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________________ कलाधर प्राचीन चरित्रकोश कल्प पर त्रिपुर को नगर बांध दिया, तथा उससे शंकर के पास | दुखी रहता था। फिर भी यह उसका पीछा न छोड़ता था। की चिन्तामणि की मूर्ति मँगाई (गणेश १.४१)। एक बार एक मुनि पर वह मोहित हुई। परंतु उस मुनि कलापिन्--कृष्णयजुर्वेद का एक शाखाप्रवर्तक । ने उसका धिक्कार किया। यह संधि देख कर, यह मुनिरूप वैशंपायन का एक प्रमुख शिष्य । इसके चार शिष्य | से उसके पास आया, तथा यह शर्त रखी कि, क्रीडा के हरिद्रु, छगलिन् , तुम्बुरु तथा उलप । कलापि का चरण | समय वह इसे न देखे । तदनंतर यह उससे रममाण (शाखा) उदीच्य कहा जाता है । पाणिनि ने इस चरण | हुआ। उससे इसे स्वरोचि नामक पुत्र हुआ (मार्क. ४९)। का निर्देश किया है (पा. सू. ४.३.१०८) महाभाष्य में | इसे अपनी भार्या से निर्मार्टि नामक कन्या हुई (मार्क. ४८)। हर ग्राम में कठकालाप है, ऐसा लिखा है। कलि प्रागाथ-सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.६६)। कलावती--नारद देखिये। कलिंग-(सो. अनु.)। बलि के छः पुत्रों में से २. सत्यनारायण के प्रसाद का अपमान करने से क्या | एक। बलि की भार्या को यह दीर्घतमस् से हुआ (अंग होता है. यह बताने के लिये सत्यनारायणमाहात्म्य में | देखिये)। इसकी कथा दी गयी है। . । २. यह द्रौपदीस्वयंवर में था (म. आ. १७७.१२)। कलि---एक वृद्ध ब्राह्मण। अश्विनों ने इसे तरुण बनाया | ३. कृतयुग का एक दैत्य । इसने स्वर्ग जीत कर दिग्पालों के स्थान पर दैत्यों की स्थापना की । परंतु श्री(ऋ. १०.३९.८), तथा पत्नी दी (ऋ. १.११२.१५)। मातादेवी ने इसके हृदय पर पर्वत रखा, तथा उस पर २. अधर्म के वंश में क्रोध तथा हिंसा का पुत्र । इसे | वह स्वयं बैठी (स्कन्द. ७.३.२२)। दुरुक्ति नामक बहन थी। इसे कली से भय नामक पुत्र तथा मृत्यु नामक कन्या ऐसे दो अपत्य हुए (भा. ४.८. कलिल-सोम का पुत्र । ३-४)। यह दमयंती स्वयंवर के लिये जा रहा था, कल्कि कलियुग में बौद्धावतार के बाद होनेवाला तब मार्ग में इन्द्र ने बताया कि, स्वयंवर हो चुका है। इससे अवतार । शंभल ग्रामनिवासी विष्णुयशस् नामक ब्राह्मण अत्यंत क्रोधित हो कर, इसने नल के शरीर में प्रवेश किया, | के घर में, दसवाँ अथवा ग्यारहवाँ अवतार इसका होगा। तथा उससे द्यूतक्रीड़ा करवा कर अत्यंत पीड़ित किया । कलियुग में फैले हुए अधर्म का यह नाश करेगा। सब आगे चल कर, दमयंती के शाप से यह बाहर आया, तथा दैत्यरूप म्लेच्छों का यह पूर्णनाश करेगा। संपूर्ण पृथ्वी इसने कहा कि, मैंने तक्षक से त्रस्त हो कर तुम्हारे शरीर म्लेछमय होने के बाद, हाथ में लंबी तलवार ले कर, देवदत्त • का आश्रय लिया था। तदनंतर इसने एक वृक्ष में प्रवेश अश्व पर बैठ कर, तीन रात में यह दैत्यों का संहार करेगा। किया। इसके अवतार से होनेवाले कलियुग का वर्णन इस समय कई कोटि राजाओं का वध होगा। कलि की 'मार्कडेय ने युधिष्ठिर को बताया (म. ब. ५५.५६, ७०. सजा तथा उसके नाश के लिये ही इसका अवतार होगा . १८८)। इंसे चतुर्भुजमिश्र टीका में तिष्य नामांतर दिया (म. व. १८८.८९; पश्न. उ. २५२; ब्रह्म. २१३.१६४; है (म. मी. १०.३)। भांडारकर की पुस्तक में पुष्य पाठ ह.वं. १.४१.६४; भा. १.३, २.७,१२.२) । इस है (म. भी. १०.३)। अवतार के समय कृतयुग का प्रारंभ होगा (विष्णुधर्म. इसने वृषभरूप धर्म, तथा गोरूप पृथ्वी को त्रस्त करना | १.७४) । इस प्रकार अवतारकार्य समाप्त कर के, यह प्रारंभ किया। यह देख कर, परीक्षित ने इसे निवास समाधिस्थ होगा (ब्रह्मैव. २.७)। उस समाधि से योगाग्नि के लिये, द्यूत, मद्यपान स्त्रीसंग, हिंसा, सुवर्ण आदि का उद्भव होगा तथा प्रलय होगा। कलि बली के पास पांच स्थान दिये। (भा. १.१७)। यह पूर्ण रूपक है। जायेगा। पुनः कर्मभूमि निर्माण हो कर, वर्णोत्पत्ति भी यह जाति से म्लेच्छ है । प्रद्योत ने म्लेच्छों का संहार होगी । वैवस्वत मनु इसकी आज्ञा से अयोध्या में राज्य. किया, तब यह नारायण के पास गया, तथा इसने नारायण | करेगा (भवि. प्रति. ४.२६)। यह अदृश्य, पराशर की स्तुति की । इसने भगवान को बताया कि, प्रद्योत तथा गोत्री, ब्राह्मणसेनायुक्त, तथा याज्ञवल्क्य की सहायता से उसके भाई वेदवान् ने, मेरा स्थान नष्ट कर दिया है। युक्त होगा (ब्रह्माण्ड. ३.७३.१०४; विष्णुयशस् देखिये)। ३. कश्यप तथा मुनि के पुत्रों में से एक । इसका वरु'थिनी नामक अप्सरा पर प्रेम था, परंतु उसने इसे धिक्कार | कल्प-(स्वा. उत्तान) ध्रुव को भ्रमी से उत्पन्न पुत्र । दिया। उसके द्वारा धिक्कारे जाने के कारण, यह अत्यंत २. सैंहिकेयों में से एक ( विप्रचित्ति देखिये)। • १२३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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