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इक्ष्वाकु वंश
पौराणिक राजवंश
दिष्ट वंश
प्रतीत होती है, जो आगे दी गयी 'पौराणिक राजाओं की वंशावलि के अनुसार, इन दो राजाओं में अठारह पीढ़ियों तालिका' में उद्धृत की गयी है।
का अन्तर था। यह असंगति भी उपर्युक्त तर्क को पुष्टि ब्रह्मा, हरिवंश, एवं मत्स्य में प्राप्त इक्ष्वाकुवंश की | प्रदान करती है। नामावलि अपूर्ण सी प्रतीत होती है, जो क्रमशः नल, मरु | इसके विरूद्ध इस वंशावलि को पुष्टि देनेवाली एक एवं खगण राजाओं तक ही दी गयी है।
जानकारी भी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है। कलियुग के प्रमुख राजा--इस वंश में निम्नलिखित राजा विशेष अन्त में जिन दो राजाओं के द्वारा क्षत्रियकुल का पुनमहत्त्वपूर्ण माने जाते हैं : --१. पुरंजय (ककुत्स्थ); | रुद्धार होनेवाला है, उनके नाम पौराणिक साहित्य में मेरु २. श्रावस्त; ३. कुबलाश्व 'धुंधमार' ४. युवनाश्व (द्वितीय) ऐक्ष्वाक, एवं देवापि पौरव दिये गये हैं। भागवत के 'सौद्युम्न'; ५. मांधातृ 'यौवनाश्व' ६. पुरुकुत्स;७. सदस्युः वंशावलि में इन दोनों राजाओं को समकालीन दर्शा गया है, ८. त्रैय्यारुण; ९. सत्यव्रत 'त्रिशंकु' १०. हरिश्चंद्र; जो संभवतः उसकी ऐतिहासिकता का प्रमाण हो सकता है। ११. सगर (बाहु) १२. भगीरथ; १३. सुदास; राम दाशरथि के पश्चात् उसके पुत्र लव ने श्रावस्ती १४. मित्रसह कल्माषपाद सौदास; १५. दिलीप (द्वितीय)
| में स्वतंत्र राजवंश की स्थापना की। लव के काल से खटवांगः १६. रघु; १७. राम दाशरथि; १८. हिरण्यनाभ अयोध्या के इक्ष्वाकुवंश का महत्त्व कम हो कर, उसका कौसल्य; १९. बृहद्बल।
स्थान 'श्रावस्ती उपशाखा' ने ले लिया। इसी शाखा में पाठभेद एवं मतभेद-भागवत में प्राप्त दृढाश्व एवं | आगे चल कर प्रसेनजित् नामक राजा उत्पन्न हुआ, जो .. हर्यश्व राजाओं के बीच प्रमोद नामक एक राजा का निर्देश गौतम बुद्ध का समकालीन था। गौतम बुद्ध के चरित्र में मत्स्य में प्राप्त है। कल्माषपाद सौदास से लेकर, दिलीप | श्रावस्ती के राजा प्रसेनजित् का निर्देश बार-बार आता खट्वांग तक के राजाओं के नाम ब्रह्म, हरिवंश, एवं मत्स्य | है, किन्तु उस समय अयोध्या के राजगद्दी पर कौन राजा . में भागवत में प्राप्त नामावलि से अलग प्रकार से दिये गये | था. इसका निर्देश कहीं भी प्राप्त नहीं है। . है, जिसमें सर्वकर्मन् , अनरण्य, निन्न, अनमित्र, दुलीदुह |
___ अंतिम राजा-अयोध्या के इक्ष्वाकु वंश का अंतिम आदि राजाओं के नाम प्राप्त हैं।
राजा क्षेमक माना जाता है, जो मंगध देश के महापन । पौराणिक साहित्य में कई राजा ऐसे भी पाये जाते है, | नंद राजा का समकालीन माना जाता है। जो इक्ष्वाकुवंशीय नाम से सुविख्यात हैं, किन्तु जिनके नाम इक्ष्वाकुवंश के वंशावलि में अप्राप्य हैं :-१. असमाति
| दिष्ट वंश-(सू. दिष्ट.) इस वंश के संस्थापक का ऐक्ष्वाक; २. क्षेमदर्शिन् । ३. सुवीर द्यौतिमत।
नाम नाभानेदिष्ट अथवा नेदिष्ट था, जो मनु के नौ पुत्रों कई अभ्यासकों के अनुसार, क्षेमधन्वन् से ले म से एक था। कई पुराणों में उसका नाम दिष्ट दिया है. कर बृहद्रथ राजाओं तक की प्राप्त नामावलि एक एव उस मनु राजा का पात्र एवं मनु पुत्र धृष्ट राजा का ही वंश के लोगों की वंशावलि न होकर. उसमें दो पुत्र कहा गया है। पौराणिक साहित्य में से सात पुराणों विभिन्न वंश मिलाये गये हैं। इनमें से क्षेमधन्वन से लेकर | में, एवं महाभारत रामायण में, इस राजवंश का निर्देश प्राप्त हिरण्यनाभ कौसल्य तक की वंशशाखा पुष्य से ले कर बृहद्रथ | है, जहा कई बार इस वशाल राजवश' कहा गया है (ब्रह्माड. तक के शाखा से संपूर्णतः विभिन्न प्रतीत होती है। प्रश्नोपनिषद् ३.६१.३१८; वायु. ८६.३-२२, लिंग. १.६६.५३; में निर्दिष्ट हिरण्यनाम कौसल्य व्यास की सामशिष्यपरंपरा
मार्क. ११०-१३३; विष्णु. ४.१.१६, गरुड. १३८.५में याज्ञवल्क्य नामक आचार्य का गुरु था। प्रश्नोपनिषद १३; भा. ९.२.२३, वा. रा. बा. ४७.११; म. आश्व. में निर्दिष्ट हिरण्यनाभ कौसल्य, एवं पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट हिरण्य नाम कौसल्य ये दोनों एक ही व्यक्ति थे । इस | ___ पौराणिक साहित्य में प्राप्त दिष्ट वंश की जानकारी अवस्था में इक्ष्वाकुवंशीय वंशावलि में हिरण्यनाम कौसल्य प्रमति ( सुमति ) राजा से समाप्त होती है, जो अयोध्या को दिया गया विशिष्टस्थान कालदृष्टि से असंगत प्रतीत के दशरथ राजा का समकालीन था। प्रमति तक का संपूर्ण होता है।
वंश भी केवल वायु, विष्णु, गरुड एवं भागवतपुराण में ही स्कंद में इक्ष्वाकुवंशीय राजा विधृति एवं पूरुवंशीय | पाया जाता है। बाकी सारे पुराणों में प्राप्त नामावलियाँ . राजा परिक्षित् को समकालीन माना गया है। भागवत के | किसी न किसी रूप में अपूर्ण हैं।
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