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उलूक
प्राचीन चरित्रकोश
उशनस्
इसका युद्ध हुआ था (म. क. १८.१)। सहदेव ने इसका उल्मुक (स्वा.) चक्षुर्मनु तथा नड्वला के ग्यारह वध किया (म. श. २७-२९)।
पुत्रों में कनिष्ठ । इसकी स्त्री पुष्करिणी । अंग, सुमनस् , ३ हिरण्याक्ष दैत्य के चार पुत्रों में से एक । ख्याति, तु, अंगिरा तथा गय ये इसके छः पुत्र थे( भा. ४ शिवावतार सोम का शिष्य ।
४.१३.१७)। ५ शिवावतार सहिष्णु का शिष्य ।
२. (सो. वृष्णि.) बलराम का पुत्र । यह राजसूय में . उलूकी-कश्यप तथा ताम्रा की कन्या । इसे उलूक था (म. स. ३१.१६)। भारतीय युद्ध में यह पांडवों के हुए (म. आ. ६०. ५४)। काकी भी इसका नाम | पक्ष में था (म. द्रो. १०.१८)। रहा होगा।
उल्लप-उलूप का पाठभेद । उलूखल-व्यास की सामशिष्यपरंपरा के ब्रह्मांड उशंगु-(रुशंगु) एक ऋषि। इसने अपने को मतानुसार हिरण्यनाभ के शिष्यों में से एक (व्यास | वार्धक्य आया देख पृथूदकतीर्थ में देह त्याग कर विष्णुदेखिये )। वायु में उलूखलक ऐसा पाठ है। लोक में गमन किया: (म. श. ३८.२४-२६)। इसके उलूप-विश्वामित्रकुल का ऋषि गण।
आश्रम में आर्टिषेण, विश्वामित्र, सिंधुद्वीप, देवापि आदि. उलूपी ऐरावत नाम नागकुल के कौरव्य नाग की | ने तप कर ब्राह्मण्य प्राप्त किया था (म. श. ३८. ३१कन्या । यह ऐरावत नाग के पुत्र से ब्याही गयी थी।। ३२)। उस स्थान पर बलराम तीर्थयात्रा के निमित्त गया विवाहोपरांत कुछ ही दिनों में गरुड ने इसके पति का | था। वध किया। इस कारण यह बालविधवा हुई। कालोपरांत उशद्रथ-(सो. अनु.) भागवतमतानुसार तितिक्षुपंडुपुत्र अर्जुन तीर्थयात्रा करने निकला वह गंगा में स्नान | पुत्र । करने उतरा । उसे देख इसके मन में अजुन के प्रति प्रेम | उशनस-अग्नि देवताओं का दूत है तथा उशना उत्पन्न हुआ तथा वह उसे पानी में खींच ले गयी।
काव्य असुरों का कुलगुरु व अध्वर्यु है । अग्नि तथा उशना अर्जुन ने उलूपी की प्रार्थना स्वीकार कर इससे गांधर्व | काव्य दोनों प्रजापति के पास गये, तब प्रजापति ने उशना विधि से विवाह किया । इस विवाह में ऐरावत की भी | काव्य की ओर पीठ कर अग्नि को नियुक्त किया, जिस सम्मति थी कारण इससे अपने वंश का विस्तार होगा | कारण देवताओं की जय तथा असुरों की पराजय हुई यह बात उसने ध्यान में रखी थी। बाद में उलुपी को (तै. सं.२.५.८)। यह असुरों का पुरस्कर्ता था (जै. उ. अजुनसे इरावान् नामक पुत्र हुआ (म. आ. २०६; | ब्रा. २.७.२-६.) वारुणि भृगु का पुलोमा से उत्पन्न पुत्र भी. ८६.६)। पांडवों के अश्वमेध के समय अजुन बभ्रु- (मत्स्य २४९.७; ब्रह्म. ७३.३१-३४)। भृगु का उषा से बाहन के हाथ से मारा गया। वस्तुतः वह मरा नहीं था; | उत्पन्न पुत्र (विष्णुधर्मोत्तर. १.१०६). उमा ने इसे भीष्म को शिखंडी की आड से मारने के कारण लगे पाप
दत्तक लिया था (म. शां. २७८.३४)। इसको काव्य का निरसन हो इसलिये उलूपी ने माया के योग से इसे | य. २... वाय.ए.७४-७) कवि(म आ... मलित किया था। फिर उलूपी ने संजीवनी मंत्र का | ४०). शक्र ( अंधक देखिये; म. शां. २७८.३२). कवद्रि चितन किया तथा तुरंत ही नागों ने वह ला दिया जिसके | (म. क. ९८) कविसत, ग्रह, आदि नाम थे। ब्रह्मदेव द्वारा अर्जुन की मूर्छा दूर कर उसे उलूपी ने सावधान
कर उस उलूपा न सावधान | ने पुत्र माना इसलिये ब्राह्म, शिव ने वरुण माना इसलिये किया (म. आश्व ७८-८०; बभ्रुवाहन देखिये)। पांडव
| वारुण आदि नामों से इसे संबोधित करते हैं। उशना, जब महाप्रस्थान के लिये निकले तब उलूपी उनके साथ
शुक्र तथा काव्य ये सब एक हैं (वायु. ६५.७५)। थी। बाद में इसने गंगा में देहत्याग किया (म. महा. |
इसकी माता का नाम ख्याति तथा पिता का नाम कवि १.२५)।
मिलता है (भा. ४.१)। भृगु का दिव्या से उत्पन्न शुक्र उल्कामुख--राम की सेना का एक वानर । यह | तथा यह एक ही है। (ब्रह्मांड. ३.१.७४)। इसकी अंगद के साथ दक्षिण दिशा में सीता की खोज में गया स्त्री शतपर्वा (म. उ. ११५. १३)। इसकी पितृसुता था (वा. रा. कि. ४१)।
आंगी नामक एक स्त्री थी। इसके अतिरिक्त निम्नउल्बण-(स्वा.) वसिष्ठ तथा अरुंधती के सात लिखित स्त्रियां भी थीं। प्रियव्रतपुत्री ऊर्जस्वती (भा. पुत्रों में से एक।
५.१); पुरंदर कन्या जयंती (मस्त्य. ४७)। पितृकन्या