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________________ उशिज प्राचीन चरित्रकोश उहाक उशिज-अंगिराकुलोत्पन्न ऋषि । इसे ऋषिज के समय अपने मंदिर में सोई थी तब स्वप्न में एक सुंदर नामांतर प्राप्त है । इसे ममता से उत्पन्न दीर्घतमा नामक | तथा तरुण पुरुष से इसका समागम हुआ। जागृत होने पुत्र था। उषिज इसका पाठभेद है। के पश्चात् इसकी विरहयुक्त चर्या देख कर चित्रलेखा ने उशिति--अंगिरस तथा स्वराज् का पुत्र । उशिति कारण पूछा । इसने उसे स्वप्न की संपूर्ण हकीकत बताई का पुत्र दीर्घतमस् (ब्रह्माण्ड, ३.१)। तथा स्वप्न के उस पुरुष को लाने के लिये कहा। तब उशीनर-(सो. अनु.) चक्रवर्ती महामनस् का पुन । चित्रलेखा ने त्रैलोक्य में प्रसिद्ध पुरुषों के चित्र क्रमशः इसे. तितिक्षु नामक भाई था। इसकी मृगा, कृमी, नवा, उतार कर उसे दिखाये । यादव वंश दिखाते समय प्रद्युम्न दर्वा, तथा दृशद्वती नामक पांच स्त्रियाँ थीं। जिन्हें क्रमशः | का चित्र देख कर यह लज्जित हुई तथा अनिरूद्ध का मृग, नव, कृमि, सुव्रत तथा शिबि औशीनर पुत्र थे। चित्र देख कर लज्जा से अधोमुख हो गई। इससे चित्रउशीनर तथा तितिक्षु ये दो स्वतंत्र वंशशाखायें शुरु हुई। लेखा ने स्वप्न का पुरुष जान लिया। चित्रलेखा में योगइसके राज्य का प्रसार केकय तथा मद्रक देशों में शिवपुर सामर्थ्य था अतएव तीसरे दिन वह शोणितपुर से द्वारका यौधेय, नवराष्ट्र, कृमिला तथा वृष्टा इन स्थानों पर हुआ| योगसामर्थ्य से एक क्षण में गई वहाँ उसे अपने काबू में (वायु. २.३७.१७-२४; विष्णु ४.१८; मत्स्य. ४८)। ले कर तथा कृत्रिम अंधकार में ढाँक कर ले आई (शिव. ययातिकन्या माधवी से इसे शिबि उत्पन्न हुआ (शिबि | रुद्र. यु. ५३)। रात्रि में निद्रिस्त अनिरुद्ध को वह देखिये)। पर्यकसहित लायी तब उस को अत्यंत आनंद हुआ तथा उषस्त वा उपस्ति चाकायण-एक सामवेत्ता | उसने चित्रलेखा के योगसामर्थ्य के प्रति आश्चर्य प्रगट ब्राह्मण | जब कुरु देश में अकाल पड़ा था तब बडी ही किया। बाद में इसने अनिरुद्ध से गंधर्वविवाह किया तथा बुरी हालत में यह एक ग्राम में . पत्नी समवेत रहा।। गुप्त रूप से इसके साथ चार माह तक सुख से रही । बाणा एक बार भूख लगने के कारण, एक महावत को, जब । सुर द्वारा इसकी रक्षा के लिये नियुक्त सेवकों ने एक बार • वह कुलथी खा रहा था, तब उसने होले मांगे। तब होले यह देखा तथा सब बाणासुर को बताया। यह जानते . देकर वह पानी भी देने लगा। तब पानी जूठा होने ही उषा के महल में आया। उसने देखा कि, उषा - के कारण इसने अस्वीकार कर दिया। जब होले तथा अनिरुद्ध द्यूत खेल रहे हैं । तब बाणासुर अत्यंत 1. भी जूठे हैं ऐसा उससे कहा गया तब इसने कहा क्रोधित हुआ तथा उसका अनिरुद्ध से युद्ध हुआ। युद्ध कि उनको बिना खाये मेरा जीना असंभव था, परंतु में नागपाश डाल कर बाण ने अनिरुद्ध को कैद किया। मैं अपनी इच्छानुसार पानी कहीं भी पी सकता हूँ। इधर यादवों ने अनिरुद्ध को खूब ढूंढा परंतु वह मिल न . थोडी कुलथी पत्नी के लिये भी लाये। तदनंतर पास सका । तब नारद ने, अनिरुद्ध का स्थान तथा बाणासुर ने में ही होने वाले यज्ञ में यह गया। फिर भी विद्वान् होने उसकी की हुी दशा बताओ । बाणासुर तथा कृष्ण का के कारण अन्य ऋत्विजों के समान इसे भी राजा ने दक्षिणा तुमुल युद्ध हुआ। बाण की करीब करीब सारी सेना नष्ट दी तथा इसने भी प्रस्तोता की सहायता की । अन्य हो गई तथा बाण के चार हाथ छोड कर बाकी सारें हाथ स्थान पर उपस्ति पाठ है (छां. उ. १.१०.१, ११.१)। कृष्ण ने तोड़ डाले। तब बाणमाता कोटरा तथा रुद्र की इसने आत्मा के प्रत्यक्षत्व के संबंध में, याज्ञवल्क्य को प्रश्न प्रार्थनानुसार कृष्ण ने बाणासुर को जीवनदान दिया। किया तथा याज्ञवल्क्य ने इससे कहा कि, आत्मा प्रत्यक्ष आगे चल कर बडे समारोह से बाण ने उषा को अनिरुद्ध दिखाना असंभव है (बृ. उ. ३.४.२)। यहाँ उषस्त पाठ को दिया। तब सब यादव द्वारका लौट आये (पद्म. उ. २५०; भा. १०.६२-६३; शिव. रुद्र. यु. ५१-५९)। २. त्वाष्ट्री संज्ञा का नामान्तर (ब्रह्म. १६५.२)। उषस्य-काश्यप तथा खशा का पुत्र । उष्ण-(सो. कुरु, भविष्य.) वायु के मतानुसार उषा-बलिदैत्य का पुत्र बाणासुर की कन्या । यौवना- निर्वक्र पुत्र तथा विष्णु के मतानुसार में निचंकु पुत्र । वस्था में आने के बाद, एक बार जब सखियों सहित रात्रि उहाक---वसिष्ठ कुल का गोत्रकार ऋषिगण । --
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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