________________
काण्वायन वंश
काण्वायन वंश का राज्य समाप्त हुआ । इस वंश के 'दिन उपादि से प्रतीत होता है कि, पाण्यायन एवा ब्राह्मण थे। इनका राज्यकाल ई. स. ७२-२७ माना जाता है।
,,
पौराणिक राजवंश
शिशुनाग वंद
इस वंश में से सेनाजित राजा के राज्यकाल में मत्स्य, वायु एवं ब्रह्मोद पुराणों की रचना की गयी थी। वृहद्रथ से लेकर रिपुंजय तक इस वंश में कुल बत्तीस राजा हुए, एवं उन्होंने एक हजार वर्षों तक राज्य किया। इनमें से मत्स्य पुराण की रचना के पश्चात् उत्पन्न हुए श्रुतंजय राजा के सोलह राज्य एवं उन्होंने ७२३ क पश्चात् वर्षों राज्य किया ।
इसके निम्नलिखित राजा प्रमुख :-१. वसुदेव ९ वर्ग भूमिमित्र १४ वर्ष ३. नारायण १२ - - - वर्षः ४
१० वर्ष ।
नंद वंश-मगधदेश में राज्य करनेवाले इस वंश में कुल नौ राजा हुए, जिन्होंने सौ वर्षों तक राज्य किया। इनका राज्यकाल ४२२ ई. पू. से ३२२ ई.पू. तक माना जाता है।
2
इनका सर्वप्रथम राज्य महापद्म नंद था, जो महानंदिन राजा को एक शुद्ध स्त्री से उत्पन्न हुआ था। उसने ८८ वर्षों तक राज्य किया एवं पृथ्वी के समस्त क्षत्रियों का उच्छेद किया। उसके पश्चात उसके आठ पुत्रों में से सुकल्प आरूढ राजा राजगद्दी पर आमद हुआ, एवं उसके पश्चात् अन्य सात नंदवंशीय राजा हुए। अंत में कौटिल्य नामक ब्राह्मण ने इस वंश को जड़मूल से उखाड़ दिया, एवं मंगल का राज्य मौर्यवंशीय राजाओं के हाथ चला गया। भविष्यपुराण में मंडवंशीय राजाओं की नामावलि निप्रकार दी गयी है। -१ व २ नं परानंद ४. समानंद ५, प्रियानंद ६. देवानंद ७ यशदत्त ८ मौर्यानंद महानंद
प्रयोत वंश-मगधदेश के इस राजवंश की स्थापना शुनक ( पुलिक) के द्वारा की गयी थी, जिसने अवंति के राजाओं में से एक राजा का वध कर, अपने पुत्र प्रद्योत को राजारी पर बिठाया। इस वंश में कुल पाँच राजा उत्पन्न हुए थे, जिन्होंने १२८ तक राज्य किया था इनका राज्य ई.पू. ६८९५५२ माना जाता था। ये राजा मगध के बार्हद्रथ वंश के राजाओं से काफी उत्तरकालीन माने जाते हैं ।
इसके निम्नलिखित राजा प्रमुख माने जाते हैं:१. २३ वर्ष २. पालक २४ वर्ष २. विशाखयूप२० वर्ष ४.२१ वर्ष ५ नदिवर्धन २० वर्ष मगध वंश (द्रवंश ) भारतीय युद्ध के समय इस वंश का जरासंधपुत्र सहदेव राज्य करता था। इस युद्ध में सहदेव के मारे जाने के बाद, उसका पुत्र सोमाधि गिरिव्रज का राजा बन गया ।
इस प्रकार मगधदेश का 'भविष्यवंश सोमाधि राजा से प्रारंभ होता है, एवं रिपुंजय राधा से समाप्त होता है।
इन राजाओं की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है, यहाँ इस वंश के केवल प्रमुख राजाओं की जानकारी दी गयी है (३.७४ वा. ९९.२९६२०९ मा २७३ विष्णु. ४.२२: मा. ९.२२) ।
-
5
इस वंश में उत्पन्न हुए प्रमुख राजाओं के नाम एवं उनमें से हर एक का राज्यकाल निम्नप्रकार था :- १. सोमावि (सोमापि, मारि) ५८ वर्ष २ -- श्रुतश्रवस् (श्रुतवत्) - ६४ वर्ष २. अयुतायु (अप्रतिवर्मनः अयुतायुत) - २६ वर्ष ४. निरमित्र ४५ ५६ वर्ष ६२३ वर्ष ७ सुक्षत्र - बृहत्कर्मन् सेनाजित् ( सेनजित् कर्मजित्) -- २३ वर्ष ८. श्रुतं जय --४० वर्ष ९. विभु (महाबाहु ) २८ व २०१६ वर्ष, वर्ष ११. क्षेम २८ वर्ष १२. मुक्त (अनु) - ६४ वर्ष १२. सुनेत्र (नेत्र) २५ वर्ष १४. (नृपति) ५८ वर्ष १५. मिनेन) २८ को ( ३८ वर्ष ); १६. दृढसेन ( द्युमत्सेन ) - ४८ वर्ष १७. महीनेत्र ( सुमति ) -- ३३ वर्ष १८३२ १९. सुनेत्र ( सुनीत ) - - ४० वर्ष, २० सत्यजित् -- ८३ वर्ष २१. विश्वजित (वीरजित् ) -- २५ वर्ष २२ रिपुंजय -५० वर्ष
मौर्य वंश -- मगध देश के इस वंश की स्थापना चंद्रगुप्त मीर्य के द्वारा हुई इस वंश में कुल दस राज थे, जिन्होंने कुल १२० वर्षों तक राज्य किया। इसका शासनकाल ई. स. पू. ३२१-१८४ माना जाता है।
इस वंश में निम्नलिखित राजा प्रमुख थे:- १. चंद्रगुप्त२४ वर्ष २. विंदुसार (हसार--२५ वर्ष २ क वर्धन ( अशोक ) - २६ वर्ष; ४. कुनाल ( सुयशस् ) -८ ५ र ८ संपति ७. शालिशुक - १३ वर्ष ८. देवधर्मन्- ७ वर्ष ९. शतबर्मन-८ वर्ष १०.७ वर्ष ।
शिशुनाग वंश इस पेशका संस्थापक का देश का राजा शिशुनाग था । उसने मगव देश के प्रद्योत वंशीय अन्तिम राजा नन्दिवर्धन को पर १९५४