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________________ शिशुनाग वंश प्राचीन चरित्रकोश मानवेतर वंश अपना स्वतंत्र राजवंश मगध देश में प्रस्थापित किया। इस वंश में निम्नलिखित राजा प्रमुख थे:-१. पुष्यमित्र इस वंश के कुल दस राजा थे, जिन्होंने ३६० वर्षों तक -३६ वर्ष; २. अग्निमित्र-८ वर्ष; ३. वसुज्येष्ठ-७ वर्ष, राज्य किया । इस वंश का सर्वाधिक सुविख्यात राजा। ४. वसुमित्र-१० वर्ष; ५. अंध्रक-२ वर्षः ६. पुलिंदकअजातशत्रु था, जिसके राज्यकाल में बौद्ध धर्म का ३ वर्षः ७. घोष-३ वर्ष ८. वज्रमित्र-९ वर्षः ९. उदय हुआ। भागवत-३२ वर्ष; १०. देवभूमि-१० वर्ष । इस वंश के निम्नलिखित राजा प्रमुख माने जाते हैं: __अन्य भविष्य वंश-उपर्युक्त प्रमुख वंशों के अतिरिक्त - १. शिशुनाग-४० वर्ष; २. काकवर्ण-३६ वर्ष ३. क्षेम निम्नलिखित 'भविष्य वंशों का निर्देश भी पौराणिक धर्मन्-२० वर्ष; ४. क्षत्रौज्स् (अजातशत्रु प्रथम)-४० वर्ष; साहित्य में पाया जाता है:- १. अवन्ती; २. आभीर; ५. बिंबिसार श्रेणिक-२८ वर्ष; ६. अजातशत्रु द्वितीय ३. ऐक्ष्वाक, जिसका अंतिम राजा सुमित्र माना जाता है; २५ वर्ष; ७. दर्शक-२५ वर्ष; ८. उदधिन्-३३ वर्ष; ९.. | ४. कलिंग; ५; काशी; ६. कुरु; ७. कैलकिल; ८. गर्द भिल; नन्दिवर्धन-४० वर्ष; १०. महानन्दिन्-४३ वर्ष। ९. तुषार; १०. नंद; ११. पंचाल; १२. पौरव, जिनका शंग वंश-इस वंश की स्थापना पुष्यमित्र शुंग ने की अंतिम राजा क्षेमक माना जाता है; १३. मुरुंड; १४. थी, जो मगध देश के अंतिम मौर्यवंशीय राजा बृहद्रथ मैथिल; १५. मौन; १६. यवन, १७. शक; १८. शूरसेन; का सेनापति था। उसने बृहद्रथ राजा का वध कर १९. हूण (ब्रह्मांड, ३.७४; वायु. ९९.२०७-४६४; शुगवंश की स्थापना की। इस वंश में कुल दस राजा थे, विष्णु. ४.२४; भा. १२.१; मत्स्य. २७३)। इन में से जिन्होंने कुल एक सौ बारह वर्ष तक राज्य किया। बहुत सारे वंश ऐतिहासिक साबित हो चुके हैं। पुष्यमित्र स्वयं शूद्रवर्णीय था। शुंगवंश का राज्यकाल ई. गर्दभिल, मौन, मुरुंड ऐसे थोड़े ही वंश हैं कि, जिनकी स. पू. १८४-ई. स. पू. ७२ तक माना जाता है। ऐतिहासिकता अब तक सिद्ध नहीं हो पायी है। (५) मानवेतर वंश - पौराणिक साहित्य में देव, गंधर्व, दानव, अप्सरा, वानरवंश-ब्रह्मांड पुराण में वानरों को पुलह एवं राक्षस, यक्ष, नाग, गरुड आदि अनेकानेक मानवेतर वंशों | हरिभद्रा की संतान कहा गया है, एवं उनके ग्यारह का निर्देश प्राप्त है। इनमें से बहुत सारे मानवेतर वंशों प्रमुख कुल दिये गये है:- १. द्वीपिन् । २. शरभ; को पौराणिक साहित्य में कश्यप ऋषि की संतान मानी गयी | ३. सिंह; ४. व्याघ्र; ५. नील; ६. शल्यक; ७. ऋश; ८. है, जिसकी तेरह पत्नियों के द्वारा पृथ्वी के सारे मानवेतर मार्जार. ९. लोभास; १०. लोहास; ११. वानर; १२. वंशों का निर्माण होने का निर्देश वहाँ प्राप्त है:-- मायाव (ब्रह्मांड. ३.७.१७६; ३२०)। सप्तर्षियों की संतान-पौराणिक साहित्य एवं महाभारत राक्षसवंश--वायु में राक्षसों को पुलह, पुलस्त्य एवं अगस्त्य ऋषियों की संतान कहा गया है (वायु. ७०.५१ में अन्यत्र राक्षस, यक्ष, एवं गंधर्व आदि को पुलह, | पुलस्त्य, अगस्त्य जैसे सप्तर्षियों की संतान कहा गया है । -६५)। दैत्यो में से हिरण्यकशिपु एवं हिरण्याक्ष का स्वतंत्र वंशवर्णन भी प्राप्त है (वायु. ६७; ब्रह्मांड ३.५)। (म. आ. ६०.५४१)। जिस प्रकार समस्त मानवजाति का पिता मनु वैवस्वत माना जाता है, उसी प्रकार समस्त पौराणिक साहित्य में असुर, दानव, दैत्य एवं राक्षसमानवेतर सृष्टि के प्रणयन का श्रेय सप्तर्षियों को दिया | जातियों का स्वतंत्र निर्देश प्राप्त है (मत्स्य. २५.८; १७; गया प्रतीत होता है। पुलस्य एवं पुलह ऋषियों का सविस्तृत | ३०; ३७; २६.१७)। किन्तु आगे चल कर इन जातियों वंशवर्णन वायु में प्राप्त है ( वायु. ७०.३१-६३, ६४- का स्वतंत्र अस्तित्व नष्ट हो कर, अनार्य एवं दुष्ट जाति के ६५)। लोगों के लिए ये नाम प्रयुक्त किये जाने लगे। ११५५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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