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________________ द्विमीद वंश राजवंश की स्थापना की, जो द्विमीढ राजवंश नाम से प्रसिद्ध हुआ (ह. वं. १.२० विष्णु. ४.१९.१३, भा. ९.२१, २७ - ३०; वायु. ९९.१८४; १९३० मत्स्य. ४९. ७०-७९ ) । जनमजेय राजा के पश्चात् यह वंश कुरुवंश में शामिल हुआ। वायु में प्राप्त द्विमवंशीय राजाओं के नाम एवं वंशक्रम की तालिका पौराणिक राजवंशों की नामावलि दी गयी है । मत्स्य एवं हरिवंश में इस राजवंश की स्थापना अजमीढ राजा के द्वारा की जाने का निर्देश गलती से किया गया है। विष्णु में द्विमीट राजा को भल्लाट राजा का पुत्र कहा गया है, जो निर्देश भी अनैतिहासिक प्रतीत होता है। पौराणिक राजवंश वायु एवं विष्णु में प्राप्त इस वंश की नामावलि में उन्नीस राजाओं के नाम प्राप्त है। विष्णु भागवत एवं गरुड में इनमें से सुबर्मन्, सार्वभौम, महत्पौरव एवं रुक्मरथ राजाओं के नाम अप्राप्य हैं। भागवत में उग्रायुध राजा को नीप कहा गया है। इस राजा ने महाटपुत्र जनमेजय राजा का वध कर दक्षिण पांचाल देश की राजगरी प्राप्त की। पश्चात् भीष्म ने उग्रायुध राजा का वध किया | नीप वंश--- (सो. पू.) इस वंश की स्थापना पार राजा के पुत्र नीप राजा ने की। इस वंश में उत्पन्न हुए जनमेजय दुर्बुद्धि नामक कुलांगार राजा का उग्रायुध ने वध किया, एवं इस प्रकार नीपवंश नष्ट हो कर द्विमीढवंश में सम्मीलित हुआ (मत्स्य. ४९; ह. वं. १.२० ) 1 नील वंश -- उत्तर पांचाल देश का एक सुविख्यात राजवंश, जो अजमीदपुत्र नील के द्वारा स्थापित किया गया था। इस वंश में उत्पन्न हुए नील से लेकर पृषत् तक के सोलह राजाओं का निर्देश पुराणो में अनेक स्थानों पर प्राप्त है (वायु. ९३.५५ - १०४; ब्रह्म. १३.२-८; ५०-६२: ८०-८१३ . ६ १.२०.३१-३२ विष्णु. ४. १९; मा. ९.२० - २१९ म. आ..८९-९०९ मत्स्य. ४९. १-४२ ) । इस वंश के भम्यश्व राजा को 'पांचाल' सामूहिक नाम धारण करनेवाले पाँच पुत्र थे, इसी कारण इनके राज्य को ' पांचाल ' नाम प्राप्त हुआ । यह राजवंश बहुत ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है, क्यों कि, इस वंश में उत्पन्न हुए मुद्गल, वध्यश्व, दिवोदास, सुदास, च्यवन, सहदेव, सोमक, पिजवन आदि राजाओं का निर्देश वैदिक साहित्य में प्राप्त है। पूरु वंश किया, एवं दक्षिण पांचाल देश का राज्य उसे दे दिया । इसी वंश की एक शाखा ( अहल्या- शतानंद ) आगे चल कर 'आंगिरस ब्राह्मण' बन गयी । पुरूरवस वंश - पुरुरव राजा एवं मेनुकन्या इ से उत्पन्न 'सोमवंश' का नामांतर । पुरूरवम् से ले कर आयु, नहुष, ययाति, एवं यदु तक का राजवंश पुरूरवस् वंश (सो. पुरूरवस्. ) नाम से सुविख्यात है । पुरूरवम् से ले कर आयुपुत्र अनेनस् तक का वश 'आयु वंश' (सो. आयु ) नाम से सुविख्यात है । :-- ऋक्ष, पूरु वंश - ( सो. पूरु.) ययातिपुत्र पुरु से उत्पन्न हुआ वंश पूरु वंश नाम से सुविख्यात है। इस वंश के तीन प्रमुख भाग माने जाते हैं : १. सो. एरु, जिसमें पर ने ले कर अजमीढ तक के राजा समाविष्ट थे; २. सो. जिसमें अजमीढ़ से से कर कुरुप के राजा समाजि ३. सो. कुरु, अथवा सो जल, जिसमें कुरुपुत्र अह्न से ले कर पाण्डवों तक के राजा समाविष्ट थे । इन तीनों वंशों की जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है (बा. ९३.५५१०४ ब्रह्म. १२.२-८३५०-६३९८०-८१ ६.१ २०.३१-२२ विष्णु. ४.१९ . ९२०-२१ म. आ. ८९-९०९ मत्स्य. ४९.१-४२ ) । इस वंश का अंतिम राजा द्रुपद था, जिसे जीत कर द्रोण ने उमर पांचाल देश का राज्य अपने आधीन כי ( १ ) सो. पूरु. वंश -- इस वंश के मतिनार राजा तक सभी पुराणों में एकवाक्यता है। किन्तु महाभारत में प्राप्त वंशावलि कुछ अलग ढंग से दी गयी है । वहाँ रौद्राश्व एवं रुचे राजाओं के नाम अप्राप्य है, एवं अहंयाति तथा मतिनार राजाओं के बीच निम्नलिखित दस राजाओं का समावेश किया गया है: २ जवान अवाचीन; ४. अरिह; ५. महामाम; ६. अयुतानयिन्; ७. अक्रोधन; ८. देवातिथिः ऋ १० । किन्तु महाभारत के द्वारा दी गयी यह नामावलि अनैतिहासिक प्रतीत होती है, क्योंकि वहाँ इन राजाओं के द्वारा अंग कलिंग एवं विदर्भ राजकन्याओं के साथ विवाह करने का निर्देश प्राप्त है, जो राज्य इस काल में अस्तित्व में नहीं थे। इससे प्रतीत होता है कि, इन राजाओं को पूरुवंश के तृतीय विभाग (सो. कुरु) में मुख्य ए ३. के दरम्यान अंतर्भूत करनेवाली पौराणिक परंपरा सहीं प्रतीत होती है । तंसु एवं दुष्यंत के दरम्यान उत्पन्न हुए राजाओं की नामावलि महाभारत एवं पौराणिक साहित्य में एवं अस्पष्ट रूप से प्राप्त है। पौराणिक साहित्य में दुष्यंत राजा की मातामही का नाम इलिना दिया गया है। ११४८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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