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दिष्ट वंश
इस वंश में उत्पन्न प्रथम दो राजाओं के नाम भरुंदन एवं वत्सी थे। इनमें से भलंदन आगे चल कर वैश्य वन गया। इसी वंश में उत्पन्न हुए संकील, वत्सप्री एवं वत्स नामक आनायों के साथ, मलंदन का निर्देश एक वैश्य द्रष्टा के नाते प्राप्त है (ब्रह्मांड २.३२.१२१-१२२३ मत्स्य. १४५.११६-११७)। किंतु ऋग्वेद में, इनमें से केवल वत्स भालंदन के ही सूत्र प्राप्त हैं (ऋ. ९.६८; १०. ४५-४६) । इन्हीं सूक्तों की रचना करने के कारण भलंदन पुनः एक बार ब्राह्मण बन गया ( ब्रह्म. ७.४२ ) ।
प्राचीन चरित्रकोश
इसी वंश में उत्पन्न हुए विशाल राजा ने वैशाल नामक नगरी की स्थापना की उसी काल से इस वंश को 'वैशाल' नाम प्राप्त हुआ ।
निमि वंश - (न.मि.) इस वंश की स्थापना मन राजा के पौत्र एवं इक्ष्वाकु राजा के पुत्र निमि 'विदेह' राजा ने की । निम के पुत्र का नाम मिथि जनक था, जिस कारण इस राजवंश को जनक नामान्तर भी प्राप्त था । इस राजवंश के राजधानी का नाम भी 'मिथिला' ही था, जो विदेह राजा ने अपने पुत्र मिथि के नाम से स्थापित की थी ।
निमि वंश
भागवत में सीरध्वज राजा का पुत्र माना गया है, एवं उसका वंशक्रम निम्न प्रकार दिया गया है
इस वंश की सविस्तृत जानकारी पौराणिक साहित्य में प्राप्त है (ब्रह्मोद. ३.६४.१-२४ वायु ८९.१-२३३ विष्णु.'४.५.११-१४; गरुड. १. १३८.४४ - ५८; भा. ९. १३) । वाल्मीकि रामायण में भी इस वंश की जानकारी प्राप्त है, किन्तु वहाँ इस वंश की जानकारी सीरध्वज तक गयी है।
इस वंश के राजाओं के संबंध में पौराणिक साहित्य में काफी एकवाक्यता है । किन्तु विष्णु, गरुड एवं भागवत में शकुनि राजा के पश्चात् अंजन, उपगुप्त आदि बारह राजा दिये गये हैं, जो वायु एवं ब्रह्मांड में अप्राप्य हैं । इन दो नामावलियों में से विष्णु, भागवत आदि पुराणों की नामावलि ऐतिहासिक दृष्टि से अधिक सुयोग्य होती
। किन्तु कई अभ्यासकों के अनुसार, शकुनि एवं स्वागत के बीच में प्राप्त बारह राजा निर्मिवंश से कुछ अलग शाखा के थे, एवं इसी कारण इस शाखा को आय निमिवंश से अलग माना जाता है (ब्रह्मांड. २.६४६ वायु ८९ भा. ९.१३) ।
कृतध्वज
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केशिध्वज
सीरध्वज
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कुशध्वज
T धर्मध्वज
मितध्वज
I खांडक्य
उपर्युक्त जनक राजाओं में से केशिध्वज एक बड़ा तत्वज्ञानी राजा था, एवं उसका चचेरा भाई सांडिक्स एक सुविख्यात यशकर्ता था । केशिध्वज जनक एवं सांडिक्य की एक कथा विष्णु में दी गयी है, जिससे इस वंशावलि की ऐतिहासिकता पर प्रकाश पड़ता है ( विष्णु. ६.६.७१०४) ।
महाभारत में देवरात जनक राजा को याज्ञवल्क्य का अच्छी प्रकार से देखने से प्रतीत होता है कि, याशवल्क्य समकालीन कहा गया है, किन्तु वंशावलियों का संदर्भ के समकालीन जनक का नाम देवराति न हो कर जनदेव अथवा उग्रसेन था ।
पौराणिक साहित्य में निम्नलिखित राजाओं को जनक कहा गया है :- १. सीरध्वज २. धर्मध्वज (विष्णु. ४.२४.५४); २. जनदेव, जो याश्वस्य का समकालीन था; ४. देवराति ५. खांडिक्य; ६. बहुलाश्व, जो श्रीकृष्ण से आ मिला था; ७. कृति, जो भारतीय युद्ध में उपस्थित था। ये सारे राजा 'विदेह', 'जनक', 'निमि' आदि बहुविध नामों से सुविख्यात थे, किन्तु उनका 'स. निमि वर्णन ही ऐति हासिक दृष्टि से अधिक उचित प्रतीत होता है ये सारे राजा आत्मज्ञान में प्रवीण थे ( विष्णु. ६.६.७ - ९ ) ।
इस वंश का सब से अधिक सुविख्यात राजा सीरध्वज जनक था, जिसके भाई का नाम कुशध्वज था ( ब्रह्मांड. ३.६४.१८–१९; वायु. ८९.१८ वा. रा. बा. ७०.२ - (३) । कुशध्वज सांकाश्या पुरी का राजा था । किन्तु |
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पौराणिक साहित्य में निम्नलिखित राजाओं को निमिवंशीय कहा गया है, किन्तु उनके नाम निमि वंश की वंशावलि में अप्राप्य है: १. कराल २२. उम्र ४. जन - देव ५, पुष्करमालिन् ६. माधव ७. शिखिध्यान ।
वैदिक साहित्य में - इस साहित्य में निम्नलिखित निमिवंशीय राजाओं का निर्देश प्राप्त है :-१. कुणि (शकुनि) २. रंजन ( अंजन ); ३. उग्रदेव; ४. क्रतुजित् । ये सारे राजा वैदिक यज्ञकर्म में अत्यंत प्रवीण थे ।