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________________ कण्व प्राचीन चरित्रकोश - कपिल बनें हुए म्लेच्छों के दो हजार वैश्यों में से कश्यप सेवक | कनकध्वज-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र का पुत्र | यह पृथु को कण्व ने क्षत्रिय बना कर राजपुत्रनगर दिया (भवि | द्रौपदीस्वयंवर में उपस्थित था (म. आ. १७७.३ )। वि. प्रति. ४.२१)। भीम ने इसका वध किया (म. भी. ९२.२६)। कण्वायन--इसके दातृत्व के संबंध में कृश ने प्रशंसा | कनकांगद वा कनकायु-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्रपुत्र । की है (ऋ. ८.५५,४)। कनकोद्भव-(सो. विदूरथ.) वायुमतानुसार हृदीक कत वैश्वामित्र--सूक्तद्रष्टा (ऋ ३. १७; १८)। | का पुत्र । कुशिक कुल का गोत्रकार तथा मंत्रकार था। कनिष्ट-भौत्य मन्वन्तर का देवगण । कति--विश्वामित्र का पुत्र । कनीयक-(सो. विदूरथ.) मत्स्यमत में हृदीकपुत्र । कंदली--दुर्वास की पत्नी । कत्तृण--अंगिराकुल का गोत्रकार । कंधर-मदनिका देखिये। कथक:-विश्वामित्र कुल का गोत्रकार । कन्यक--कश्यपकुल का गोत्रकार । कद्र-एक पुरोहित । इंद्र ने इसका सोम पिया कप-देवविशेष । पहले इसने स्वर्ग का अपहार किया (ऋ. ८.४५.२६)। | था। तब ब्राह्मणों ने इंद्र का पक्ष ले कर इसका नाश किया कद्र-दक्ष प्रजापति तथा असिक्नी की कन्या (म.आ. | (म. अनु. २६२.४ कुं.)। ६६; भा. ६.६)। यह बहुत सुंदर तथा गुणवती थी परंतु । कपट-कश्यप तथा दनु का पुत्र । इसकी एक ही आंख थी (भवि. प्रति. १. ३२)। दक्ष | कपर--कश्यप तथा दनु का पुत्र । ने कश्यप के साथ इसका ब्याह कर दिया था। आगे कपर्देय-विश्वामित्रकुल का गोत्रकार । चलकर इसने कश्यप से वर प्राप्त किया कि मेरे समान | कपालभरण-- विंध्य पर्वत पर त्रिवक्रकन्या बल वाले सहस्र सप हो । उचैःश्रवा के रंग के संबंध से | सुशीला को शुचि नामक ब्राह्मण से उत्पन्न पुत्र । इसने अपनी सौत विनता से शर्त लगायी जिसमें कद्रु | इंद्र ने इसका वध किया । इसका वध करने के पश्चात् कहा था, कि उचैःश्रवा का रंग सफेद है पर पूंछ काली है। इंद्र ने सीतासरसतीर्थ में स्नान किया। इसके बाद इसका अपनी बात सत्य सिद्ध करने के लिए इसने अपने पुत्रों की | पुब्र दुर्मेधस गद्दी पर बैठा (स्कंद. ३.१.११)। सहायता मांगी, पर वे सहायता करने तैयार न हुए, तब कपालिन्-कश्यप तथा सुरभि का पुत्र । एक रुद्र । इसने इन्हें शाप दिया कि तुम सब सर्पसत्र में भस्म होगे। कपि-तामस मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक । दुष्ट सपों का नाश करने का यह अच्छा सुअवसर जानकर | २. भृगु गोत्र का एक ऋषि तथा प्रवर (भृगु देखिये)। ब्रह्मदेव ने आकर इसके शाप की पुष्टि की (म. आ. १८)। । ३. (सो. पुरूरवस्.) विष्णुमतानुसार उरुक्षय तथा कहा कि उनका सापत्न बंधु उनका भक्षण करेगा। का-पुत्र तथा वायुमतानुसार उभक्षयपुत्र । यह क्षत्रिय होते आगे चलकर उन्हों ने उदशाप मांगा तथा सहायता करने हुए भी तप कर ब्राह्मण हुआ (वायु. ९१. ११६) का वचन दिया। तदनुसार वे उचैःश्रवा की पूंछ में जा ४. रैवत मन्वंतर के मनु का एक पुत्र । लगे (म. आ. १८)। इस तरह उच्चैःश्रवा की पूंछ ५. अंगिरस गोत्र का मंत्रकार। काली है, ऐसा कद्र ने विनता को दिखलाया। विनता कार्पजल-वसिष्ठकुल का एक गोत्रकार । शर्त में हार गयी। अतः कद्र की वह १,००० वर्षों तक दासी कपित्थक-कद्भुपुत्र एक सर्प । रहे यह निश्चित हुआ। पांच सौ वर्षों के बाद गरुड ने कपिभू-अंगिराकुल का गोत्रकार । अपनी माता विनता को दास्य से मुक्त किया (म. आ. कपिमुख-पराशरकुल का गोत्रकार । कपिश्रवस् पाठ१८,३०; कश्यप देखिये)। भेद है। कद्वशंकु-(सो. कुकुर.) वायुमत में उग्रसेनपुत्र। कपिल-सांख्यशास्त्रज्ञ कपिल का निर्देश श्वेताश्वतर • कनक--(सो. सहस्र.) मत्स्यमतानुसार दुर्दमपुत्र | उपनिषद् में है (५.२)। तथा वायुमतानुसार दुदर्मपुत्र । वास्तव में यहाँ कपिल का अर्थ हिरण्यगर्भ है। '२. विप्रचिति तथा सिंहिका का पुत्र । इसे परशुराम ने एक अग्निविशेष । कर्म ऊर्फ विश्वपति अग्नि तथा मारा (ब्रह्माण्ड. ३.६.१९-२२)। रोहिणी (हिरण्यकशिपुकन्या) का पुत्र। इसे सांख्यशास्त्र प्रा. च. १५] १९३
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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