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यदुवंश
पौराणिक राजवंश
रजि वंश
की।
७०.१४; वायु, ९४-९६; ब्रहा. १३.१५३-२०७; ह. (इ) अंधक शाखा-अंधक राजा को कुल चार पुत्र वं. १.३६; २.३७-३८; पा. स. १२-१३; विष्णु. ४. थे, जिनमें कुकुर एवं भजमान प्रमुख थे। इन दो पुत्रों १२; भा. ९.२३.३०-३४)। महाभारत में भी इस वंश ने क्रमशः कुकुर एवं अंधक नामक राजवंशों की स्थापना की जानकारी प्राप्त है (म. अनु. २५१.२६)। की। ये दोनों वंश मथुरा प्रदेश में राज्य करते थे, एवं उनमें कोष्ट से ले कर परावृत्त तक के राजाओं के संबंध में |
क्रमशः कंस एवं कृष्ण उत्पन्न हुए थे। सभी पुराणों में प्रायः एकवाक्यता है। फिर भी कई (४) वृष्णि शाखा (कोष्ट शाखा)---वृष्णि राजा को पुराणाम पृथुश्रवस्, उशनस् , रुक्मकवच, एवं नित्ति सुमित्र (अनमित्र), युधाजित,देवमीढप एवं अनमित्र राजाओं के पश्चात् एक पीढ़ी ज्यादा दी गयी है। परावृत्त
। (माद्रीपुत्र ) नामक चार पुत्र थे, जिन्होने चार स्वतंत्र राजा को दो पुत्र थे, जिनमें से ज्यामघ नामक उनका
वंशों की स्थापना की। इन वंशों में उत्पन्न हुए प्रमुख यादव कनिष्ठ पुत्र यदुवंश का वंशकर राजा साबित हुआ। उसने
निम्न प्रकार थे:-१. सुमित्र शाखा-सत्राजित् , भंगकार, एवं उसके पुत्र विदर्भ ने सुविख्यात विदर्भराज्य की स्थापना
२. युधाजित् शाखा-श्वफल्क, अक्रूर; ३, देवमीष की। विदर्भराजा के ज्येष्ठपुत्र रोमणद ने विदर्भ का राज्य
शाखा--वसुदेव, बलराम एवं कृष्ण; ४. अनमित्र (मादीआगे चलाया। उसी के वंश में ऋथ (भीम), देवक्षत्र,
पुत्र) शाखा--शिनि, युयुधान सात्यकि, अमंग आदि । मधु आदि राजा उत्पन्न हुए, एवं उसी वंश में उत्पन्न हुए ____ अन्य शाखाएँ-उपर्युक्त यादव राजाओं में से शूरसात्वत राजा ने इस वंश का वैभव चरम सीमा पर पुत्र वसुदेव का बंश बसुदेव वंश (सो. बम.) नाम से पहुँचाया। मधु से ले कर सात्वत तक के राजाओं के सुविख्यात है। अंधकवंश ही एक उपशाखा विदरथवंश (सो. नामावलि के संबंध में पुराणों में एकवाक्यता नहीं है। विद्.)नाम से सुविख्यात हैं, जिसमें विदूरथपुत्र राजाधिदेव . विदर्भ राजा के द्वितीय पुत्र का नाम कौशिक था,
से ले कर तमौजस तक के राजा समविष्ट थे। जिसने चेदि देश में नये राजवंश की स्थापना की। वायु एवं मत्स्य में यादववंश की क्रमशः ग्यारह, एवं विदर्भ राजा के तृतीय पुत्र का नाम लोमपाद था, .
| एक सौ शाखाएँ दी गयी है (वायु. ९६.२५५, मत्स्य, जिसके वंश में उत्पन्न हुए तेरह राजाओं की नामावलि
४७.२५-२८)। भागवत एवं कर्म में निम्न प्रकार दी गयी है:-१ लोमपाद: इन शाखाओं का विस्तार केवल मथुरा में ही नहीं, २. बभ्र; ३. आहृति; ४. श्वेत; ५. विश्वसह; ६. कौशिकः बल्कि दक्षिण हिंदुस्थान में भी हुआ था (ह. व. २. ७. सुयंत; ८. अनल; ९. श्वेनि; १०. द्युतिमंत; ११. ३८.३६-५१)। वपुष्मन्त; १२. बृहन्मेधस् ; १३. श्रीदेव; १४. वीतरथ यदु राजा का अन्य एक पुत्र सहस्रजित् ने सुविख्यात (भा. ९.२४.१-२)। किन्तु इस वंश का राज्य कहाँ था, हैहयवंश की स्थापना की, जो यादववंश की ही एक इस संबंध में कोई भी जानकारी वहाँ नहीं दी गयी है। शाखा मानी जाती है (हैहय वंश देखिये)।
(२) सात्वत के पश्चात-(सो. वृष्णि.) सात्वत राजा ने "पौराणिक वंशों की तालिका" में दी गयी यादववंश इक्ष्वाकुवंशीय शत्रुघातिन् राजा से मथुरा नगरी को जीत की जानकारी विष्णुपुराण का अनुसरण कर दी गयी है। कर वहाँ अपना राज्य प्रस्थापित किया । सात्वत राजा को | अन्य पुराणों में प्राप्त जानकारी वहाँ कोष्टक में दी भजमान, देवावृध, वृष्णि, अंधक नामक चार पुत्र थे, गयी है। जिनके द्वारा प्रस्थापित किये गये वंश वृष्णि (सो. वृष्णि.) ययाति वंश--ययाति राजा के यदु, पूरु, तुर्वसु, सामूहिक नाम से सुविख्यात थे। इस वंश की निम्नलिखित | द्रुहयु, अनु आदि पाँच पुत्रों के द्वारा उत्पन्न हुए राजशाखाएँ थी:
वंश 'ययाति बंश' सामूहिक नाम से विख्यात ये (अ) भजमान शाखा-भजमान एवं उसके वंश में (वायु. ९३.१५-२८)। उत्पन्न हए अन्य राजा मथुरा में ही राज्य करते थे। रजि वंश-आयु राजा के रजि नामक पुत्र के द्वारा
(आ) देवावृध शाखा--देवावृध एवं उसका पुत्र बभ्र उत्पन्न हुआ वंश 'रजि वंश' नाम से विख्यात है। आगे ने मार्तिकावत नगरी में राज्य करनेवाले भोज राजवंश | चल कर इसी वंश से 'राजेय क्षत्रिय' नामक लोकसमूह की स्थापना की।
| का निर्माण हुआ (वायु. ९२.७४-१)। ११५०