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आनव वंश
पौराणिक राजवंश
क्षत्रवृद्ध वंश
की।
द्वारा स्थापन किये गये राजवंश 'आनव' सामूहिक कुरुराजा से ले कर पाण्डवों तक के राजा समाविष्ट थे। नाम से प्रसिद्ध थे। इन आनव वंशों में अंग, वंग, पुण्ड्र | इश वंश की जानकारी विभिन्न पुराणों में प्राप्त है ( वायु. सुह्म एवं कलिंग राजवंश समाविष्ट थे, जिनका राज्य | ९९.२१७-२१८; ब्रह्मांड १३.१०८-१२३; ह. वं. ३२. गंजम से ले कर गंगा नदी के त्रिभुज प्रदेश तक फैला | १८०१-१८०२)। हुआ था । कई अभ्यासकों के अनुसार, इन लोगों के द्वारा कुशांब वंश (सो. कुरु.)--इस वंश की स्थापना समुद्र के मार्ग से इन देशों पर आक्रमण किया गया था, | कुरुवंशीय वसु राजा के कुशांब नामक पुत्र के द्वारा की एवं इन प्रदेशों में स्थित सौद्युम्न लोगों को उत्कल पहाडियों | गयी थी। इसी वंश के लोगों ने कौशांबि देश की स्थापना के प्रदेश में ढकेल दिया था। __ आयु वंश-आयु राजा के अनेनस् नामक पुत्र का | कृष्ण वंश--यादववंश की वृष्णि शाखा में उत्पन्न हुए वंश आयु वंश (सो. आयु.) अथवा अनेनस् वंश नाम कृष्ण का सविस्तृत वंश, एवं उसके परिवार की जानकारी से सुविख्यात है (पुरूरवस् देखिये; ह. वं.१.२९)। हरिवंश में दी गयी है (ह. वं. १.३५)।
उशीनर वंश--(सो. उशी.) ययातिपुत्र अनु के क्रोष्टु वंश (सो. क्रोष्ट.)--यदुराजा के पुत्र क्रोष्ट ने राजवंश की पश्चिमोत्तर भारत में स्थित शाखा उशीनर वंश मथुरा नगरी के यादव वंश की स्थापना की। इसीके नाम नाम से सुविख्यात थी ( अनु देखिये)।
से मथुरा देश का यादव वंश क्रोष्ट नाम से सुविख्यात ऋक्ष वंश--( सो. ऋक्ष.) हस्तिनापुर के हस्तिन् हुआ। आगे चल कर इसी वंश के ज्यामध. भजमान, राजा के अजमीढ एवं द्विमीढ नामक दो पुत्र थे। इनमें | वृष्णि एवं अंधक शाखाओं का निर्माण हुआ (ब्रहा. १४. से अजमीढ एवं उसके पुत्र ऋक्ष का हस्तिनापुर में राज्य | १५: यदु देखिये)। करनेवाला वंश ऋक्षवंश नाम से प्रसिद्ध है। इस वंश के
क्षत्रवृद्ध वंश (सो. क्षत्र.)--काशी देश के इस चौथे पुरुष कुरुपुत्र जह्न से हस्तिनापुर में कुरुवंश का | सुविख्यात राजवंश की स्थापना आयुराजा के पौत्र एवं राज्य प्रारंभ हुआ। इसी वंश में उत्पन्न वसुपुत्र बृहद्रथ | क्षत्रवृद्ध राजा के पुत्र सुनहोत्र (महोत्र ) ने की। इस ने आगे चल कर मगधदेश में राज्य करनेवाले मगधवंश | वंश की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य म प्राप्त है । की स्थापना की। इन दो उपशाखाओं के अतिरिक्त ऋक्ष | (ब्रह्मांड ३.६६.२; वायु. ९२.६६-७४; ९३. ७-११; शाखा में उत्पन्न हुए राजा ऋक्षवंशीय (सो. ऋक्ष.) माने ब्रह्म. ११.३२: ह. वं. १.२९; विष्णु. ४.८; भा. ९.१७. जाते हैं।
२-५)। काशी देश में राज्य करने के कारण, इस वंश ऐल वंश--पुरूरवस् एवं मनुकन्या इला से उत्पन्न
को काश्य नामान्तर भी प्राप्त था। पौराणिक साहित्य में सोमवंश का नामांतर ( सोम वंश देखिये)।
वृद्धक्षत्र राजा का वंश भी प्राप्त है, जो प्रायः क्षत्रवृद्ध ___ करूष वंश (सो. कुरु.) इस वंश की स्थापना कुरुवंश
वंश से ही मिलता जुलता है। में उत्पन्न वसु राजा के करूष (मत्स्य) नामक पुत्र | इस वंश के पहले चार राजाओं के नाम क्षत्रवृद्ध, के द्वारा की गयी थी। इसी वंश के लोगों ने करूष देश | सुनहोत्र, काश (काश्य ) एवं दीर्घतपस् थे । भारतीय युद्ध की स्थापना की (पूर देखिये )।
के काल में इस वंश के सुबाहु एवं अभिभू (सुविभु) काश्य वंश (सो. क्षत्र.)--काशीदेश में राज्य करने | काशी देश में राज्य करते थे। भागवत में प्राप्त इस वंश वाले इस राजवंश की स्थापना पुरुरवस् के पौत्र, एवं | की वंशावलि में काश्य एवं दीर्घतपस् के दरम्यान काशी आयुराजा के पुत्र क्षत्रवृद्ध ने की। इन वंश के पहले चार एवं राष्ट्र इन दो राजाओं के नाम अन्य पुराणों से अधिक राजाओं के नाम क्षत्रवृद्ध, सुनहोत्र (सुहोत्र,) काश | पाये जाते हैं। (काश्य) एवं दीर्घतपस् थे (क्षत्रवृद्ध देखिये)।
दिवोदास एवं प्रतर्दन ये सुविख्यात राजा इसी वंश में ___ कुकुर वंश-यादव वंश की एक उपशाखा, जो यादव- उत्पन्न हुए थे। किन्तु दिवोदास (प्रथम) से ले कर दिवोदास वंशीय अंधक राजा एवं उसके पुत्र कुकुर के द्वारा स्थापित | (द्वितीय) तक के राजाओं का निश्चित काल एवं वंशक्रम की गयी थी (ब्रह्म. १५; अंधक वंश देखिये)। समझ में नहीं आता है । हरिवंश, ब्रह्म एवं अग्नि पुराणों
कुरुवंश-(सो. पूरु.) हस्तिनापुर के ऋक्ष राजा के वंश में इस वंश के आद्य पुरुप के नाते आयुपुत्र महोत्र का में उत्पन्न हुए एक उपशाखा को कुम्वंश कहते थे, जिसमें | नहीं, बल्कि पौरववंशीय सुहोत्र राजा का नाम दिया गया