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________________ पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट राजवंशों में निम्नलिखित राजवंश प्रमुख थे: (१) सूर्यवंश - ( सू ), जो मनु वैवस्वत के द्वारा स्थापित किया गया था। (२) सोमवंश - ( सो.), जो सोमपुत्र पुरूरवस् ऐल के द्वारा स्थापित किया गया था । पुत्र का नाम परिशिष्ट ४ पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट राजवंश इक्ष्वाकु 'निमि 'इक्ष्वाकुपुत्र' नाभानेदिष्ट शर्याति नृग नरिष्यन्त (१) सूर्यवंश (सू.) इस वंश का आद्य संस्थापक वैवस्वत मनु माना जाता | नगरी में उसने सुविख्यात इक्ष्वाकु वंश की प्रतिष्ठापन है । वैवस्वत मनु ने भारतवर्ष का अपना राज्य अपने नौ पुत्रों में बाँट दिया। इन नौ पुत्रों में से पाँच पुत्र एवं एक पौत्र ‘वंशकरं ' साबित हुए, जिन्होंने अपने स्वतंत्र राजवंश स्थापित किये: की । इक्ष्वाकु के वंशविस्तार के संबंध में पुराणों में दो विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त है । इनमें से छः पुराणों की जानकारी के अनुसार, इक्ष्वाकु को कुल सौ पुत्र थे, जिनमें विकुक्षि, निमि, दण्ड, शकुनि एवं वसात प्रमुख थे । इसके पश्चात् विकुक्षि अयोध्या का राजा बन गया । निमि ने विदेह देश में स्वतंत्र निमिवंश की स्थापना की। बाकी पुत्रों में से शकुनि उत्तरापथ का, एवं वसति दक्षिणापथ का राजा बन गया ( वायु. ८८. ८- ११; ब्रह्मांड. ३.६३. ८-११; ब्रह्म. ७.४५-४८; शिव. ७.६०.३३ - ३५) । अन्य पुराणों के अनुसार, इक्ष्वाकु के सौ पुत्रों में विकुक्षि, दण्ड एवं निमि प्रमुख थे। इनमें से विकुक्षि अयोध्या का राजा बन गया, जिसके कुल १२९ पुत्र थे । उन पुत्रों में से पंद्रह पुत्र मेरु के उत्तर भाग में स्थित प्रदेश के, एवं बाकी ११४ पुत्र मेरु के दक्षिण भाग में स्थित प्रदेश के राजा बन गये ( मत्स्य. १२. २६-२८; पद्म. पा. ८. १३०-१३३; लिंग. १.६५.३१ - ३२ ) । इक्ष्वाकुवंश में कुल कितने राजा उत्पन्न हुए इस संबंध में एकवाक्यता नहीं है । यह संख्या विभिन्न पुराणों में निम्नप्रकार दी गयी है :- १. भागवत - ८८; २. वायु९१; ३. विष्णु-९३; ४. मत्स्य - ६७ । इनमें से मत्स्य में प्राप्त नामावलि संपूर्ण न हो कर केवल कई प्रमुख राजाओं की है, जिसका स्पष्ट निर्देश इस नामावलि के अंत में प्राप्त है ( मत्स्य. १२.५७ ) । पुराणों में प्राप्त इक्ष्वाकुवंश की वंशावलियों में भागवत में प्राप्त वंशावलि सर्वाधिक परिपूर्ण राजवंश अयोध्या विदेह इक्ष्वाकुवंश (सू. इ. निमिवंश (सू. निमि. ) दिष्टवंश (सू. दिष्ट. शर्याति वंश (सू. शर्याति. ) आनर्त वैशाली नृग वंश (सू. नृग.) नरिष्यंतवंश (सू. नरिष्यंत) मनु राजा के उपर्युक्त पाँच पुत्र एवं एक पौत्र यद्यपि पंशकर साबित हुए, फिर भी उनमें से केवस चार पुत्र ही दीर्घजीवी राज्य स्थापित कर सके । बाकी दो पुत्रों का वंश भी अल्पावधि में ही विनष्ट हुआ । (३) स्वायंभुव वंश - - ( स्वा.), जो स्वायंभुव मनु के द्वारा स्थापित किया गया था । मनु के बाकी तीन पुत्र करूष, धृष्ट एवं पृषत्र क्रमशः करूष एवं धृष्ट नामक क्षत्रिय, एवं पृषत्र नामक शूद्र वर्णों के जनक बन गये, एवं अल्पावधि में ही विनष्ट हुए । मनु के वंशकर पुत्रों के द्वारा स्थापित किये गये वंशों की जानकारी निम्नप्रकार है: ( ४ ) भविष्य वंश - जिसमें भारतीय युद्धोत्तर अनेकानेक राजवंश सम्मिलित थे । (५) मानवेतर वंश - जिसमें वानर, रक्षस् आदि मानवेतर वंश समाविष्ट किये जाते हैं । . इक्ष्वाकु वंश - - ( सू. इ. ) -- मनु के ज्येष्ठ पुत्र इक्ष्वाकु को मध्यदेश का राज्य प्राप्त हुआ, जहाँ अयोध्या ११३९
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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