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कालगणनापद्धति
कालनिर्णयकोश
कालगणनापद्धति
युगपीढीया ऐतिहासिक
इसी कारण जयचंद्रजी ने कृतयुग, त्रेतायुग, एवं त्रेतायुग-२३०० ई. प.-१९०० ई. पू. द्वापरयुग के पौराणिक कालविभाजन की समीक्षा राजनैतिक द्वापारयुग-१९०० ई. पू.-१४२५ ई. पू. दृष्टि से करने का सफल प्रयत्न किया है । इस समीक्षा में पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट वंशावलियाँ संपूर्ण न हो उन्होंने वैवस्वत मनु से ले कर भारतीय युद्ध तक ९४ | कर उनमें केवल प्रमुख राजा ही समविष्ट किये गये हैं | पीढीयों का परिगणन करनेवाले पार्गिटर के सिद्धान्त को | इस बात पर ध्यान देते हुए, केवल उपलब्ध राजाओं के ग्राह्य माना है, एवं उसी सिद्धान्त को भारतीय युद्ध तक | पीढ़ीयों के परिगणन के आधार पर कालनिर्णय का कृत, त्रेता एवं द्वापरयुग समाप्त होने के जनश्रुति से | कौनसा भी सिद्धांत व्यक्त करना अशास्त्रीय प्रतीत होता है। मिलाने का प्रयत्न उन्होंने किया है। इन दोनों सिद्धान्तों | फिर भी पौराणिक जानकारी को तर्कशुद्ध एवं ऐतिहासिक को एकत्रित कर वे सगर राजा (४० वीं पीढ़ी) के साथ | चौखट में बिठाने का एक प्रयत्न इस नाते जयचंद्रजी का कृतयुग की समाप्ति, राम दाशरथि (६५ वीं पीढी) के उपर्युक्त सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण प्रतीत होता है। साथ त्रेतायुग का अंत, एवं कृष्ण (९५ वीं पीढ़ी) के मन्वन्तर कालगणना पद्धति-पौराणिक साहित्य में देहावसान के साथ द्वापरयुग की समाप्ति ग्राह्य मानते हैं।
उपलब्ध अन्य एक कालपरिगणनापद्धति ' मन्वन्तर (वायु. ९९-४२९)। उनका यही सिद्धांत निम्नलिखित
पद्धति' नाम से सुविख्यात है। इस परिमाणपद्धति के तालिका में ग्रथित किया गया है:
अनुसार, कुल चौदह मन्वन्तर दिये गये हैं, जिनके अधिपति राजाओं को मनु कहा गया है। चौदह मन्वन्तर
मिल कर एक कल्प बन जाता है । मन्वन्तर कालगणना कालमर्यादा कालमर्यादा
पद्धति के परिमाण पौराणिक साहित्य में निम्नप्रकार दिये ।
गये है :कृतयुग १-४०
प्रारंभ से ४०४ १६ = २ त्रुटि = ३ निमेष. पीढ़ीयाँ सगर राजा ६४० वर्ष
२ आधा निमेष = १ निमेष. तक
२५ निमेष = १. काष्ठा.
३० काष्ठा = १ कला. त्रेतायुग ४१-६५ सगर राजा २५४ १६ = पीढ़ीयाँ से राम ४०० वर्षे
३० कला = १ मूहूर्त. दाशरथि तक
३० मुहूर्त = १ अहोरात्र.
२५ अहोरात्र दिन = १ पक्ष. द्वापरयुग | ६६-९५ रामदाशरथि ३०४ १६ =
२ पक्ष = १ महीना. पीढीयाँ से कृष्ण तक ४८० वर्ष
६ महीने = १ अयन.
२ अयन = १ वर्षे । कलियुग - | भारतीय युद्ध के पश्चात् (१०५० वर्ष)
४३ लक्ष २० हजार वर्ष = १ पर्याय (महायुग), जिसमें कृत, त्रेता, द्वापर एवं
कलि के प्रत्येकी एक युग समाविष्ट है। कुल पीढ़ीयाँ -९५ पहले तीन युगों की
७१ पर्याय = १ मन्वन्तर. कालमर्यादा-१,५२० वर्ष
१४ मन्वन्तर = १ कल्प,
(भवि. ब्राह्म. २; मार्क. ४३; विष्णु. १.३; मत्स्य. जयचन्द्रजी के अनुसार, कृत, त्रता एवं द्वापर युगों
१४२, स्कंद. ६.१५४; ७.१.१०५, पन. सृ. ३)। की कुल कालावधि क्रमशः ६५०,४००, एवं ४७५ साल मानी गयी है। भारतीय युद्ध का काल १४२० ई. पू.
पौराणिक साहित्य के अनुसार, वराहकल्प में से निर्धारित करते हुए वे कृतयुग, त्रेतायुग, एवं द्वापरयुग
स्वायंभुव, स्वारोचिष, उत्तम, तामस, रैवत एवं चाक्षुष का कालनिर्णय निम्नप्रकार करते हैं :
नामक छः मन्वन्तर अब तक हो चुके है, एवं वर्तमान काल
में वैवस्वत मन्वन्तर शुरू है । इस मन्वन्तर के पश्चात् कृतयुग-२९५० ई. पू.-५३०० ई. पू. | सावर्णि, दक्षसावर्णि, ब्रह्मसावर्णि, धर्मसावर्णि, रुद्रसावर्णि,
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