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________________ ऋचीक बाराती थे (म. व. ११५) । ऋचीक ऋषि, सत्यवती भार्या को ले गया तथा आश्रम स्थापित कर गृहस्थधर्म चलाने लगा। तदनंतर का यह तपश्चर्या करने जाने लगा तब इसने पत्नी से वरदान मांगने के लिये कहा । उसने अपने लिये तथा माता के लिये उत्तम लक्षणों से युक्त पुत्र मांगा | उसके इस मांग से संतुष्ट हो कर इसने ब्राह्मणो त्पत्ती के लिये एक तथा क्षत्रियोत्पत्ती के लिये एक ऐसे दो चरु सिद्ध कर के उसे दिये (म. शां. ४९.१० अनु. ५६; ह. वं. १.२७; ब्रह्म. १०; विष्णु. ४.७; भा. ९.१५) इसने च तो दिये ही साथ ही यह भी बताया कि ऋतुस्नात होने पर तुम्हारी माता अश्वत्थ ( पीपल) तथा तुम गूलर को आलिंगन करो (म.व. ११५.५७०० अनु. ४ विष्णुधर्म. १.३२-३३ ) । दो घंटों को अभिमंत्रित कर बताया कि सत्यवती की माता वह वृक्ष की तथा सत्यवती पीपल की सहस प्रदक्षिणायें करे (लन्द, ६. १६६-६७ ) । बाद में गाधि ऋचीक के आश्रम में आया तब सत्यवती को पति द्वारा दिये गये चरु का स्मरण हुआ परंतु माता के कथनानुसार दोनों ने चरु बदल कर भक्षण किये । अल्पकाल में ही जब ऋचीक ने सत्यवती की ओर देखा तब उसे पता चला कि, चरुओं का विपर्यास हो गया है परंतु सत्यवती की इच्छानुसार क्षत्रिय स्वभाव का पुत्र न हो कर पौत्र होगा ऐसा ऋचीक ने इसे आश्वासन दिया । तदनंतर सत्यवती को जमदमि प्रभृति सौ पुत्र हुए वे सब शांति आदि अनेक गुणों से युक्त थे। परंतु जमदमि को रेणुका से उत्पन्न परशुराम उम्र स्वभाव का हुआ गाधि को विश्वामित्र हुआ तथा उसने अपने तपःसामर्थ्य से पुनः ब्राह्मणस्य प्राप्त किया (म. आ. ६१: व. ११५: शां. ४९ अनु. ४.४८ वायु. ९१.६६-८७ मा ९.१५ स्कन्द ६.१६६-१६७) तदनंतर सत्यवती कौशिकी । नदी बनी (ह.. १.२७ ब्रह्म. १० विष्णु, ४.७:१६ वा. रा. बा. २४) । इस ऋषि ने यड़वा ब्रँड निकाला ( विष्णुधर्म. १.३२ ) । शाल्वदेशाधिपति द्युतिमान् शास्यदेशाधिपति द्युतिमान् राजा ने इसे अपना राज्य अर्पण किया था ( म. शां. २२६. ३३ अनु. १३७.२२) । यह परशुराम का पिता मह है (पद्म. भू. २६८ ) । ऋचीक पुत्र तथा कलत्र सहित भगतुंग पर्वत पर रहता था ( वा. रा. बा. ६१. १० - १३ ) | विष्णु ने अमानत के रूप में वैष्णव धनुष्य इसे दिया था । वह इसने जमदग्नि को दिया ( वा. रा. बा. ७५. २२ ) । यह धनुर्विद्या में काफी प्रवीण था (म. अनु. ५६.७ ) इसके वंशजों को आर्थिक कहते हैं। प्राचीन चरित्रकोश ऋणचय ( ब्रह्म. १० ) । जमदग्नि के अलावा वत्स ( विष्णुधर्म. १.३२), शुनःशेप तथा शुनः पुच्छ ( ह. वं. १.१७; ब्रह्म. १० ) इतने नाम प्राप्त हैं । २. प्रथम मेरुसावर्णि मनु का पुत्र । ऋचेयु -- (सो. पूरु. ) रौद्राव को घृताची से उत्पन्न हुआ । इसे तक्षककन्या ज्वलना से अंतिनार हुआ (२ ऋक्ष देखिये) । ऋजिश्वन - - इसे दो बार वैदथिन (ऋ. ४.१६. १३१ ५.२९.११ ) तथा एक बार औशिज कहा गया है (ऋ. १०. ९९.११ ) | ये निर्देश मातापिता के नाम से आये हंग पिप्रू के साथ हुए युद्ध में इन्द्र ने इससे सहायता की (ऋ. १.५१.५ ) । ऋजिश्वन भारद्वाज - सूक्तद्रष्टा (ऋ. ६.४९.५२; ९.९८; १०८ ) । ऋजु (सो. वृष्णि) भागवतमतानुसार वसुदेव देवकी का कंस द्वारा मारा गया पुत्र विष्णु के मतानुसार ऋभुदास, मत्स्य के मतानुसार ऋषिवास तथा वायु के मतानुसार ऋतुदाय नाम हैं। -- ऋजुदाय- देखिये । ऋजुनस् -- सोमयज्ञ करनेवाले लोगों के साथ इसका नाम है (ऋ. ८.५२.२ ) । ऋज्राश्व -- अंबरीष, सुराधस, सहदेव तथा भयमान के साथ इसका एक वाषगिर के रूप में उल्लेख है (ऋ. १. १०० १२-१७ ) इन्हीं पांच भ्राताओं के नाम पर । उपरोक्त संपूर्ण सूक्त है। एक बार अधियों का वाहन गर्द लोमड़ी के रूप में इसके पास आया। तब इसने उसे एक सौ एक भेटें खाने के लिये दीं। तत्र नगरवासी लोगों की हानि की। इसलिये वृषागिर राजा ने इसकी आँखें फोट । दीं। तब श्राश्र ने अश्विदेवों की स्मृति करने पर उन्होंने । इसे दृष्टि दी। उस लोमड़ी का भाषण मी ऋग्वेद में निम्नप्रकार दिया है। ' हे पराक्रमी तथा शूर अभिय इस ब्रांच ने तरुण तथा कामी पुरुष के अनुसार एक सी एक मेडे काट कर मुझे खाने के लिये दी है (ऋ. १. ११६. १६ ११७६ १७ १८ ) । ऋज्रांश्व ऋजूनस् -- इनके यहाँ सोम पी कर इंद्र प्रसन्न हुआ (ऋ. ८. ५२.२ ) । ९६ ऋणज्य -- एक व्यास ( व्यास देखिये) । ऋणचय - यह रुशमाओं का राजा था। इसने बभ्रुस्माओं ने मुझे चार हजार गायें दीं। एक हजार अच्छी नामक सूक्तकार को काफी दान दिया । बभ्रु कहता है,
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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