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________________ सिकंदर प्राचीन चरित्रकोश सिकंदर इस युद्ध से सिकंदर इतना परेशान हुआ कि, सांकल | वापसी यात्रा प्रारंभ की। इस यात्रा में इसका विशाल पर विजय प्राप्त कराने के पश्चात् , उसने उसे भूमिसात् । जहाजी बेड़ा वितस्ता नदी में चल रहा था, एवं इसकी करने का आदेश अपने सैनिकों को दे दिया। इसके पहले | स्थलसेना नदी के दोनों तट पर उसका अनुगमन करती थी। इरानी साम्राज्य की राजधानी 'पार्सिपोलिस' को भी इसी पश्चात् बिना किसी लड़ाई के, यह वितस्ता एवं असिनी ढंग से इसने भूमिसातू कराया था। इससे प्रतीत होता नदी के संगम पर आ पहुँचा। वहाँ स्थित शिबि लोगों ने है कि, जो शत्रु इसे विशेष कर त्रस्त करता था, उसके इसका अधिकार मान लिया। किन्तु आग्रेय (आगलस्सी) राज्य को यह भूमिसात् करवाता था। नामक लोगों ने इसका विरोध किया। उन लोगों का ___ यवनसेना का विद्रोह--कठों को परास्त कर सिकंदर की निवासस्थान शतद्रु (सतलज) नदी के पूर्व दक्षिण में सेनाएँ विपाशा (व्यास ) नदी के पश्चिमी तट पर आ स्थित प्रदेश में था। अपनी ४० हजार पदाती एवं ३ पहुँची। उस समय सिकंदर चाहता था कि, विपाशा नदी हजार अश्वरोही सैनिको के साथ, इन लोगों के अग्रसेन को पार कर भारतवर्ष में आगे बढ़े, एवं अपने साम्राज्य नामक राजा ने सिकंदर से जोरदार सामना किया। सिकंदर का और भी अधिक विस्तार करे। . ने इन लोगों को युद्ध में परास्त किया। किन्तु नगरी इसके किन्तु इसकी सेना की हिम्मत हार चुकी थी। उन्हें | हाथ आने के पूर्व ही, उन लोगों ने उसे भस्मसात ज्ञात हुआ कि, व्यास नदी के पूर्व में जो जनपद हैं, वह | किया था। कठों से भी अधिक पराक्रमी हैं, एवं उनके आगे नंद का मालव एवं क्षुद्रक-- असिनी नदी के दक्षिण विशाल साम्राज्य है, जिनकी सेना अनंत है । इसी कारण की ओर, इरावती (रावी) नदी के बाये तट पर इसकी सेना ने विपाशा नदी को पार करने से इन्कार मल्ल (मल्लोई) एवं क्षद्रक (ओक्सिड़ाकोई ) लोग कर दिया। निवास करते थे। शिबि आग्रेय आदि लोगों के समान वे - अपनी सेना को उत्साहित करने का इसने अनेक प्रकार | लोग भी ' शस्त्रोपजीवी' थे। पहले तो सिकंदर के से प्रयत्न किया, एवं उनके सम्मुख अनेक व्याख्यान दियें। सैनिक इन लोगों से लड़ाई करने में काफी डरते थे। किन्तु किन्तु अपने प्रयत्न में इसे सफलता न प्राप्त हुई । अन्त में सिकंदर ने उन्हें समझाया कि, क्षुद्रक एवं मालवियों से अत्यंत निराश हो कर यह अपने शिबिर में जा बैठा, एवं सामना किये बिना स्वदेश लौटना संभव नहीं है। पश्चात् कई दिन बाहर न आया। फिर भी इसके सैनिकों के न सिकंदर ने शूद्रक-मालवों में से मालवों पर अचानक मानने पर, इसने व्यास नदी के पश्चिमी तट पर देवताओं हमला कर दिया, एवं बहुत से मालव कृषक अपने खेतों को बलि दिया, एवं सैन्य को वापस लौट जाने की में ही लड़ते हुए मारे गये। मालवों के साथ युद्ध करने आज्ञा दी। . | में सिकंदर की छाती पर सख्त चोट लगी, जो भविष्य सिकंदर की वापसी-वापस जाने के लिए, सिकंदर में उसकी अकाल मृत्यु का कारण बनी। इस घाव के ने दक्षिण पंजाब एवं सिंध के रास्ते से लौट जाने का निश्चय | कारण सिकंदर इतना क्रुद्ध हुआ कि, इसने कत्लेआम का किया, एवं उस कार्य में दो हजार नावों का बेड़ा बनवाया। आदेश दिया। स्त्री-पुरुष-वृद्ध एवं बालक किसी की भी पश्चात् बिना किसी विघ्नबाधा के यह वितस्ता (जेहलम) यवन सैनिकों ने परवाह न की, एवं हजारों नर-नारी नदी के किनारे आ पहुँचा (३२६ ई. पू.)। सिकंदर के क्रोध के शिकार बन गये। वितस्ता नदी के किनारे इसने एक बड़े दरबार का इस बीच में क्षुद्रकसेना मालवों की सहायता के आयोजन किया, एवं उत्तरी पश्चिम भारत में जीते हुए प्रदेश | लिए आ गयी । मालवों के साथ युद्ध करने से सिकंदर में निम्नलिखित शासनव्यवस्था जाहीर की:-१. केकराज | इतना त्रस्त हुआ कि, इसने उनके साथ संधि करना पोरस-विपाश एवं वितस्ता नदी के बीच में स्थित प्रदेश; उचित समझा । क्षुद्रक लोगों ने भी सिकंदर जैसे जगज्जेता २ गांधारराज आंभि-वितस्ता एवं सिंधु नदी के बीच में | वीर के साथ युद्ध करना निरर्थक समझा । इसी कारण स्थित प्रदेश; ३ सेनापति फिलिप्स-सिंधु नदी के पश्चिम | दोनों पक्षों में संधि हुई, उस समय क्षुद्रको एवं मालवों ने में स्थित भारतीय प्रदेश। कहा, 'आज तक हम स्वतंत्र रहे हैं । सिकंदर के लोकोत्तर शिबि एवं आग्रेय-पश्चात् वितस्ता नदी के समीप स्थित | पुरुष होने के कारण हम स्वेच्छापूर्वक उसकी अधीनता सौभूति लोगों को परास्त कर, इसने जलमार्ग से अपनी | स्वीकृत करते हैं। प्रा. च. १४३] ११३७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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