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कुंभकर्ण
प्राचीन चरित्रकोश
कुंभकर्ण
थी। इसने जन्मते ही हजारों लोगों को खा डाला । तब | नौ महीने हो जाने पर भी सोया ही रहा । इसे जागृत करने इसकी शिकायत ले कर लोग इंद्र के पास गये। इंद्र ने | के लिये आये हुए लोगों ने, यह जागृत होते ही खाने क्रोधित हो कर इस पर वज्र फेंका। कुंभकर्ण हाथ पैर | के लिये मृग, महिष तथा वराह के बडे बडे ढेर इसके पटक कर और भी गर्जना करने लगा। इस कारण लोगों द्वार के पास रच दिये । अन्न की ढेरियाँ तैय्यार की। को अधिक कष्ट होने लगे। इसने ऐरावत का एक दांत रक्त, मांस तैय्यार किया। चन्दन का लेप इसके शरीर उखाडकर इंद्र पर फेंका, तथा इंद्र को रक्तरंजित कर | को लगाया । सुगंधित द्रव्य सुंघाये । भयंकर आवाज की । दिया । ब्रह्मदेव को इस बात का पता चला। तब फिर भी कुछ परिणाम नहीं हुआ। तब इसके वक्षस्थल उन्होंने लोकसंरक्षणार्थ इसे सदा निद्रित रहने का शाप | पर प्रहार करना प्रारंभ किया। इसके कान में पानी दिया। रावण की प्रार्थना पर, इसे छ: माहों में एक दिन | डालना, काट खाना आदि प्रयत्न हुए। जब इसके शरीर जागने का ब्रह्मा ने उःशाप दिया (वा. रा. यु. ६१)। पर हजार हाथी घुमाये, तब कहीं यह जागृत हुआ । कुबेर की बराबरी करने के लिये, रावणादि के साथ इसने | जम्हाई लेते हुए सामने रखी हुई सब सामग्री इसने भी गोकर्णक्षेत्र में दस हजार वर्षों तक तपस्या की। जब | भक्षण की। धीरे से लोगों ने सारा वृत्त इसे कथन ब्रह्मदेव इसे वरदान देने लगे, तो देवों ने विरोध किया। किया। तब यह तुरंत युद्ध करने के लिये ही निकला। परंतु देवों ने कहा, इसने नंदनवन के सात अप्सरायें, इन्द्र के | महोदर ने सुझाया कि, पहिले रावण की सलाह ले कर, दस सेवक, उसी प्रकार अन्य कई लोग तथा ऋषियों का | फिर युद्ध के लिये जाना अधिक योग्य रहेगा। तब यह बंधु भक्षण किया है। इसलिये इसे वर मत दो। देवों की | के पास गया । वहाँ इसने प्रथम रावण को ही उपदेश की इच्छा सफल हों, इसलिये ब्रह्मदेव ने सरस्वती को बुलाया | चार बाते सुनायीं। परंतु रावण को यह उपदेश पसंद तथा उसकेद्वारा कुंभकर्ण को उपदेश करवाया। तब इसने नहीं आया। तब रावण खुष हों, ऐसी बातें कहने का प्रारंभ दीर्घकालीन निद्रा मांगी। ब्रह्मदेव 'तथास्तु' कह कर | इसने किया। महोदर ने सुझाया कि, यदि रावण की मृत्यु चला गया। पीछे यह पछताने लगा, परंतु उसका कुछ हो गई है, यों अफवाएं चारों ओर फैला दी, तो सीता लाभ नही हुवा (वा. रा. उ. १०)।
स्वयं ही शरण आ जावेगी । तब कुंभकर्ण ने इस मार्ग का कुबेर की लंका रावण ने छीन ली। तब रावण
तिरस्कार किया तथा युद्ध का पुरस्कार किया। के साथ यह भी लंका में गया । वहाँ जाने पर यह रणांगण में दाखल हुआ। इसका प्रचंड शरीर देख विरोचनपुत्र बलि की पौत्री वज्रज्वाला से इसका | कर बंदरसेना भयभीत हो कर भागने लगी। परंतु सब विवाह हुआ (वा. रा. उ. १२)। रावण ने अपने को धीरज दे कर, अंगद ने एकत्रित किया। प्रथम इसने निद्राप्रिय बंधु के सोने की उत्कृष्ट व्यवस्था कर रखी थी। | शूल से हनूमान को आहत किया। तब अपनी सेना कों उसने विश्वकर्मा से चार कोस चौड़ा तथा आठ कोस लंबा नील ने धीरज बँधाया। ऋषभ, शरभ, नील तथा गवाक्ष एक सुंदर घर बनवाया। वहाँ यह सदैव निद्रिस्त पडा | को कुंभकर्ण ने खून की उल्टी करवाई । बंदरों से भरे वृक्ष रहता था ( वा. रा. उ. १३)। जागृत रहने पर, यह के समान कुंभकर्ण का शरीर दिखने लगा। कुंभकर्ण के द्वारा सभा में भी आता था। युद्ध होने के पहले बुलाई गई । फेंका गया शूल अंगद ने बडी युक्ति से बचा लिया, तथा एक सभा में यह उपस्थित था। वहाँ सीताहरण के | इसकी छाती पर प्रहार कर, इसे मूर्च्छित किया । होश में लिये इसने रावण को दोष दिया। फिर भी रावण से | आते ही, अंगद को कुंभकर्ण ने बेहोश किया। इसने कहा, "मैं भविष्य में सब प्रकार से तुम्हारी सुग्रीव को लेकर यह लंका की ओर चला गया। तब सहायता करूंगा (वा. रा. यु. १२)। तदनंतर अनेक | सुग्रीव ने इसके नाक, कान तोड दिये तथा वह राम के पास योद्धाओं की मृत्यु के बाद, रावण अकेला ही राम से युद्ध | लौट आया । उस विद्रूप स्थिति में भी, यह लौट आया तथा कर रहा था। तब रावण का पराभव हुआ। रणांगण से | इसने भयंकर युद्ध किया । अन्त में राम तथा लक्ष्मण के वापस आने के बाद उसे अपने बंधु का स्मरण हुआ।। साथ युद्ध करते समय अर्धचन्द्र बाण से राम ने इसके पैर उसने यूपाक्ष को कुंभकर्ण को जागृत करने के लिये भेजा। तोड़ दिये । तब इसका भयंकर शरीर भूमि पर गिर पड़ा। युद्ध के संबंध में प्राथमिक चर्चायें जिस सभा में हुई, वहाँ। फिर भी मुँह फैला कर राम की ओर सरकते हुए कुंभकर्ण उपस्थित था। तब से जो कुंभकर्ण सोया था, वह आने का यह प्रयत्न कर ने लगा। तब ऐन्द्रबाण से राम
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