________________
पूरु वंश
प्राचीन चरित्रकोश
यदु वंश
महाभारत में उसी इलिना का निर्देश 'इलिन (अनिल) | । बभ्रु वंश-बभ्रु दैवावृध नामक यादवराजा के द्वारा राजा के नाम से किया गया है।
स्थापन किये गये इस वंश के नृप भोज मर्तिकावतिक नाम (२)सो. ऋक्ष, वंश-- हस्तिन् राजा को अजमीढ एवं से सुविख्यात थे (ब्रह्म. १९.३५-४५)। यह वंश यादवद्विमीढ नामक दो पुत्र थे । इसमें से अजमीढ एवं ऋक्ष | वंशांतर्गत क्रोष्टु वंश की ही उपशाखा माना जाता था से ले कर कुरु तक का वंश ऋक्ष वंश (सो. ऋक्ष) नाम | (हैं. व. १.३७)। से सुविख्यात था । इस शाखा के राजाओं की नामावलि भजमान वंश-(सो. क्रोष्ट.) यादव राजा अंधकके संबंध में महाभारत एवं पुराणों में एकवाक्यता है, पुत्र भजमान के द्वारा स्थापित इस वंश को अंधक वंश किन्तु फिर भी इन दोनों में प्राप्त नामावलि अपूर्ण सी
नामान्तर भी प्राप्त था (यदु देखिये; ब्रह्म. १५.३२प्रतीत होती है । विशेष कर ऋक्ष राजा के पूर्वकालीन एवं | ४५, विष्णु, ४.१४; भा. ९.२४)। उत्तरकालीन राजाओं के संबंध में वहाँ प्राप्त जानकारी भरत वंश-(सो. पूरु.) पूरुवंशीय सम्राट भरत राजा अत्यंत संदिग्ध प्रतीत होती है। आगे चल कर ऋक्ष के. के वंश में उत्पन्न हुई पूरुवंश की सारी शाखाएँ भरतवंश से ही कुरुवंश का निर्माण हुआ। .
वंशीय कहलाती थी। इन उपशाखाओं में अजमीढ शाखा, (३) सो. कुरु.वंश--कुरुवंश की स्थापना करनेवाले कुरु । द्विमीढ़ शाखा एवं उत्तर एवं दक्षिण पांचाल के पुरुवंशीय राजा को परिक्षित् , जह्न एवं एवं सुधन्वन् नामक तीन पुत्र राजवंश समाविष्ट थे (वायु. ९९.१३४, मत्स्य. २४.७१: थे। इनमें से परिक्षित राजा को जनमेजय ( प्रथम ) नामक | ब्रहा. १३.५७)। पुत्र, एवं श्रुतसेन एवं भीमसेन नामक पौत्र थे। परिक्षित्
भोज वंश-(सो. सह.) हैहय वंश की पाँच उपराजा के इन पौत्रों का निर्देश राजा के नाते कहीं भी प्राप्त
| शाखाओं में से एक । अन्य चार उपशाखाओं के नाम नहीं है। इससे प्रतीत होता है कि, राजा के ज्येष्ठ पुत्र
वीतिहोत्र, शांति, अवंती एवं तुण्डिकेर थे (हैहय एवं हो कर भी उनका राज्याधिकार नष्ट हो चुका था। इस
बभ्रु वंश देखिये)। प्रकार परिक्षित् (प्रथम ) के पश्चात् जह्न राजा के पुत्र सुरथ |
मगध वंश-इस राजवंश की स्थापना कुरुपुत्र सुधन्वन्
राजा के वंश में उत्पन्न हुए वसु राजा के द्वारा की गयी हस्तिनापुर का राजा बन गया, एवं उसी राजा से कुरुवंश
थी। वसुराजा की मृत्यु के पश्चात् उसका पूर्वभारत में को कुरु माम प्राप्त हुआ। सुरथ से ले कर अभिमन्यु तक के राजाओं के संबंध में पौराणिक साहित्य में काफी एक
स्थित साम्राज्य उसके निम्नलिखित पुत्रों में निम्नप्रकार
बाँट दिया गया :- १. बृहद्रथ (मगध ); २. प्रत्यग्रह वाक्यता है।
(चेदि); ३. कुशांब (कौशांबी); ४. यदु (करूष); कुरु राजा का तृतीय पुत्र सुधन्वन् के वंशज वसु ने मगध
५. मावेल्ल (मत्स्य)। एवं चैद्य राजवंशों की स्थापना की (मगध वंश देखिये)। मगध राजवंश की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य
पौराणिक साहित्य में निम्नलिखित राजाओं को कौरव में प्राप्त है (विष्णु. ४.१९.१९; वायु. ९९.२१७-२१९; . कहा गया है, किन्तु कौरव वंशावलि में उनका नाम अप्राप्य | भा. ९.२२. ४९; ह वं, १.३२, ८८.९८)। इनमें से है:- १. अभिप्रतारिन् काक्षसे नि; २. उचैःश्रवस्; ब्रह्म की वंशावलि बृहद्रथ राजा के पौत्र ऋषभ राजा तक ३. कौपेय; ४. पौरव; ५. बाह्निक प्रातिपीय; ६. ब्रह्मदत्त । दी गयी है। विष्णु एवं भागवत में जरासंध को बृहद्रथ चैकितानेय ।
राजा का पुत्र कहा गया है। किन्तु वस्तुतः वह बृहद्रथ प्रतिक्षत्र वंश--इस वंश की स्थापना क्षत्रवृद्धपुत्र राजा की तेरहवी पीढ़ी में उत्पन्न हुआ था। प्रतिक्षत्र राजा के द्वारा हुई थी (क्षत्रवृद्ध देखिये)। यदुवंश अथवा यादव वंश--इस सुविख्यात राजपौराणिक साहित्य में इस वंश का निर्देश अनेक स्थानों पर | वंश का प्रारंभ यदुपुत्र क्रोष्ट्र के द्वारा हुआ। कालक्रम की प्राप्त है (भा. ९.१७.१६-१८ वायु. ९३.७-११; ब्रह्म. दृष्टि से इस वंश के कालखण्ड माने जाते हैं:-- १. क्रोष्ट ११.२७-३१; ह. वं. १.२९.१-५)।
से सात्वत तक; २. सात्वत से प्रारंभ होनेवाला बाकी बालेय क्षत्रिय वंश-बलि आनव राजा के द्वारा | उर्वरित भाग। पूर्व भारत में स्थापना किये गये अंग, वंग आदि वंशों से (१) क्रोष्टु से सात्वत तक-इस वंश की जानकारी उपन्न लोगों का सामुहिक नाम (अनु वंश देखिये)। बारह पुराणों में प्राप्त है (वायु. ९६.२५५, ब्रह्मांड. ३.
११४९