________________
कण्व
प्राचीन चरित्रकोश
कण्व
होगी।
उल्लेख कण्वाः. सौश्रवसाः नाम से होता है (क. सं. १३. उद्धरण स्मृतिचंद्रिका में (आन्हिक तथा श्राद्ध के संबंध से) १२; सां. श्री. १६.११.२०)। अथर्ववेद के ( २.२५) लिये गये हैं। उसी तरह मिताक्षरा नामक ग्रंथ में कण्व के एक उद्धरण से प्रतीत होता है कि, उनसे शत्रुतापूर्ण | ग्रंथ के बहुत से उद्धरण लिये गये हैं। (मिता. ३.५८%; व्यवहार किया जाता था।
१३.६०)। क्षत्रियों के गायत्रीमंत्र में कण्व ने, सूर्य से प्राप्त की | इनके ग्रंथ निम्नलिखित हैविश्वकल्याणकारक सद्बुद्धि हमें मिले, ऐसा उल्लेख (१) कण्वनीति. (२) कण्वसंहिता (३) कण्वोपमिलता है (वा. सं. १७.७४) । ऋग्वेद में (१.११९.८) | निषद् (४) कण्वस्मृति । कण्वस्मृति का उल्लेख हेमाद्रि, निम्नलिखित कथा एक कण्व के. संबंध में आयी है। मध्वाचार्य आदि ने किया है (C.C.)। ब्राह्मणत्व की परीक्षा लेने के लिये असुरों ने कण्व को, २. कश्यपगोत्रोत्पन्न एक ऋषि । इसके पिता मेधातिथि अंधकारमय स्थान पर रख कर कहा कि, तुम यदि ब्राह्मण (म. अनु. २५५.३१ कुं.)। इसका आश्रम मालिनी होगे तो, उषःकाल कब होगा, पहचानोगे । इसे अश्वियों ने नदी के तट पर था। इसने शकंतला का पालन पोषण
आकर बताया कि, जिस समय उषःकाल होगा उस समय बड़े प्रेम से किया था। एक बार यह बाहर गया हम लोग वीणावादन करते हुए आयेंगे। उस शब्द के | था, तब दुष्यंत ने शकुंतला से गंधर्वविवाह किया। सुन कर तुम कह देना कि उषःकाल हो गया है। इसने वापस आकर उसे योग्य कह कर उस विवाह की
विष्णु मतानुसार यह ब्रह्मरात तथा भागवत मतानुसार | पुष्टि की (म. आ. ६४.६८;भा. ९.२०)। इसने दुर्योधन देवराज के पुत्र याज्ञवल्क्य के पंद्रह शिष्यों में से एक को मातलि की कथा बतायी। यह बोधप्रद कथा सुन कर था (व्यास देखिये)। आगे चल कर इसने यजुर्वेद में कण्व । | भी जब उसने एक न सुनी, तब इसने शाप दिया 'कि, ' शाखा स्थापित कर उसके ग्रंग निर्माण किये (भा. | तेरी जंघा फोडने से तेरी मृत्यु होगी (म. उ. ९५.१०३. १२.६)। वे ग्रंथ बहुत सी बातों में याज्ञवल्क्य के विरुद्ध हैं। कुं)। काल की दृष्टि से यह कथा किसी अन्य कण्व की
कण्व अंगिरस गोत्रोत्पन्न है तथा इनका कुल पूरुओं से उत्पन्न हुआ। कुछ स्थानों पर मतिनार पुत्र अप्रतिरथ से यह गौतम के आश्रम में गया था। वहाँ की समृद्धि. यह उत्पन्न हुआ (ह. वं. १.३२, विष्णु. ४.१९) ऐसा | देख कर वैसी ही समृद्धि प्राप्त होवे, इसलिये मिलता है, परंतु कुछ अन्य स्थानों पर कण्व को अजमीढ- | इसने तपस्या की । गंगा तथा क्षुधा को प्रसन्न किया। पुत्र कहा गया है (वायु. ९९.१६९-१७० कण्ठ; मत्स्य. | उसने आयुष्य, द्रव्य, भुक्तिमुक्ति की मांग की। ४९)। पीढियों की दृष्टि से इन दोनों में काफी भेद है। वह तथा उसके वंशज कभी क्षुघापीड़ित न हों, विष्णु पुराण में दोनों वंश दिये गये हैं।
ऐसा वर मांगा । वह उसे मिला भी । जहाँ प्रगाथ काण्व दुर्गह के नातियों का समकालीन था (ऋ. उसने तप किया था उस तीर्थ का नाम आगे चल ८.६५.१२; दुर्गह देखिये)। कण्व वंश की वंशावलि कर कण्वतीर्थ पड़ा (ब्रह्म. ८५)। भरत के यज्ञ में यह बहुत से स्थानों पर मिलती है (मत्स्य. ५०; ह. वं. मुख्य उपाध्याय था (म. आ. ६९.४८)। इसे भरत १.३२; भा. ९.२१; प्ररकण्व तथा मेघातिथि देखिये)। ने एक हजार पद्मभार शुद्ध जम्बूनद स्वर्ण (म. द्रो. परि. कण्व गोत्र गोत्रियों को दक्षिणा नहीं देनी चाहिये, ऐसा १.८. पंक्तिं. ७५०-७५१) तथा एक हजार पद्म घोड़े सत्याषाढश्रौतसूत्र (१०.४ ) में दिया गया है। क्यों कि । (म. शां. २९.४०) दक्षिणा में दिये । भरत के यज्ञ के गोपीनाथ भट्ट ने भाप्य में “कप्वं तु बधिरं विद्यात्" समय यह अथवा इसका पुत्र रहने की संभावना है। ऐसा कहा है, परंतु उसे भी यह अँचा नहीं । ब्रह्मदेव के | इसका पुत्र बाहीक (काण्व ) था (ब्रह्म. १४८)। पुष्कर क्षेत्र के यज्ञ में यह था (पद्म. स. ३४)। ३. कश्यप का पुत्र । कलियुग शुरू हो कर एक हजार
धर्मशास्त्रकार- एक धर्मशास्त्रकार । आपस्तंब ने प्रथम वर्षों के बाद इसने भरतभूमि में जन्म लिया। उसकी पत्नी “किसका अन्न ग्राह्य है ?" ऐसी शंका उद्धृत कर, उसके देवकन्या आर्यावती थी। उपाध्याय, दीक्षित, पाठक, समाधान के लिये कण्व के ग्रंथ का उद्धरण दिया है शुक्ल, मिश्र अग्निहोत्री, द्विवेदी, त्रिवेदी, पांडव, चतुर्वेदी 'किसी ने भी आदर से दिया हुआ अन्न ग्राह्य है' इसके पुत्रों के नाम हैं । कण्व ने अपनी संस्कृत वाणी से (आप. थ. १.६.१९.२-३)। कण्व के ग्रंथ के बहुत से । मिश्र देश के दस हजार म्लेच्छों को वश में किया। इन
११२