SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अजमीढ वंश प्राचीन चरित्रकोश आनव वंश अजमीढ वंश (सो. अज.)-अजमीढपुत्र बृह दिशु | गांधार शाखा का कई हिस्सा कई स्थानों पर अनु का ही के द्वारा इस वंश की स्थापना हुई, जिसकी संपूर्ण जानकारी | मानकर कई पुराणों में दिया गया है। किन्तु वह गलत छः पुराणों में प्राप्त है (वायु. ९९.१६६; ह. वं. १.२०. | प्रतीत होता है। १८-७६; भा. ९.२१-२२, मत्स्य. ४९.७-५९)। इस | अनेनस वंश-आयु राजा के अनेनस नामक पुत्र राजवंश का राज्य दक्षिण पांचाल देश में था, एवं इनकी | से 'क्षत्रधर्मन् सामूहिक नाम धारण करनेवाले एक राजवंश राजधानी कापिल्य नगरी में थी। इस राजवंश के संस्थापक | की स्थापना हुई, जिसमें निम्नलिखित राजा समाविष्ट थे:अजमीढ़ राजा को प्रियमेध, ऋक्ष, बृहदिशु एवं नील नामक | अनेनसू-क्षत्रधर्मन्-प्रतिक्षत्र- संजय-जय-विजय कृतिचार पुत्र थे। इनमें से बृह दिषु ने हस्तिनापुर के मुख्य राज्य हर्यत्त्वत-सहदेव-अदीन- जयत्सेन- संकृति-कृतधर्मन् की परंपरा आगे चलायी, एवं इस प्रकार वह हस्तिनापुर | (ब्रह्मांड. ३.६८.७-११; वायु. ९३.७-११)। ऋक्षवंशीय (सो. ऋक्ष.) राजवंश का वंशकर राजा साबित | अंधक वंश-यदुपुत्र अंधक राजा के द्वारा प्रस्थापित हुआ। इसी वंश से आगे चल कर हस्तिनापुर के कुरुवंश इस वंश की जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त (सो. कुरु.) की उत्पत्ति हुई। है, जहाँ इस वंश की कुकुर, एवं भजमान नामक अजमीढ राजा के पुत्रों में से नील ने आगे चल कर दो शाखाएँ दी गयीं हैं। उनमें से कुकुर वंश में देवक, क्रिवि देश में उत्तर पांचाल (सो. नील.) राजवंश की | उग्रसेन, आदि राजा उत्पन्न हुए थे, एवं भजमान (अंधक) स्थापना की। वंश में प्रतिक्षत्र, कृतवर्मन् , कंवलबर्हिष , असमौजस् आदि - इस राजवंश की वंशावलि के संबंध में पौराणिक साहित्य राजा उत्पन्न हुए थे (ह. वं. १.३४)। में एकवाक्यता नहीं है। इनमें से लगभग पूरि अमावसु वंश-(सो. अमा.) पुरूरवस् के पुत्र वंशावलि मत्स्य में दी गयी है, जो 'पौराणिक राजवंशों अमावसु का वंश सात पुराणों एवं रामायण में प्राप्त है की तालिका' में उदधृत की गयी है। भागवत में प्राप्त (ब्रह्मांड. ३.६६.२२-६८; वायु. ९१.५१-१९८; ब्रह्म. नामावलि में बहुत सारे राजाओं के नाम अनुल्लिखित हैं। १०.१३; ह. वं. १.२७, विष्णु. ४.७.२, वा. रा. बा. गरुड में अंतिम तीन राजाओं के नाम नहीं दिये गये हैं। ३२-३४)। अमावसु स्वयं कान्यकुब्ज देश का राजा था, विष्णु के नामावलि में अंतिम राजा जनमेजय का नाम | एवं उसके वंश में निम्नलिखित राजा प्रमुख थे:अप्राप्य है। मत्स्य में काव्य राजा के पुत्र का नाम समर अमावसु-भीम-कांचनप्रभ-सुहोत्र-जह्न । . दिया गया है। अग्नि एवं महाभारत में इस वंश की मूल पुरुष . अनु वंश--(सो. अनु.) ययाति राजा के पुत्र अनु अमावसु ही बताया गया है, किंतु इसमें उत्पन्न जह्न राजा के द्वारा स्थापित किये गये इस वंश की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है (वायु. ९९.१२; ब्रह्म. १३. को 'भरतवंशीय' एवं अजमीढ राजा का पुत्र कहा गया . १५-२१; भा. ९.२३.१-३, मत्स्य. ४८.१०)। अनु | है (अग्नि, २७७.१६-१८)। किन्तु यह जानकारी अनैतिराजा से आठवीं पीढी में उत्पन्न हुए महामनस राजा को | हासिक प्रतीत होती है । जह्न के आठवें पीढ़ी में उत्पन्न उशीनर एवं तितिक्षु नामक दो पुत्र थे, जिन्होंने क्रमशः विश्वामित्र ऋषि को ऋग्वेद एवं अन्य वैदिक साहित्य उशीनर एवं तितिक्षु राजवंशों की स्थापना की। उनमें | में 'भरत' एवं 'भरतर्षभ' जरूर कहा गया है (ऋ. ३. से उशीनर शाखा में से केकय, मद्रक, आदि वंश उत्पन्न | ५३.१२; ऐ. ब्रा. ७.३.५, सां. श्री. १५.२५);. किंतु हुए, एवं तितिक्षु राजवंश में से अंग, वंग, कलिंग, सुह्म. | वहाँ आद्य विश्वामित्र नहीं, बल्कि भरत राजा सुदास राजा पुंड आदि उपशाखाओं का निर्माण हुआ। अनिल, कोटिक | के राजपुरोहित का कार्य करनेवाले आद्य विश्वामित्र के सरथ, आदि वंश के लोग भी अनुवंशीय ही माने जाते हैं। किसी वंशज का निर्देश अभिप्रेत है । इस प्रकार भरत • इस वंश की जानकारी के संबंध में पौराणिक साहित्य | राजा का पुरोहित होने के कारण विश्वामित्र ऋषि स्वयं में प्रायः सर्वत्र एकवाक्यता है । केवल ब्रह्म एवं हरिवंश | अमावसुकुलोत्पन्न हो कर भी 'भरतर्षभ' कहलाया। में इस वंश के आद्य संस्थापक का नाम ययातिपुत्र अनु | आनव वंश-अनु राजा के वंश में उत्पन्न हुए बलि के जगह पूरुवंशीय रौद्राश्व राजा का पुत्र कक्षेयु दिया | आनव के अंग, वंग आदि पाँच पुत्रों ने पूर्व भारत में गया है। ययाति राजा के अन्य एक पुत्र द्रुह्य के | पाँच स्वतंत्र वंशों की स्थापना की। इन पाँच पुत्रों के प्रा. च. १४४ ] ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy