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कुंभकर्ण
ने इसकी वध किया (बा. रा. यु. ६०-६७ ) । रामायण के अनुसार इसका वध राम ने किया। परंतु महा भारत के अनुसार लक्ष्मण ने किया (म. व. २७१-१७)। इसका शरीर गिरने से लंका के अनेक गोपुर भग्न हो गये ( म. व. २८६-८७ ) । इसे कुंभनिकुंभ नामक दो बलाढ्य पुत्र थे ।
प्राचीन चरित्रकोश
कुंभनाभ - कश्यप तथा दनु का पुत्र ।
कुंभनिकुंभ - कुंभकर्ण को ज्याला से उत्पन्न दो पुत्र । ये अत्यंत पराक्रमी तथा बलवान् थे। रावण ने जब इन्हें रामसेना से लड़ने के लिये भेजा, तब इन्होंने भयंकर युद्ध किया। अन्त में सुग्रीव ने कुंभ का तथा हनुमान ने निकुंभ का वध किया ( वा. रा. यु. ७५-७७ ) ।
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कुंभमान कश्यप तथा दनु का पुत्र । कुंभयोनि- अगस्त्य ऋषिका नामांतर ।
कुंभरेतस्-- भारद्वाज अभि तथा बीरा का पुत्र । इसे शरयू नामक स्त्री तथा सिद्धि नामक पुत्र था । वीर, रथप्रभु तथा रथाध्वान ये नाम इसीके ही है। यह एक प्रकार का अनि है (म.व. २०९)।
कुंभहनु -- प्रहस्त का सचिव । इसका वध तार नामक बंदर ने किया (बा. रा. यु. ५८ ) ।
कुंभांड - बाणासुर का मंत्रि । बलि के मंत्रियों में श्रेष्ठ (नारद. १.१० ) । चित्ररेखा का पिता ( भा. १०.६२ ) । बलराम के साथ इसका युद्ध हो कर उसीमें इसकी मृत्यु हुई ( भा.. १०.६३) ।
कुरुश्रवण
कुंभोदर - राम को तीर्थयात्रा करवानेवाला एक ऋषि (आ. रा. याग. ५-६ ) ।
वाहिनी के पुत्र के नाम:- अश्ववत् ( अविष्ठत् ), अभिवत्, चित्ररथ, मुनि तथा जनमेजय (म. आ. ८९.४४ ) । २. द्रोणाचार्य को भी यह नाम दिया जाता है (म. भागवत के मत में परीक्षित, सुधन, जह तथा निषयाव जह्न । द्रो. १५९.४ ) परंतु मत्स्य में निषधाश्व के बदले प्रजन है ( मत्स्य. ५० २३ ) | भविष्य मत में यही अहीनजपुत्र है। वैदिक वाङ्मय में कुरु का उल्लेख है (जै. उ. बा. १.३.८.१ ) । इससे सुप्रसिद्ध कुरुवंश प्रारंभ हुआ। इसके वंशजों को कौरव कहते हैं । इसीकी तपश्चर्या से कुरुजांगल प्रदेश कुरुक्षेत्र नाम से प्रसिद्ध हुआ ( म. आ. ८९.४३) । कुरुक्षेत्र की पवित्रता तथा वहाँ का सदाचार बेदकाल से प्रसिद्ध है । उपनिषदों में कुरुपांचाल देश के तत्त्वज्ञ का निर्देश आया है ( कौ. उ. ४.१. बृ. उ. ३.१.१,६.१.९) कुरुक्षेत्र का माहात्म्य अनेक पुराणों में हैं। यश, उशीनरसहित कुरुपांचाल मध्यप्रदेश है (पं. बा. ८.१४ ) ।
२. माल्यवान् राक्षस की पन्या अनला को विधायसु राक्षस से उत्पन्न कन्या । मधु नामक राक्षस ने इसका हरण किया तथा इससे विवाह किया। उससे इसे उत्पन्न पुत्र लवणासुर नाम से प्रख्यात है।
कुयव-कुल्स के लिये इसका वध इन्द्र ने किया (ऋ २.१९.६ ) ।
कुयवाच इन्द्र ने दुर्योग के लिये इसका वध किया (ऋ. १.१७४.७ ) ।
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४. पुष्पकाको विवाऋषि से उत्पन्न कन्या लिंग १.६२ ) ।
५. अंगारपर्ण गंधर्व की स्त्री ।
६. चित्ररथ गंधर्व की स्त्री (म. आ. १५८.२१ ) ।
कुरु
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(स्वा प्रिय) आमीम को पूर्वचिती से उत्पन्न सातवाँ पुत्र इसकी पत्नी मेरुसन्या नारी है। इसका वर्ष इसीके नाम से प्रसिद्ध है ( भा. ५.२.१९ - २१ ) ।
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२. (सो. अज. ) संवरण को तपती से उत्पन्न पुत्र । इसकी पत्नियों के नाम शुभांगी तथा वाहिनी । शुभांगी के पुत्र का नाम विडूरथ ( म. आ. ९०-४१ ) ।
२. दंडी मुंडीश्वर नामक शिवावतार का शिष्य । कुंभीनसी--बलि दैत्य की कन्या तथा बाणासुर की श्रौत देखिये) । भगिनी ( मत्स्य. १८७.४१ ) ।
२. सुमाली राक्षस को केतुमती से उत्पन्न चार कन्याओं में कनिष्ठ रावणमाता कैकसी की यह भगिनी थी।
३. यह एक विशिष्ट लोगों का नाम है ( देवभाग
कुरूंग - देवातिथि का ने इसके दान की प्रशंसा की है । यह तुर्वसों का राजा था (ऋ. ८.४.१९ ) । कदाचित् यह कुरुवंश का होगा (नि. ६.२२ ) ।
कुरुवत्स - ( सो.) भविष्य के मत में नवरथपुत्र । कुरुवश - (सो. क्रोष्टु. ) मधुराजा का पुत्र । इसका पुत्र अनु (भा. ९.२४.५) ।
कुरुश्रवण त्रासदस्यव - त्रसदस्यू का पुत्र । इसके दान की कवम ऐश ने प्रशंसा की है (ऋ. १०.३३.४-५) । इसी सूक में, मित्रातिथि की मृत्यु के बाद उसके पुत्र उपमश्रवस् का समाचार लेने के लिये कवप ऐल्श के आने का निर्देश है | वास्तविक रूप से, इस सूक्त में आये
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