________________
कुबेर
प्राचीन चरित्रकोश
कुब्जा
कुबेर-वैवस्वत मन्वन्तर के विश्रवा ऋषि का पुत्र । पर्वत है। उसकी तराई में मानससरोवर है। वहाँ सरयू इसकी माता का नाम इडविड़ा अथवा मंदाकिनी दिये गये है। नदी का उद्गम होता है। उसके किनारे वैभ्राज नामक एक (विश्रवस् देखिये)। यह पुलस्त्य तथा गो का पुत्र था (म. दिव्य वन है। वहाँ प्रहेतृपुत्र ब्रह्मधान नामक एक राक्षस व. २५८.१२)। इस लिये इसे वैश्रनण तथा ऐडविड़ कहा रहता है। वह कुवेर का सेवक है (वायुः ४७.१८)। गया है (म. उ. १३६; श. ४६.२२)। ब्रह्मा ने इसे राक्षस- यह उस प्रदेश में रहनेवाले यक्ष, राक्षस, पौलस्त्य तथा गणोंसहित लंका, पुष्पक विमान, यक्षों का आधिपत्य, राज- अगस्ति लोगों का राजा तथा अलकाधिप है (वायु. राजत्व, धनेशत्व, अमरत्व, लोकपालत्व, रुद्र से मित्रता तथा ६९.१९६)। यह सूर्य के उत्तर की ओर रहता है (भवि. नलकूबर नामक पुत्र आदि दिये। उनमें से रावण ने लंका ब्राह्म. १२४)। अर्जुन को शिवदर्शन होने के बाद, वरुण तथा पुष्पक ले लिये (म. व. २५८-२५९)। लंका इसने | के समान इसने भी अर्जुन को दर्शन दिया तथा एक अस्त्र रावण को स्वयं दे दी । पुष्पक विमान, रावणद्वारा युद्ध में दिया (म. व. ४२.७.) । द्रौपदी की प्रार्थनानुसार, इसे पराजित कर के लिया गया (वा. रा. अर. १५.२२)। भीम ने कुवेर के उपवन के सरोवर में खिले कमल, वहाँ धनपतित्व के लिये तपस्या कर के, यह कुबेर हो के राक्षसों का कथन न मानकर ले लिये। कुवेर ने इसे गया। जिस स्थान पर इसने तपस्या की, उस स्थान पर नहीं रोका (म. व. १५२)। जब इसे पता चला कि, कौवेरतीर्थ बना (म. श. ४६.२२)। इस स्थान पर | भीम ने मणिमान का वध किया तब यह क्रोधित हो इसकी मूल नगरी अलकावती है। इसी तप के गया, तथा सेनासहित पांडवों के पास गया। एक दूसरे कारण उपरोक्त वस्तुयें इसे प्राप्त हो गई (शिव, रुद्र. को देख कर पांडव तथा यह आनंदित हुए। कुबेर ने १.१९)। पार्वती की ओर आँखे मिचमिचा कर देखने पांडवों को योग्य उपदेश किया तथा कहा कि, इन्द्र अर्जुन से इसकी बॉई आँख नष्ट हो गई, तथा दाहिनी पीली पड | की प्रतीक्षा कर रहा है (म. व. १५९)। पूर्वजन्म में गई । इस लिये इसे एकाक्षपिंगलिन् नाम प्राप्त हुआ (वा. रा. यह कां पिल्य नगरी में अग्निहोत्री यज्ञदत्त का गुणनिधि उ. १३)। इसे मणिग्रीव तथा नलकूबर नामक दो पुत्र थे | नामक पुत्र था (शिव. रुद्र. स. १९.)। ब्राह्मण क्षत्रिय (भा. १०.९.२२-२३)। यह उत्तराधिपति है तथा उत्तर एकता से राज्यसुख की वृद्धि होती है, इस विषय पर की ओर स्थित यक्षलोक में रहता है। वृद्धि तथा ऋद्धि मुचकुंद से कुवेर का संवाद हुआ था (म. शां. ७५)। इसकी शक्तियाँ हैं। मणिभद्र (वा. रा. उ. १५), रुव का यक्षों से युद्ध होने के बाद, इसने उसे उपदेश पूर्णभद्र, मणिमत् , मणिकंधर, मणिभूष, मणिस्त्रग्विन , | किया (भा. ४.१२.२)। इसे सोम नाम भी है। इसी माणिकार्मुकधारक नामक यक्ष इसके सेनापति है (दे. | लिये उत्तर दिशा को सौम्या नाम प्राप्त हुआ है। भा. १२.१०)। इसकी कुबेरसभा नामक एक सभा है। इस सभा में, यह ऋद्धि तथा अन्य सौ स्त्रियों के साथ
| कुबेर वारक्य--जयंत वारक्य का शिप्य (जै. उ. बैठता है। इसे नलकूबर नामक एक पुत्र था (म. स.
| ब्रा. ३.४१.१)। . १०.१९)। कुबेर की एक पत्नी का नाम भद्रा दिया गया कुबेराणि--अंगिरांसकुल का गोत्रकार । है (म. आ.१९१.६)। यक्षों के अधिपतित्व के लिये कुब्जा--एक विरूप स्त्री । दुर्दैव से इसे बाल्यावस्था इसने कावेरीनर्मदासंगम पर तप किया, तब शिवकृपा | में ही वैधव्य प्राप्त हुआ। इसने साठ वर्षों तक अपना से इसकी इच्छा पूरी हुई (पद्म. स्व. १६)। गंधमादन | जीवन पुण्यकर्म में व्यतीत किया । प्रत्येक वर्ष माघस्नान पर्वत में स्थित संपत्ति का चतुर्थांश भाग इसके काबू में | भी किया। तदनंतर यह वैकुंठलोक में गई। सुंदोपसुंदों है। इसी संपत्ति का षोडशांश-मानवों को दिया है। यह का नाश करने के लिये, इसने तिलोत्तमा के नाम से अपने राक्षसों सहवर्तमान गंधमादन पर्वत के शिखर पर | अवतार लिया। इसके हावभावों से मोहित हो कर, रहता है (पन. स्व. ३.)। मेरूपर्वत के उत्तर में स्थित सुंदोपसुंद एक दूसरे से लड़ मरे। तब इसका अभिनंदन विभावरी इसका एक वासस्थान है (भा. ५. २१.७)। कर, ब्रह्मदेव ने इसे सूर्यलोक में स्थान दिया (पद्म. उ. कैलास पर्वत पर यह राक्षस अप्सराओं के साथ रहता | १२६)। है। सौगंधिक नामक वन इसका है (भा. ४.६.२३)। २. कंस की दासी । यह शरीर के तीन स्थानों में वक्र यह अलकाधिप हैं । कैलास के दक्षिण भाग में वैद्युत नामक | थी। कंस ने धनुर्याग के लिये कृष्ण तथा बलराम को