SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कबंधी प्राचीन चरित्रकोश करंभक 'देखिये) । कबंधी — पंचशिख ऋषि की माता ( कपिला २. यह स्वयं स्त्रीस्वभाव के अनुसार वह उपदेश भूल गई ( भा. ६.१८; ७.७; हिरण्यकशिपु देखिये) । कयोवधि--ऋतुपर्ण देखिये । कमठ- - युधिष्ठिर की सभा का एक क्षत्रिय ( म. स. ४.१९)। २. महीनगर के हारित नामक ब्राह्मण का पुत्र । वृद्ध ब्राह्मण का रूप ले कर सूर्य इसके पास आया तथा उसने कुछ प्रश्न पूछे। उसके इसने समर्पक उत्तर दिये । तत्र सूर्य ने इसे बताया कि, तेरा पिता स्मृतिकार होगा, इस स्थान का त्याग नहीं करेगा तथा यह स्थान जयादित्य नाम से प्रसिद्ध होगा (स्कन्द. १.२.५१ ) । करकर्ष - (सो. क्रोटु.) । शिशुपाल के चार पुत्रों में से एक । इसका चेकितान यादव से अत्यंत स्नेह था । भारतीय युद्ध का दुर्योधनपक्षीय राजा ( म. द्रो. १९.२०) । इस के लिये करकाक्ष पाठ है । करकायु - (सो. कुरु. ) धृतराष्ट्रपुत्र । कराज - कर्णजिह्व देखिये । करंज- इंद्र का एक शत्रु (ऋ. १.५३.८९ १०.४८. ८)। कमधू -- विमद की पत्नी (ऋ. १०.६५.१२ ) । कमला—-वल्लभ भीम की पत्नी (गणेश. १.१९. ४०; दक्ष देखिये) । करट — शकट देखिये । करंड --कंडू देखिये। कमलाक्ष -- त्रिपुर का सुवर्णपुराधिपति असुर ( लिंग. २.७१) । तारकासुर का पुत्र ( म. क. २४.४ ) । रुद्र ने इसका वध किया | करथ - भास्करसंहिता के सर्वधरतंत्र का कर्ता (ब्रह्मवै. २.१६) । कंपन - अंगद ने युद्ध में मारा हुआ लंका का राक्षस ( वा. रा. यु. ७५ ) । २. युधिष्ठिर की सभा का एक क्षत्रिय ( म. स. ४. १९)। कंबल — कद्रूपुत्र । पाताल के नागों का अधिपति ( भा. ५.२४ ) । यह अश्विन माह में त्वष्टृ नामक सूर्य के साथ रहता है ( भा. १२.१९ ) । यह अश्वतर का भाई है (मार्के. २१.५० ) । कंबलबर्हिष--(सो, क्रोष्टु. ) अंधक का कनिष्ठ पुत्र । २. (सो. विदूरथ. ) मत्स्य तथा वायु के मत में देवार्हपुत्र । ३. (सो. यदु.) मत्स्य तथा वायु के मत में मरुत्तपुत्र | इसका पुत्र असमौजस् । करंधम - (सो. तुर्वसु. ) भागवतमत में त्रिभानुपुत्र, विष्णुमत में त्रिशांत्र, वायुमत में त्रिसारिपुत्र तथा मत्स्यमत में त्रिसानुपुत्र । २. (सू. दिष्ट. ) भागवत तथा वायु के मतानुसार खनिनेत्र का पुत्र तथा विष्णु के मतानुसार अतिभूतिपुत्र । अवीक्षित राजा का पिता तथा मरुत्त राजा का पितामह. ( म. अनु. १३७.१६ ) । इसका मूल नाम सुवर्चस् था करंधम नाम प्रचलित होने का कारण यह है। एक बार अनेक राजाओं ने मिल कर इसे अत्यंत त्रस्त किया। तब इसने अपने हस्त कंपित कर के सेना उत्पन्न की तथा सब का पराभव किया (म. आश्व. ४.९ - १६) । इसे कालभीति ने उपदेश किया था ( स्कन्द १.२.४०-४२ ) । महाभारत में तथा मार्कडेय में बलाश्व पाठभेद मिलता है (मार्के. ११८.८; २१.) । करभाजन -- ऋषभदेव के नौ सिद्धपुत्रों में से एक । यह योगी तथा ब्रह्मज्ञानी था । इसने विदेह के यज्ञ में ज्ञानोपदेश किया (भा. ५.४; ११.२ ) । इसकी माता जयंती | करंभ - अगस्त्यकुल का एक गोत्रकार । २. एक दनुपुत्र । ३. (सो. क्रोष्टु.) मत्स्य तथा वायु के मत में शकुनि - पुत्र ( करंभि देखिये) । कयाधू -- तारक के जम्भासुर नामक सेनापति की कन्या । इसका पति हिरण्यकशिपु । पहिली बार जब यह गर्भवती थी, तब हिरण्यकशिपु मंदार पर्वत पर तपश्चर्या करने के लिये गया था। यह मौका देख कर इन्द्र ने सत्र दैत्यों का पराभव किया। इसके गर्भ का जन्म होते ही उसे मार सकें, इस विचार से इंद्र कयाधू को ले कर जाने लगा । इतने में मार्ग में नारद मिला। उसने बताया कि इसके उदर में स्थित गर्भ भगवद्भक्त है। तत्र इंद्र ने इसे छोड़ दिया। बाद में नारद ने इसे आत्मबोध किया । वह इसके गर्भ ने उसे सुना तथा ध्यान में रखा। परंतु | पुत्र | १९६ करंभक -- (सो. विदूरथ. ) मत्स्य के मत में हृदीक
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy