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कुंती
प्राचीन चरित्रकोश
कुपति
को आज्ञा दी। तब इसने उसका निषेध किया। इस बारे | नियत हुवाँ, तथा उसके लिये एक विस्तीर्ण मंडप भी में भद्रा का अनुकरण करने का इसने निश्चय किया। परंतु | बनाया गया। सब पांडवकौरव वहाँ अपना कौशल्य श्वेतकेतु का नियम बता कर, पांडु ने पुनः वही आज्ञा की। दिखा रहे थे । तब कर्ण वहाँ आया । उसने कहा की, मैं तब दुर्वास के द्वारा दिये गये मंत्रप्रभाव से यमधर्म, वायु अर्जुन से भी जादा कौशल्य दिखा सकँगा । कर्ण ने अर्जुन तथा इन्द्र को बुला कर इसने युधिष्ठिर, भीम तथा अर्जुन को | को युद्ध का आवाहन किया। कुंती सत्यस्थिति जानती जन्म दिया। पुनश्च पांडु ने पुत्रोत्पादन करने कहा, जिसे थी। इस लिये, यह देख कर वह मूछित हो गई । इसी इसने अमान्य कर दिया। बाद में, पांडु की प्रार्थनानुसार | समय इसने कर्ण को प्रथम पहचाना होगा (म. आ. कुंती ने माद्री को अपना मंत्र दिया । तब माद्री से नकुल | १२३-१२६) । कर्ण दुर्योधन के पक्ष के मिल गया, तथा सहदेव ये जुड़वाँ पुत्र उत्पन्न हुए । यही पाँच पुत्र | यह देख कर कुंती ने उसका जन्मवृत्त उसे बता कर पांडव हैं (म. आ. १०९.१११-११५)।
पांडवों का पक्ष लेने के लिये कहा; परंतु कर्ण ने यह बचपन की साधारण लीलाओं में भी, पांडवों ने कौरवों मान्य नहीं किया। कुंती ने विदुर को भी बताया कि, पर विजय प्राप्त की । पांच पांडव सौ कौरवों को बिल्कुल ही कर्ण उसका पुत्र है (म. उ. १४२-१४४)। त्रस्त कर डालते थे। भीम तो कौरवों की नाक में दम | भारतीय युद्ध के बाद, सब स्त्रियाँ गंगा के किनारे करता था। इससे कौरवपांडवों में विरोध उत्पन्न हुआ | अपने प्रियजनों के लिये शोक कर रही थी। तब कुंती ने (म. आ. ११९)।
धर्म से कहा कि, कर्ण तुम लोगों का भाई था। तब धर्म इसलिये दुर्योधन ने धृतराष्ट्र के द्वारा, पांडव तथा कुंती | को अत्यंत दुःख हुआ। उसने कहा, 'इसके बाद स्त्रियों को वारणावत में यात्रा के लिये मेजा। वहाँ पुरोचन- के मन में कुछ भी गुप्त न रहेगा' (म. स्त्री. २७.८०)। द्वारा जतुगृह बनवा कर दुर्योधन ने पांडवों के नाश कुंती धृतराष्ट्र के साथ वन में गई। युधिष्ठिर ने काफी की सिद्धता थी। परंतु विदुर की सूचनानुसार सुरंग खुदवा | मनाया, परंतु यह वापस न आई (म. आश्व. २२.३कर, पांडवों ने अग्नि से अपनी रक्षा की । एक भीलनी | १७)। अरण्य में दावानल लगा । तब गांधारी, कुंती उस गृह में अपने पांच बच्चों के साथ सो रही थी। तथा धृतराष्ट्र ने अग्नि-प्रवेश किया (म. आश्व. ३५.३१) । ..वह अपने बच्चों के साथ जल कर मर गई । जतुग्रह की
कुंतीभोज-(सो. यदु.) भविष्य के मत में काथरचना करनेवाला पुरोचन भी जल कर मर गया। भीलनी
पुत्र । वृषपर्वा की कन्या का पुत्र पूरु, तथा पूरु के पुत्री तथा उसके पांच पुत्रों के शव देख कर, कौरवों ने मान
का पुत्र कुंतीभोज । यह कुंतीभोज नगर में रहता था। लिया कि, पांडवों का नाश हो गया। उसकी उत्तर
अन्य पुराणों में यही कुन्ति है (कुंति ३. देखिये)। क्रिया भी की । परंतु पांडव वन में सुरक्षित घूम रहे थे (म. आ. १३०-१३७)।
कुंददंत-एक ब्राह्मण । इसके दांत कुंदकलिकाओं के कुंती का स्वभाव परोपकारी था। व्यास की अनुमति
समान थे, इसलिये इसे यह नाम प्राप्त हुआ। यह से, पांडव कुंती के साथ एकचक्रा नगरी में आ कर रहने
विदेहदेश में रहता था। इसे आत्मज्ञान प्राप्ति की लगे । वहाँ वे भिक्षा मांग कर अपना उदरभरण करते थे।
इच्छा हुई। तब गृह छोड़ कर यह अरण्य में घूमने लगा। एक ब्राहाण के घर ये लोग रहाते थे। एक दिन कुंती
इसने कदंब को अपनी ज्ञानप्राप्ति की इच्छा दिखाई । परंतु 'तथा भीम ने उस ब्राह्मण पर आई हुई विपत्ति सुनी।
अभी तक इसने अपने इंद्रियों को पूर्ण रूप से नहीं जीता,
यह देख कर कदंब ने इसे अयोध्या जाने के लिये कहा। बकासुर को तीस मन भात, दो भैंसे तथा एक आदमी देने की नौबत उस ब्राह्मण पर आई थी। तब धर्म के विरोध
उस कथनानुसार सब उपाधियों को छोड़ कर, यह अयोध्या
में राम के पास रहने लगा । वसिष्ठ के मुख से मोक्षोपाय को न मानते हुए, कुंती ने भीम को भेज कर बकासुर का
नामक संहिता श्रवण कर के इसे आत्मज्ञान प्राप्त हो गया वध करवाया । उस ब्राह्मणकुटुंब को संकट से मुक्त किया। इसलिये सब लोगों ने एक ब्रह्मोत्सव भी किया (म. आ.
(यो. वा. ६.१८०-१८६)। १४५-१५२)।
कुपट-कश्यप तथा दनु का पुत्र । द्रोणाचार्य के नेतृत्व में, कौरवपांडवों ने शस्त्रास्त्रविद्या | कुपति-अष्टभैरवों में से एक। इसे ही कपालिन् संपादन की। एक दिन उनकी परीक्षा लेने के लिये | नाम है।
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