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कर्दम
. प्राचीन चरित्रकोश
कलाधर
कर्दम-एक ऋषि (ब्रह्माण्ड. २.०३२. ९८-१००)। बाद में एकांत में कपिल को मिल कर, कर्दम ने उसे इसे कम भी कहते हैं (वायु. ५९. ९०-९१)। यह | नमस्कार किया। उसके बाद, संन्यास ले कर तथा वन में ब्रह्मदेव की छाया से उत्पन्न हुआ (भा. ३. १२; म. | जा कर विष्णुध्यान से यह वैकुंठलोक गया (भा. ३. स. ११) । यह एक प्रजापति था ( वायु. ६५. | २१-२४)। ५३-५४) । इसका जन्म स्वायंभुव मन्वन्तर में हुआ | २. लक्ष्मीपुत्र । (भा. ३. १२. २७) । यह पूर्वजन्म में क्षत्रिय था। कर्दमायन शाखेय--अत्रिकुल का गोत्रकार ऋषिगण | सौभरि ने इसे गणेशव्रत बताया था (गणेश. १. १५१)। कर्मजित्-(मगध. भविष्य.) बृहत्सेन राजा का पुत्र ।
इसका पुत्र सृतंजय । अवतारकथन--ब्रह्मदेव ने कर्दम ऋषि से प्रजा
कर्मश्रेष्ठ--स्वायंभुव मन्वन्तर में पुलह के तीन पुत्रों उत्पन्न करने के लिये कहा। यह सरस्वती नदी के किनारे
| में ज्येष्ठ । इसकी माता का नाम गति (भा. ४.१)। गया, तथा वहाँ दस हजार वर्षों तक इसने तपश्चर्या की ।
कर्मिन्-शुक्राचार्य के चार पुत्रों में से कनिष्ठ । . तब इसे विष्णु का दर्शन हुआ, तथा तुम्हारी इच्छा पूरी | होगी, ऐसा उसने इसे बताया। विष्णु ने कहा |
कल-सिंधुदैत्य का बहनोई (गणेश. २.११८)। "ब्रह्मदेव का पुत्र मनु सार्वभौम राजा है, तथा ब्रह्मावर्त | कलशपोतक-कदूपुत्र । एक सर्प (म. उ. १०१. में रह कर, सप्तसमुद्रांकित पृथ्वी का पालन करता है ।। ११)। वह धर्मज्ञ राजर्षि अपनी शतरूपा नामक पटरानी के साथ |
कलशीकंठ--अंगिराकुल का एक गोत्रकार ।। परसो तक यहाँ आवेगा । उसकी उपवर कन्या देवहूति, |
कलहा--सौराष्ट्रनगरवासी भिक्षु नामक ब्राह्मण की योग्य पति के प्राप्ति की बाट जोह रही है । वह तेरे | पत्नी । इसकी आदत थी. पति के कहने के ठीक विपरीत अनुरूप है, इसलिये तू उससे विवाह कर । वह तेरी
कार्य करना। इसलिये, जो कार्य करना हो उसके ठीक सेवा उत्तम रीति से करेगी। उसके गर्भ में तेरे वीर्य
विपरीत बोलने का नियम, उसके पति ने कर लिया था। के साथ मैं प्रवेश कर अवतार लूँगा, तथा सांख्यशास्त्र
उससे पति के सब कार्य उसकी इच्छानुसार पूर्ण हो जाते निर्माण करूँगा” | इतना कह कर विष्णु चले गये।
थे । एकबार गलती से श्राद्धपिंड गंगा में डालने के लिये
उसने कहा । तब पति की आज्ञा के ठीक विपरीत करने प्रपंच-कालोपरांत मनु राजा अपनी रानी के साथ
के हेतु से इसने वह पिंड शौच्यकूप में फेंका । यों इसका कर्दम के यहां आया । उसने अपनी कन्या देवहूति बडे
दुष्ट स्वभाव था। इस कारण इसे पिशाच्ययोनि प्राप्त हुई। ठाठ बाट के साथ कर्दम को अर्पण की । कर्दम ने विष्णु
उससे धर्मदत्त ने इसका उद्धार किया (आ. रा. सार. के कहने के अनुसार, देवहूति को स्वीकार किया। परंतु
४)। करवीरस्थ धर्मदत्त ने द्वादशाक्षरी मंत्र, तथा कार्तिकउससे एक बार ही समागम करूंगा यह शर्त रखी, तथा
मास का आधा पुण्य दे कर इसे मुक्त किया । इस पुण्य समागम के बाद संन्यास लूंगा यों चेतावनी दी । तदनुसार
से धर्मदत्त तथा कलहा अगले जन्म में दशरथ-कौसल्या , दोनों लोग कालक्रमण करने लगे । पतिव्रता देवहूति की सेवा
बन कर, उनके उदर से राम का जन्म हुआ (पद्म. उ. से संतुष्ट हो कर कर्दम ने उसे इच्छित वस्तु को मांगने को
१०६-१०७; चंडी देखिये)। . कहा । उसने संभोग की इच्छा प्रकट की। देवहूति की इच्छा मान कर इसने एक विमान तयार किया। उस
___कला-कर्दम प्रजापति तथा देवहूति की नौ कन्याविमान में समागम के ऐश्वर्ययुक्त साधन निर्माण किये,
ओं में से प्रथम । मरीचि ऋषि की पत्नी । इसे कश्यप तथा तथा लगातार सौ वर्षों तक देवहूति से समागम किया। पूण
पूर्णिमा नामक दो पुत्र थे (भा. ३.२४.२२)। तब देवहूति को कला, अनसूया, श्रद्धा, हविर्भू, गति,
। २. बिभीषण की ज्येष्ठ कन्या। अशोकवन में बारक्रिया, ख्याति, अरुंधती, शांति आदि नौ कन्याएं हुई। बार जा कर, राम के कुशल वृत्त का निवेदन, यह सीता ब्रह्माजी के कहने पर उन्हें क्रमशः मरीचि, अत्रि,
के पास करती थी (वा. रा. सु. ३७)। अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह, ऋतु, भृगु, वसिष्ठ, अथर्वा आदि कलाधर-यह विद्याधर था । दुर्वास द्वारा दिये गये को प्रजोत्पादन हेतु से दिया। देवहूति के उदर से विष्णु शाप से मुक्त होने के लिये, इसने अरुणाचलेश्वर की ने कपिल नाम से जन्म लिया।
| प्रदक्षिणायें की (स्कंद. १.३.२.२३)। इसने एक बाण १२२