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________________ प्राचीन चरित्रकोश ऋचीक ऋक्ष ५. शुक्र का पुत्र । इसकी स्त्री विरजा (ब्रह्माण्ड, २. (सो. कुरु.) देवतातिथि तथा मर्यादा का पुत्र । ३.७.२११)। इसकी पत्नी अंगराजकन्या सुदेवा । पुत्र ऋक्ष (म. आ. • ऋक्षदेव-(सो. नील) शिखंडी के दो पुत्रों में से | ९०.२२-२३)। एक । यह भारतीय युद्ध में पांडवों के पक्ष में था। युद्ध में | ऋची-आप्नवान की पत्नी (ब्रह्माण्ड. ३.१.७४)। अपने रथ को वह सुनहले रंग के अश्व जोड़ता था • ऋचीक-भार्गवकुल का च्यवनवंशज एक प्रख्यात (म. द्रो. २३)। ऋषि (मनु. ४)। और्व का पुत्र (म. आ. ६०.४६; ऋक्षपुत्र-(सो.) भविष्यमतानुसार अक्रोधन का २,४; ह. वं. १.२७)। यह और्व की जंघा फोड़ कर पुत्र। बाहर आया (ब्रह्माण्ड, ३.१.७४-१००)। यह ऊर्व ऋक्षरजस्-एक समय मेरु पर्वत पर ब्रह्मा ध्यान का पुत्र है (म. अनु. ५६)। इसे काव्यपुत्र भी कहा है मग्न थे। तब उनकी आखों से आंसू गिरे, जिन्हें उन्होंने (ब्रह्म. १०)। इसका और्व ऋचीक कह कर भी उल्लेख अपने हाथों में घिस दिया तब उन अश्रु कणों में से यह है (विष्णुधर्म. १.३२)। उसी प्रकार अनेक स्थानों पर ऋक्षरजसू वानर उत्पन्न हुआ। एकबार प्यास लगने के अनेक बार इसे भृगुपुत्र, भार्गव, भृगुनन्दन, भृगु आदि भी कारण यह सरोवर के पास गया । उसमें अपने प्रति कहा है (म. व. ११५.१० ह. वं. १.२७; ब्रह्म. ३.१०; विव को शत्रु समझ युद्ध करने के लिये इसने सरोवर में वा. रा. बा. ७५.२२; पद्म. उ. २६८)। कार्तवीर्य के छलांग लगायी । वस्तुस्थिति ध्यान में आते ही यह बाहर वंशजों द्वारा अत्यधिक त्रास दिये जाने के कारण सब भार्गव आया। बाहर आते ही वह वानर न रह कर स्त्री हो ऋषि मध्य देश में पलायन कर गये । उस समय अथवा गया है ऐसा उसे लगा । अंतरिक्ष से इंद्र तथा सूर्य की उसके कुछ ही पहले ऋचीक का जन्म हुआ तथा जल्द दृष्टि इस पर पड़ी तथा दोनों ही काम विव्हल हुए। ही उनका मुखिया बन गया । बाल्यावस्था से इसने उत्कट काम विकार के कारण इंद्र का वीर्य इसके सिर पर अपना समय वेदानुष्ठान तथा तप में बिताया। एक बार तथा सूर्य का वीर्य इसके गले पर गिरा। (वाल ) केशों तीर्थयात्रा करते समय विश्वमित्री नदी के किनारे इसने .पर वीर्य गिरने के कारण वाली तथा (ग्रीवा) गले पर कान्यकुब्जराज गाधि की कन्या, स्नानहेतु आई हुई देखी। गिरने के कारण सुग्रीव उत्पन्न हुआ। रात्रि समाप्त होते उसके रूप से मोहित हो कर इसने उसके पिता के पास इसकी ही इस स्त्री को पुनरपि पहले का वानर स्वरूप प्राप्त माँग करने का निश्चय किया । हैहय के विरुद्ध गाधिराज · हुआ। तब यह अपने दोनों पुत्रों लोकोकर ब्रह्मा के पास की मित्रता संपादन करने के लिये यह विवाह तय किया आया तथा सारी हकीकत उसे बताई । ब्रह्मदेव ने ऋक्ष गया। यह जब माँग करने आया तब राजा ना नहीं कह रजस् की अनेक प्रकार से सांत्वना की तथा एक दूत के द्वारा सका । तब उसने कहा कि यदि तुम मुझे सहस्र श्याम। ऋक्षरजसू को किष्किंधा नगरी में राज्याभिषेक किया । वहाँ कर्ण अश्व लाकर शुल्क के तौरपर दोगे तो मैं अपनी • अनेक प्रकार के वानर थे। उनमें चातुर्वर्ण्य व्यवस्था प्रचलित थी। कालांतर में ऋक्षरजस् की मृत्यु हुई। यह कन्या तुम्हें दूंगा (म. अनु. ४.७-१० विष्णु. ४.७; भा. ९.१५.५-११)। सातसौ अश्व मांगे (स्कंद. ६. इसके पश्चात राज्य वाली को मिला (वा. रा. उ. | १६६)। परंतु वनपर्व में राजा कन्या देने के लिये तैय्यार प्रक्षिप्तसर्ग)। हो गया तथापि रूढि के तौरपर एक कानसे श्याम हज़ार ऋक्षशंग--काशी के उत्तर में मंदारवन में तप करने अश्व मांगे (११५.१२)। राजा का यह भाषण सुनते ही वाले दीर्घतपस् का कनिष्ठ पुत्र । चित्रसेन के बाण से इसकी यह तत्काल उस कान्यकुब्जदेशीय गंगा के किनारे गया तथा मृत्यु होने के कारण सब परिवार ने देहत्याग किया। परंतु वरुण की स्तुति कर के उससे आवश्यक अश्व प्राप्त किये बचे हुए दीर्घतपस् ने सबकी अस्थियाँ शूलभेद तीर्थ में (म. व.११५, अनु.४)। अश्वो वोढा नामक (ऋ. ९.११२) डालने के कारण सब स्वर्ग में गये (स्कन्द. ३.५३-५५)। चार ऋचाओं के सूक्त का पठन कर इसने अश्व प्राप्त किये ऋक्षा--अजमीढ की पत्नी । इसका पुत्र संवरण (म. | (स्कंद. ६.१६६)। जहाँ ये अश्व निर्माण हुए, वह स्थान आ. ९०.३९; ३ ऋक्ष देखिये)। कान्यकुब्ज देश में गंगा नदी के किनारे स्थित अश्वतीर्थ ऋच-(सो. कुरु, भविष्य.) विष्णु के मतानुसार नाम से प्रसिद्ध है। अश्व ले कर गाधि राजाने अपनी सुनीथपुत्र (रुच देखिये)। कन्या सत्यवती इसे दी। इसके विवाह में देव इसके पक्ष के ९५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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