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________________ प्राचीन चरित्रकोश कुत्स कुंती ३. भृगुकुल का गोत्रकार। उत्पत्ति हुई (म. व. २८७-२८९)। इसका पुरुजित् ४. दाशरथि राम की सभा का एक ऋषि (वा. रा. | नामक एक अतिरथि पुत्र था। द्रोण ने उसका वध किया उ. २ प्रक्षिप्त)। (म. उ. १६९.२; भी. २३.५, क. ४.७३)। इसे ५. अंगिराकुल का गोत्रकार तथा मंत्रद्रष्टा (ऋ. १. | दस पुत्र और थे। उन सबका वध अश्वत्थामा ने ९४-९८; १०१.११५, ९.९७.४५-५८)। किया (म. द्रो. १३१. १२९) । यह स्यमंतपंचक कुत्स औरव-एक राजा। उपगु सौश्रवस इसका | क्षेत्रमें गया था (भा. १०.८२.२५)। इसका वध द्रोण पुरोहित था। इस ने जाहिर किया था कि, जो भी कोई ने किया (म. क. ४.७३.)। ऋथपुत्र कुंति तथा यह इन्द्र को हवि देगा, उसका मस्तक में काट दूंगा। इंद्र ने | एक नहीं है। वह इससे भी प्राचीन है। गर्व के साथ इससे कहा, 'सुश्रवा ने मुझे हवि दिया है। कुंती--यदुकुलोत्पन्न शूर राजा की कन्या तथा इस ने तत्काल क्रोधित हो कर, सामगान करते हुए उपगु | वसुदेव की भगिनी । सौश्रवस का शिर काट दिया । सुश्रवा ने इन्द्र से शिकायत | महाभारत में उल्लेख है कि, कुंतिभोज राजा ने इसे दत्तक की। इन्द्र ने उसका शिर फिर से जोड दिया (पं. ब्रा. लिया था (म. आ. ६१.१२९ परि. १ क्र. ४३)। १४.६.८; कुत्स १. देखिये)। चंबल नदी को मिलनेवाली अश्वरथ अथवा अश्व नदी के कुत्सन्य-भृगुकुलोत्पन्न एक ब्रह्मर्षि । किनारे, कुंतिभोजक नामक नगर में इसका जन्म हुआ। कुथुमि-विष्णु तथा वायु के मत में व्यास की साम- | इस नगर को कुंति देश कहा गया है (म.भी. १०. शिष्य परंपरा के पौष्यं जि का शिष्य । ब्रह्मांड में कुशमि | ४१; वि. १.१३; बृहत्संहिता. १०.१५)। पाठ है (व्यास देखिये)। कुंतिभोज राजा ने अतिथिसत्कार के लिये कुंती की ___ कुनाल-(मौर्य, भविष्य.) वायु के मत में अशोक | योजना की। यह कार्य इसने उचित ढंग से किया। दुर्वास का पुत्र। की कडी सेवा कर के इसने उन्हें प्रसन्न कर लिया। कुनेत्रक--वेदशिरस् नामक शिवावतार का शिष्य। भविष्य में कुछ बाधाएँ खड़ी होगी, यह जान कर दुर्वास कुंतल---कौंतलपुराधिपति एक राजा (चन्द्रहास १. ने इसे एक वशीकरणमंत्र सिखाया। दुर्वास ने कहा, 'इस देखिये)। मंत्र से जिस देवता का तुम आवाहन करोगी, उस देवता कुंतलस्वातिकर्ण--(आंध्र. भविष्य.) मत्स्य के मत के प्रभाव से तुम्हें पुत्र होगा।' अनंतर कुन्ती के मन में में मृगेन्द्रस्वातिकर्णपुत्र। मन्त्रप्रतीति की जिज्ञासा खडी हुई। उस मंत्र का जप ___ कुंति--एक राजा । इसने पांचालों का पराभव किया कर के इसने सूर्य को बुलाया। सूर्य को आते देख कर (क. सं. २६.९; मै. सं. ४.२.६)। इसे विस्मय लगा। सूर्य से कुंती को कवचकुंडलयुक्त कर्ण २. (सो. सह.) भागवत के मत में नेत्रपुत्र । विष्ण नामक पुत्र हुआ। लोकभय से कुंती ने कर्ण को अश्वनदी तथा मत्स्य के मत में धर्मनेत्रपुत्र । वायु में यह नाम | में छोड़ दिया। उसका पालन राधा के पति अधिरथ कीर्ति है। ने किया (म. आ.. १०४; अधिरथ देखिये)। ३. ( सो. यदु.) भागवत, विष्णु, मत्स्य तथा वायु के | सयानी होने पर अनेक राजाओं से कुन्ती की मत में क्रथपुत्र। मँगनियाँ होने लगी। इनराजाओं को बुला कर, कुंतिभोज-एक राजा। कुंतिभोज वा भोज नाम से | कुंतिभोज ने इसका स्वयंवर किया। तब कुंती ने पांडु इसका उल्लेख आता है । वसुदेवपिता शूर की कन्या पृथा उर्फ का वरण किया। तदुपरांत पांडु कुंती को ले कर कुन्ती इसे दत्तक दी गई थी। यह उसकी बुआ का लड़का हस्तिनापुर गया। (म. आ. १०५. ११३१)। मृगया था तथा अनपत्य था। शूर ने कुछ समयपूर्व अपना प्रथम के लिये गये पांडु ने, मृगरूप धारण कर के मैथुन पुत्र इसे देने का वचन भी दिया था (म. आ. ६१. परि. करनेवाले किंदम ऋषि का वध किया। इस समय ऋषि की १ क्र. ४३)। एक बार दुर्वास कुंतिभोज के घर आये | शापवाणी हुई: " इसी प्रकार रतिक्रीड़ा के ही साथ मौत थे। कुंतिभोज ने कुन्ती को उनकी सारी व्यवस्था करने के तुम्हें उठा लेगी"। इससे पांडु का पुत्रोत्पादन का मार्ग लिये कहा। कुन्ती को दुर्वास से सब देवताओं को प्रसन्न | बंद हो गया । स्वर्गप्राप्त्यर्थ अपत्य की जरूरी होने के कारण, करने के मंत्र मिले थे। इसीसे आगे चल कर पांडवों की । पांडु ने श्रेष्ठजाति के पुरुषों से पुत्रोत्पादन करने की कुंती
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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