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________________ उर्वशी प्राचीन चरित्रकोश उलूक प्रार्थना की, परंतु नरनारायणों ने उनकी सेवा स्वीकार | (भा. ९.१४-१५, विष्णु. ४.६-७; दे. भा. १.१३; म. नहीं की (दे. भा. ४.६; भा. ११.४; मत्स्य. ६०)। आ. ७०.२२)। यह एक बार सूर्याराधना को जा रही थी। तब इसने | ___ अर्जुन के जन्म के समय गायन करने वाली ग्यारह अप्सराओं में यह भी एक थी (म. आ. ११४.५४)। मित्र आदित्य को वरण करने का आश्वासन दिया। आगे वरुण मिला उसने भी इसे वरण करने का अभिवचन कुवेर की सभा में उसकी सदा सेवा करने में यह निमग्न मांगा। तब इसने मित्र को वचन देने की बात बताई । रहती है (म. स. १०.११)। अर्जन इंद्र लोक में शिक्षा वरुण ने बाद में इससे प्रेमयाचना की तथा वह इसने ग्रहण करने गया था। वहां एक बार इसकी ओर कुलकी दिया । तदुपरांत वरुण ने इसे उद्देश कर एक कुंभ में जननी इस पूज्यभाव से अर्जुन ने देखा । यह बात इन्द्र के अपना वीर्य डाला। मित्र को यह समझते ही उसने इसे ध्यान में न आयी तथा उसने सोचा कि, शायद काम शाप दिया “ मृत्युलोक में पुरूरवा की स्त्री हो"। तथा इच्छा से अर्जुन इसकी ओर देख रहा है इसलिये इंद्र ने अपना वीर्य एक कुंभ में डाला। इन दोनों कुंभों के चित्ररथ गंधर्व के द्वारा उर्वशी को समाचार भिजवाया वीर्य से अगस्त्य तथा वसिष्ठ का जन्म हुआ (पन. तब यह सायंकाल में सुंदर वस्त्रों से सजधज कर अर्जुन के स. २२; भा. ९.१४; मत्स्य. ६० वा. रा. उ. ५६.५७) पास गयी परंतु अर्जन ने खुद की भावना बता कर इसका मित्रावरुण बदरिकाश्रम में तप कर रहे थे। उस समय निषेध किया । इच्छाभंग होने के कारण इसने अर्जुन सौंदर्यवती उर्वशी फूल तोडते हुए इन्हें दिखाई पड़ी। को, 'तू एक वर्ष तक नपुंसक बन कर रहेगा,' ऐसा शाप तब इनका रेत स्खलित हुआ जिससे अगस्त्य तथा | दिया। तब इंद्र ने अर्जुन को सांत्वना दी कि तेरहवें वर्ष वसिष्ठ का जन्म हुआ। उर्वशी को देखते ही मित्र का (अज्ञातवास में) यह शाप तेरे काम आयेगा (म. व रेत स्खलित हुआ, जिसे उसने शाप के भय के कारण परि. १.६; प. १३२-१५०)। अष्टावक्र के सन्मान के पैरों तले रौंद डाला। तब वसिष्ठ का जन्म हुआ लिये वरुण ने जिन अप्सराओं का नृत्य कराया था उनमें (विष्णु. ४.५)। यह भी थी (म. अनु. १९.४४)। 'अनेकः पवित्र पदार्थ मेरा रक्षण करें; भीष्म के मुख से निकलने वाले एक बार नारद ने पुरूरवस् राजा की बहुत स्तुति की।। इस उल्लेख में पवित्र अप्सराओं में उर्वशी का नाम है। इस कारण यह उस पर मोहित हुई (भा.९.१४) । पुरूरवस् (म. अनु. १६५.१५). उर्वशी के नाम पर उर्वशीतीर्थ पर मोहित होने के कारण लक्ष्मीस्वयंवर नामक प्रबंधनाट्य | नामक एक पवित्र तीर्थस्थान प्रसिद्ध है (म.व. ८२.१३६ करते समय कुछ हावभावों में भूल हो गयी। तब भरत देवव्रत देखिये)। यह ब्रह्म-वादिनी थी ( ब्रह्मांड २.३३)। ऋषि ने शाप दिया, कि तूम पचपन वर्ष लता बन उर्वीभाव्य--(सो. कुरु भविष्य.) मत्स्यमतानुसार कर रहोगी। शाप की अवधि समाप्त होने पर जब यह पुरंजय का पुत्र । पुरूरवस् के पास जा रही थी, तब राह में केशी नामक उर्वीशू-यह पापी था, परंतु व्रत तथा दान के कारण दैत्य इसे उठा कर ले गया; परंतु सौभाग्यवश पुरूरवस् ने इसका उद्धार हुआ (पद्म. क्रि. १९)। ही इसे मुक्त किया (पद्म. स. १२. ७६-८५, मत्स्य, उल वातायन--सूक्तंद्रष्टा (ऋ. १०.१८६)। २४. २३-३२)। उल वार्णिवृद्ध--एक आचार्य (सां. ब्रा. ७.४)। तत्पश्चात् उर्वशी पुरूरवस के नगर में आयी तथा उलुक्य जानश्रुतेय--एक आचार्य (जै. उ. ब्रा. उसने अपनी तीन शतें बतायी। (१) इन दो भेडों को । १.६.३ ) मैं पुत्रवत् पाल रही हूं उनका संरक्षण करना होगा, (२) उलूक-एक ऋषि । (म. शां. ४७.६६*) विश्वामित्र मैं सदा घुताहार करूंगी, (३) मैथुन अतिरिक्त कभी तुम्हें | का पुत्र म. अनु. ७.५१ कुं.) नग्न न देखूगी। इन शर्तों का पालन करते हुए पुरूरवस् | २. एक क्षत्रिय । यह द्रौपदीस्वयंवर में था (म. आ. ने उर्वशी का चित्ररथ व नंदन आदि वनों तथा अलका | १७७.२०)। दुर्योधन ने इसे युद्धारंभ के पूर्व उपप्लव्य नगर आदि नगरों में ६१००० वर्ष तक उपभोग किया। परंतु में धर्मराज के पास दूत बनाकर भेजा था (म. उ. १५७. बाद में तीसरी शर्त भंग हो जाने के कारण वह देवलोक | १६०)। इसे कैतव भी कहते हैं । इसने धर्म को दुर्योधन गई। पुरूरवस् को इससे आयु आदि छः पुत्र हुए थे | का संदेश सुनाया (म. उ. १६०)। युयुत्सु के साथ
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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