रलंब, अघ इन का वथ, इन्द्रगर्वहरण, कालियामर्दन, दायामिभक्षण, गोवर्धनोद्वार, रासक्रीड़ा तथा कंसवध ये घटनाएं सब स्थानों में वर्णित हैं, केवल क्रम में भिन्नता है । कहीं संक्षेप में तथा कहीं विस्तार से वर्णन है । विष्णुपुराण में संक्षेप में बाललीला का वर्णन आया है।
विशेषतः भागवत, ब्रह्मवैवर्त, हरिवंश एवं गर्गसंहिता में कृष्ण की केवल बाललीलाओं का वर्णन है । कृष्ण का पांडवों से संबंध केवल गर्गसंहिता में ही है महाभारतवर्णित कृष्णचरित्र पुराणों में नहीं मिलता । उसका पांडवों को अप्रतिम सहाय, राजकाजकौशल्य और गीता केवल महाभारत में ही अंकित है।
बाललीला में राधाकृष्ण - संबंध वर्णन करने की ब्रह्मवैवर्त पुराण की प्रवृत्ति है । यह संबंध आध्यात्मिक माना जाता है। राधाकृष्ण विवाह ब्रह्मदेवद्वारा संपन्न हुआ था (४.१५ ) ।
कंसवध--कृष्ण की मल्लविद्या की कीर्ति सुन कर, कंस उसे अक्रूरद्वारा मथुरा ले आया । मथुरा में वसुदेव-देवकी से मिलना कंस को अप्रिय होगा यह अक्रूर द्वारा बताने पर भी आत्मविश्वास के साथ कृष्ण अपने मातापिता से मिले। शहर में घूमते समय, एक धोबी से कृष्ण 'ने कपडे लिये, एक माली ने पुष्पहार गले में डाला तथा कुब्जा ने चंदन लेप चढ़ाया। शस्त्रागार में जा कर इसने भम्य धनुष का भंग किया। यह सब देख कर कंस ने चाणूर, मुष्टिक नामक मल्लों को, कृष्ण के साथ मल्लयुद्ध करने के लिये भेजा । मैदान के द्वार पर ही, कंस द्वारा छोडे गये कुवलयापीड हाथी को कृष्ण ने सहजता से मारा। मल्लयुद्ध में चाणूर तथा तोपलक को मारा। कृष्ण के ये सब पराक्रम देख कर कंस का मस्तक चकराने लगा। कृष्ण ने उसे सिंहासन से खींच कर उसका वध किया । समुदाय ने कृष्ण की जयध्वनि की । वसुदेवदेवकी से मिल कर तथा उग्रसेन को गद्दी पर बिठा कर, कृष्ण ने मथुरा में शांति प्रस्थापित की। बलराम ने पूरे समय तक कृष्ण की साथ की ।
तृणावर्त असुर का भी, पत्थर पर पटक कर कृष्ण ने वध " किया। उसी समय यशोदा को कृष्ण के मुँह में विश्वरूपदर्शन हुआ। कार, बलासुर अघासुरादि का भी इसने वध किया । कालिया के फूकार के कारण, यमुनाजल विषयुक्त हुआ था। उसे भी मर्दन कर कृष्णने भगाया । धेनुकासुर, प्रलंत्रासुर, अरिष्ट, व्योम तथा केशि का भी कृष्ण ने वध किया । एक समय नन्द को यमुना से डूबते डूते बचाया ।
गोकुल का प्रतिवार्षिक 'इन्द्रोत्सव ' बंद कर के कृष्ण ने वहाँ गोवर्धन उत्सव का आरंभ किया । इससे इन्द्र ने कुपित हो कर गोकुल पर अतिवृष्टि की। कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत का आश्रय ले कर गोकुलवासियों को इस संकट से
शिक्षा - नंदादि गोपालों को मथुरा वा कर, तथा सत्कार कर कृष्ण ने उन्हें वापस गोल भेजा । यशोदा के सांत्वनार्थ उद्धव को गोकुल भेजा । गर्गमुनि द्वारा उपनयन संस्कारबद्ध हो कर, रामकृष्ण, काश्य सांदीपनि के यहाँ अध्ययनार्थ अवंति गये । एकपाठी होने से ६४ दिनों में ही इन्हों ने वेदों का तथा धनुर्वेद
बचाया ।
कई पुराणों में कृष्ण के बालचरित्र का ही केवल वर्णन है। यह बाला पूतनावध से प्रारंभ हो कर के शिवध के
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