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________________ प्राचीन चरित्रकोश उशनस् गौ ( ब्रह्मांड ३.१.७४) । यह पर्जन्याधिपति, योगाचार्य, देव तथा दैत्यों का गुरु है ( वायु. ६५.७४-८५ ) । उशनस् काव्य, कुछ सूक्तों का द्रष्टा है ( ऋ, ८.८४९. ८७–८९) । यह दानवों का पुरोहित था ( तै. सं. २.५ ८.५; तां. ब्रा. ७.५.२०; सां. ओ. स. १४.२७.१ ) । इस की योग्यता बडी थी (ऋ. १.२६. १ ) । इसके कुल में भृगु से ही संजीवनी विद्या अवगत है ( भृगु देखिये ) । इसने यह विद्या शंकर से प्राप्त की थी ( दे. भा. ४. ११) । उशनस् ने कुबेर का धन लूट लिया था इसलिये शंकर ने इसे निगल लिया । तब यह शंकर के शिश्न से बाहर आया तथा शंकर का पुत्र हुआ। तब से इसका नाम शुक्र पडा (म. शां. २७८.१२, विष्णुधर्म १.१०६) । अमुर लगातार हारने लगे तब उन्हें स्वस्थ शांत रहने का आदेश देकर शुफ, बृहस्पति को जो मालूम नहीं हैं ऐसे मंत्र जानने के लिये शंकर के पास गया। यह संधि जानकर देवोंने पुनः अमुरों को कष्ट देना प्रारंभ किया। तब शुक्र की माता सामने आयी तथा उसने देवताओं को जलाना प्रारंभ किया । परंतु इंद्र ने पलायन किया तथा विष्णुने इसकी माता का वध कर के देवताओं की रक्षा की परंतु स्त्री पर हथियार चलाने के कारण, भृगु ने विष्णु को पृथ्वी पर जन्म लेने का शाप दिया तथा शुक्र की माता का सिर पुनः चिपका कर उसे सजीव किया तब इंद्र अत्यंत भयभीत हुआ तथा उसने अपनी जयंती नामक कन्या शुक्र को दी। शुक्र ने भी हजार वर्षोंतक तप करके शंकर से प्रजेशत्व, धनेशत्व तथा अवध्यत्व प्राप्त किया (मत्स्य. ४७.१२६; विष्णुधर्म. १.१०६ ) । शुक्र ने प्रभास क्षेत्र में शुक्रेश्वर के पास ( वन्द ७.१.४८) दुर्धर्ष नामक लिंग की स्थापना करके संजीवनी विद्या प्राप्त की ( प. उ.१५३) । जयंती दस वर्षों तक इसके साथ अदृश्य स्वरूप में थी । यह तप वामन अवतार के बाद किया । परंतु वायुपुराण में कहा है कि वे दोनों अदृश्य थे, इसीलिये बृहस्पति का निम्नलिखित षड्यंत्र सफल हुआ । ऐन समय पर युक्ति से बृहस्पति ने शुक्र का रूप ले लिया तथा मैं ही तुम्हारा गुरु हूँ, शुक्र का रूप ले कर आनेवाला यह व्यक्ति झूठा है ऐसा बतला कर उसे वापिस भेज दिया तथा स्वयं ने अमुरों को दुत बनाकर हीन बना डाला ( मत्स्य. ४७; वायु. २.३६; दे. भा. ४. १११२) । इसे ऊर्जस्वती तथा जयंती से देवयानी उत्पन्न हुई । देवी नामक कन्या इसने वरुण को ब्याही थी ( म. आ. ९२ उशिज ६०.५२ ) । इसे षण्ड तथा मर्क नामक दो पुत्र थे ( भा. ७. ५.१ ) । इसे आंगी से त्वष्ट, वरुत्रिन् तथा षण्डामर्क हुए ( कच, वामन तथा बृहस्पति देखिये ) । इसे अरजा नामक एक पुत्री थी (पद्म. सु. ३७) । छठवें मन्वंतर में यह व्यास था । ( व्यास देखिये) । शिवावतार गोकर्ण का शिष्यं । सारा जग मनोमय है, यह बताने के लिये इसकी कथा प्रयुक्त की गयी है ( यो. वा. ४.५ - १६ ) । इसने वास्तुशास्त्र पर एक ग्रंथ रचा है ( मत्य २५२ ) । यह धर्मशास्त्रकार था। उशनसधर्मशास्त्र नामक सात अध्यायोंवाली एक छोटी पुस्तक उपलब्ध है जिसमें आद्ध, प्रायश्वित्त, महापातकों के लिये प्रायश्चित्त तथा अन्य व्यावहारिक निर्बंधों के संबंध में जानकारी दी गयी है। उसके धर्मसूत्र में बहुत से सूप मनुस्मृति तथा बौधायन धर्मसूत्र के सूत्रों से मिलते जुलते हैं या ने इसका निर्देश किया है (१.५); मिताक्षरा ( २.२६० ); तथा अपरार्क ग्रंथ में अशनस धर्मशास्त्र के कुछ उद्धरण लिये गये हैं । उसी तरह औशनसस्मृति नामक दो ग्रंथ पहला ५१ श्लोकों का व दूसरा ६०० श्लोकों का जिवानंदसंग्रह में उपलब्ध है। • राजनीति विषय पर इसका शुक्रनीति नामक ग्रंथ उपलब्ध है। इसमें से कौटिल्य ने बहुत से उद्धरण लिये है। उशनस् उपपुराण का निर्देश औशनस उपपुराण के लिये किया गया है। अनेक स्थानों पर भीशनस उपपुराण का निर्देश मिलता है ( कूर्म. १.३; गरुड. १.२२३. १९ ) । २. उत्तम मनु का पुत्र ।. ३. सावर्णि मनु का पुत्र । - ४. स्वायंभुव मनु का एक देव भौत्य मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक। इसके लिये 'शुद्ध' नाम भी प्रयुक्त है। C ६. सुतप देवों में से एक । ७. उरु तथा षडायी का पुत्र । ८. (सो. व.) भागवतमतानुसार धर्म का पुत्र । भविष्यमतानुसार तामस का पुत्र । उशिक - (सो. क्रोष्टु. ) कृति का पुत्र । इसका पुत्र चेदि । २. शिव के श्वेत नामक दुसरे अवतार का शिष्य । ( भा. ९.२४.२ ) उशिज्— कक्षीवत् देखिये ।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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