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प्राचीन चरित्रकोश
और्व
क्रोधित हए तथा भार्गव ऋषियों के शरण आने पर भी इसका पुत्र ऋचीक (म. आ.६०.४६, अनु. ५६)। उनका संहार करना प्रारंभ कर दिया । इतना ही नहीं वे गर्भ / परीक्षित् शापित होने पर जो ऋषि उससे मिलने आये का भी नाश करने लगे। तब भगुवंश की स्त्रियाँ भयभीत | उनमें यह था (भा. १.१९)। और्व तथा ऋचीक एक हो कर, हिमालय की ओर चली गई। जाते जाते एक | हैं (विष्णुधर्म, २.३२)। इसका नाम अग्नि होगा तथा स्त्री ने अपना गर्भ गर्भाशय से निकाल कर जंघा में रख ऊर्व का वंशज होने के कारण, इसे और्व नाम प्राप्त हुआ लिया। यह बात एक स्त्री ने राजा को बताई । हैहय गर्भ होगा। इसका काल जमदग्नि के पश्चात् का होगा (कूर्म. १. का वध करने वाला ही था, इतने में सौ वर्षों तक जंघा में | २१)। इसके नाम का अर्थ उर्वी पर रहनेवाला अर्थात् रहा वह गर्भ बाहर आया। उसके तेज से वे क्षत्रिय नेत्र- | पृथ्वी पर रहनेवाला होगा। जमदग्नि गंगा किनारे रहते थे। हीन हो गये। बाद में उन अंधे क्षत्रियों द्वारा और्व को, | इस जानकारी में यह भी पाया जाता है कि, और्व मध्य'प्रसन्न हो' कहते ही उन्हें दृष्टि प्राप्त हो गई। देश में रहते थे, तथा वहीं इनके विवाह हुए थे (पन. माता के ऊरु से निर्माण होने के कारण इसे और्व नाम उ. २६८.३)। परंतु ब्रह्मांड में उल्लेख है कि, यह नर्मदा प्राप्त हुआ (म. आ. ६०.४५, १६९-१७०, अनु. | पर था (ब्रह्माण्ड. ३.२६, ४५)। इसने सगर की सहा
यता की। परंतु रामायण में भृगु द्वारा सहायता का उल्लेख
है। यह अंतिम और्व है। हैहयादिकों का नाश सगर हैहयवंशीय राजाओं ने अपने ज्ञातिबांधवों को कष्ट
| द्वारा होने पर भी कहा जाता है कि, वह सारा पराक्रम दिया, इसलिये बड़े होने पर भी इसने उनके संहार
परशुराम ने किया। इसका कारण यह है कि, और्व ने के लिये तप किया। परंतु हमें मृत्यु प्राप्त हो, इस हेतु से
उसे आग्नेयास्त्र सिखाया था। परंतु आगे चल कर इन ही हमने यह अन्यायपूर्ण कृत्य किया। हमारी मृत्यु के
दो औवों में गडबड हो गई ऐसा प्रतीत होता है। यह लिये तुम क्रोधाविष्ट मत बनो, ऐसा पितरों ने उसे
भृगुगोत्रीय हो कर मंत्रकार भी था। बताया । तब पितरों के संदोष के लिये इसने अपना 'क्रोधाग्नि समुद्र में छोड़ दिया । पराशर को राक्षसों के २. इसका पिता भृगुवंशीय ऊर्व, जब तप कर रहा था, नाश से निवृत्त करने के लिये वसिष्ट ने यह कथा बताई
तब सब देव एवं ऋषि इससे मिलने आये। अनंतर (म. आ. १६९-१७० )। इसका उग्र तप देख कर |
विवाह कर के प्रजोत्पादन करने की प्रार्थना ऋषियों ने इससे ब्रह्मदेव ने सरस्वती के द्वारा इसे समुद्र में डाल दिया।
की । तब इसे ऐसा लगा, 'इन ऋषियों के मत में मेरे वहाँ अग्मितीर्थ उत्पन्न हुआ (स्कन्द. पु. ७. १. ३५)।
जैसा तपस्वी, बिना विवाह के प्रजोत्पादन करने में
असमर्थ रहेगा।' इसलिये इसने कहा, 'यह देखो, . अयोध्याधिपति वृकपुत्र बाहु को उसके शत्रु हैहय मैं पुत्र उत्पन्न करता हूँ किन्तु वह भयंकर तथा तालजंघ ने राजच्युत किया। बाद में इसके आश्रम के | होगा।' ऋषियों को ऐसा बताकर इसने अपनी जंघा अग्नि पास आ कर बाहु की मृत्यु हो गई। तब उसकी पत्नी सती | में डाली । तदनंतर एक दर्भ से उसका मंथन करके जाने लगी। परंतु यह गर्भवती है, यह देखकर और्व ने | उस जंघा से एक- पुत्र निर्माण किया । उसीका नाम उसे सती जाने से निवृत्त किया। बाद में उसे सगर नामक | और्व है (मत्स्य. १७५)। पुत्र के साथ उत्पन्न माया, पुत्र हुआ। और्व ने सगर को अनेक अस्त्र तथा शस्त्रों की | ऊर्व ने हिरण्यकश्यपु को दी (पद्म. स. ३८; ब्रह्माण्ड. ३. शिक्षा दी । राम का प्रख्यात आग्नेयास्त्र भी सिखाया।। १.७४-१००)। जन्मतः यह खाने के लिये मांगने लगा। तदनंतर सगर ने हैहय, तालजध, यवन इन सबको जीत तथा इसने संसार का दाह करना आरंभ कर दिया। इस लिया । तब वसिष्ठ ने इसे राज्याभिषेक किया। राज्या- प्रकार तीन दिन दाह करने के बाद ब्रह्मदेव ने स्वयं भिषेक के समय, यह आया तथा इसने केशिनी एवं सुमति | आकर इससे प्रार्थना की। जहाँ मैं स्वयं रहता है (नारद. १.८), प्रभा तथा भानुमती (लिङ्ग. १.६६ ) इन | उसी समुद्र में इस बालक को स्थान देना मान्य किया सगर की पत्नियों को संतानवृद्धिदायक वर दिये (मत्स्य. तथा कहा कि, मैं स्वयं एवं यह बालक युग के अंत में १२; पद्म. स. ८; लिङ्ग. १. ६६; नारद. १. ७. ८; संसार का नाश करेंगे । ऐसा कहने पर अपना तेज भा. ९.८; ९. २३) इसने सगर का अश्वमेध किया | पितरों में डाल कर यह और्वाग्नि समुद्र में रहने के लिये (भा. ९.८)।
| गया (मत्स्य. १७५, पद्म, स. ३८-४१)। यह विष्णु प्रा. च. १४]
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