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कपिल
प्राचीन चरित्रकोश
कबंधिन् कात्यायन
४. विश्वामित्र के पुत्रों में से एक।
कपोतक--पातालस्थित नागराज का नाम (माकै. ५. दनु एवं कश्यप का पुत्र, एक दानव ।
६८)। • ६. कद्रु तथा कश्यप का पुत्र, एक नाग ।
___ कपोतरोमन्-(सो. कुकुर.) भागवतमतानुसार ७. ब्रह्मांडमतानुसार वसुदेव का सुगंधी से तथा वायु- विलोमा पुत्र, विष्णुमतानुसार धृष्टपुत्र, वायुमतानुसार मतानुसार वनराजी से उत्पन्न पुत्र । यह राज्य न कर धृतिपुत्र तथा मत्स्यमतानुसार वृष्टिपुत्र । विरक्त हो कर वन में चला गया।
कबंध--दंडकारण्य का एक राक्षस । इसका सिर ८. विंध्य पर रहनेवाला एक वानर ।
इसकी छाती में था। इस लिये इसे कंबंध (शिरविरहित) ९. वेन का वध करनेवाले ऋपियों में से एक। नाम दिया गया । जटायुवध के बाद राम तथा लक्ष्मण,
१०. (सो. नील.) भद्राश्व का पुत्र । अन्य पुराणों में सीता की खोज में वन में घूम रहे थे । खोजते खोजते वे कापिल्य ऐसा पाठभेद है।
क्रौंचवन के पूर्व में तीन कोस दूर स्थित मातंग मुनि के ११. शिवावतार दधिवाहन का शिष्य । .
आश्रम समीप पहुँचे । वहाँ उन्हें बहुत जोर की ध्वनि १२. एक यक्ष । इसने खशाकन्या केशिनी से यक्ष-सुनाई पड़ी। यह ध्वनि कबंध राक्षस की थी। एक कोस राक्षस उत्पन्न किये । इल की नीला नामक कन्या थी की दूरी पर रह कर भी यह राम लक्ष्मणों को दिखा । जब (ब्रह्मांड. ३.७.१)।
यह भक्ष्य के लिये हाथ फैला रहा था, तब उस में राम... १३. एक ब्राह्मण । एकादशी उपवास करने के कारण लक्ष्मण पकड़े गये । राम लक्ष्मणों के पास तरवारें थीं । राम यह संपन्न हुआ (पद्म. उ. ३०)।
को छूट जाने के लिये कह कर, लक्ष्मण स्वयं मरने के लिये कपिला-दक्ष एवं असिक्नी की कन्या तथा कश्यप
तैय्यार हो गया । परंतु उसे धीरज दे कर राम ने रोका । की स्त्री।
अपने आप ही भक्ष्य उसके पास आया, इससे राक्षस को २. पंचशिख ऋषि की माता (नारद.. १.४५; कबंधी
अत्यंत आनंद हुआ। उसने ऐसा कहा भी। परंतु लक्ष्मण, देखिये)।
ने कहा कि, क्षत्रिय के लिये ऐसी मृत्यु अयोग्य है। तब ३. कश्यप तथा खशा की कन्या।
राक्षस को क्रोध आया तथा वह इन्हें खाने के लिये
प्रवृत्त हुआ। तब राम ने इसका बायाँ हाथ तोड़ दिया कपिलाश्व--(सू. इ.) भागवत तथा विष्णुमत में |
तथा लक्ष्मण ने इसका दाहिना हाथ तोड़ दिया । तब कुवलयाश्वपुत्र । मत्स्य तथा वायु मत में कुवलाश्वपुत्र। ।
गतप्राण हो कर यह नीचे गिर पड़ा । तदनंतर इसके . कपिलोम--कश्यप तथा खशा का पुत्र।
शरीर से एक दैदीप्यमान पुरुष निकल कर आकाश में कपिवन भौवायन-एक आचार्य । (मै. सं. १. । | गया । तब राम ने पूछा कि तुम कौन हो । तब इसने कहा .४५; क. से. ३.२.२)।
कि, "मैं विश्वावसु नामक गंधर्व हूँ। ब्राह्मण के शाप से . इसके नाम पर दो दिन चलनेवाला एक यज्ञ है | यह राक्षसयोनि मुझे प्राप्त हुई थी। सीता का हरण (ता. बा. २०.१३.४ का. श्री. २५, २-३; आश्व. श्री. | रावण ने किया है। तुम सुग्रीव के पास जाओ। वह तुम्हें १०.२)।
सहायता करेगा, क्यों कि, सुग्रीव को रावण के मंदिर की .. कपिश-कश्यप तथा दनु का पुत्र ।
जानकारी है।" इतना कह कर यह गुप्त हो गया (म. व. कपिश्रवस--कपिमुख देखिये।
२६३; वा. रा. अर. ६९-७३)। कपिष्ठल-वसिष्ठकुल का गोत्रकार ऋषिगण । यह कठ २. अट्टहास नामक शिवावतार का शिष्य । का एक भाग है। कपिष्ठलसंहिता उपलब्ध है। पाणिनि ३. व्यास के अथर्वन् शिष्यपरंपरा के वायु, विष्णु, कपिष्ठलगोत्र निर्देश करता है (पा. सू. ८.३. ९१) | ब्रह्मांड तथा भागवत मतानुसार सुमंतु का शिष्य। (कठ देखिये)। यह कृष्ण यजुर्वेद की शाखा है।। कबंध आथर्वण--यह पतंचल काप्य की पत्नी कपीतर--अंगिराकुल का एक गोत्रकार ।
के देह में संचार करता था। इसने पतंचल को कुछ कपोत--गरुड का पुत्र ।
अध्यात्मज्ञान बताया है (बृ. उ. ३.७)। २. एक राजा । यह आत्मज्ञानी था।
कबंधिन् कात्यायन-पिप्पलाद का ब्रह्मविद्या का कपोत नैर्ऋत--सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१६५)। । शिष्य (प्र. उ. ११.३)।
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