________________
उपालि
बौद्ध व्यक्ति
उपालि-बुद्ध का एक प्रमुख शिष्य, जिसे स्वयं बुद्ध के द्वारा ' विनय पिटक ' की शिक्षा प्राप्त हुई थी ( दीपवंश ४.२.५)।
6
इसका जन्म कपिलवस्तु के एक नाई कुटुम्ब में हुआ था। शाक्य देश के अनिन्द आदि राजपुत्रों के साथ यह बुद्ध से मिलने गया, जहाँ बुद्ध ने अन्य सभी व्यक्तियों से पहले इसे 'या' प्रदान की, एवं इसे अपना शिष्य बनाया । 'प्रत्रज्या' प्रदान करने के पश्चात् उपस्थित सभी राजकुमारों को बुद्ध ने आशा की कि ये इसे वंदन करे। संघ में सामाजिक प्रतिष्ठा से भी बढ़कर अधिक महत्व व्यक्ति की धर्मविपना को है, इस सत्य का साक्षात्कार कराने के हेतु बुद्ध ने इसके साथ इतने बहुमान से पता किया।
,
विनयपिटक का अधिकारी व्यक्ति - स्वयं बुद्ध के द्वारा इसे पटकका सर्वश्रेष्ठ आचार्य कहा गया था ( अंगुत्तर, १.२४)। इसके अर्थ के संबंध में वहाँ कहीं शंका उपस्थित होती थी, तब इसीका ही मत अंतिम माना जाता था। इस संबंध में भारकच्छक एवं कुमार कश्यप की कथाओं का निर्देश भौद्ध साहित्य में पुनः पुनः पाया जाता है (विनय २.२९ ) । राजग्रह में हुई बौद्ध सभा में विनयपिटक के अधिकारी व्यक्ति के नाते इसने भाग लिया था ( धम्मपद. ३.१४५ ) । गौतमबुद्ध एवं उपालि के दरम्यान हुए 'विनय' संबंधित से संवाद पर आधारित 'उपाधि पंचक नामक एक अध्याय चौद ग्रंथों में प्राप्त है ( विनय. ५.१८० - २०६ ) । 'गौतम बुद्ध' - - बुद्धधर्म का सुविख्यात संस्थापक, जो बौद्ध वाङ्मय में निर्दिष्टपच्चीस बुद्धों में से अंतिम बुद्ध माना जाता हैं । बोध प्राप्त हुए साधक को बौद्ध वाङ्मय में 'बुद्ध' कहा गया है, एवं ऐसी व्यक्ति धर्म के ज्ञान के कारण अन्य मानवीय एवं देवी व्यक्तियों से श्रे माना गया है।
गौतम बुद्ध
१. दीपंकर, २. कौंडन्य; ३. मंगल; ४. सुमन, ५. रेवत; ६. शोभित, ७. अनोमदर्षिन् ८. पद्म ९. नारद १०.११. सुमेध १२ १२. प्रियदर्शन १४. अर्थदर्शिन् १५. धर्मदर्शिन्; १६. सिद्धांत; १७. तिप्यः १८. पुण्य |
उन्हों की नामावलि 'दीपवंश' जैसे प्राचीनतर बौद्ध ग्रंथ में बुद्धों की संख्या सात बतायी गयी है, एवं उनके नाम निम्न प्रकार दिये गये है :-- १. विपश्यः २. शिखिन् ३. वेश्यभूः ४ ककुसंध; ५. कोणागमन; ६. कश्यप ७. गौतम (दौर. २.५ २.५ ) | 'बुद्धवंश' जैसे उत्तरकालीन बौद्ध ग्रंथ में बुद्धों की संख्या पच्चीस बतायी गयी है, जिनमें उपनिर्दिष्ट बुद्धों के अतिरिक्त निम्नलिखित वृद्ध विपश्य से पूर्वकालीन बताये गये हैं।
जन्म -- गौतम के आबस्ती से साठ मी
पिता का नाम शुद्धोदन था, जो उत्तर में एवं रोहिणी नदी के पश्चिम तट पर स्थित शाक्यों के संघराज्य का प्रमुख था । शासयों की राजधानी कपिलवल में थी, जहाँ गौतम का जन्म हुआ था। प्राचीन शाक्य जनपद कोसल देश का ही भाग था, इसी कारण गौतम 'शाकीय' एवं 'कोसल' कहखाता था (म. २.१२४ ) ।
गौतम की माता का नाम महामाया था, जो रोहिणी नदी के पूरव में स्थित कोलिय देश की राजकन्या थी । आषाढ. माह की पौर्णिमा के दिन महामाया गर्भवती हुई, जिस' दिन बोधिसत्व ने एक हाथी के रूप में उसके गर्भ में प्रवेश किया। दस महीनों के बाद कपिलवस्तु से देवदह नगर नामक अपने मायके जाते समय लुंबिनीवन में वह प्रसूतं. हुई। वैशाख माह की पौर्णिमा बौद्ध का जन्मदिन मानी गयी है। इसी दिन इसकी पत्नी राहुतमाता बोध, इसका मंथक नामक अथ एवं छन्न एवं नामक इसके नौकर पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए। गौतम का जन्मस्थान
बनी आधुनिक काल में 'रुम्मिन देई' नाम से सुविख्यात है, जो नेराल की तराई में वस्ती नामक जिले की सीमा पर स्थित है । इसके जन्म के पश्चात् सात दिनों के बाद इसकी माता की मृत्यु हुई। जन्म के पाँचवे दिन इसकी नामकरणविधि सम्पन्न हुई, जिसमें इसका नाम 'सिद्धा' रक्खा गया ।
स्वरूपवर्णन इसका स्वरूपवर्णन बौद्ध साहित्य में प्राप्त है | यह लंबे कद का था। इसकी आँखे नीली, रंग गोरा, कान लटकते हुए, एवं हाथ लंबे थे, जिनकी अंगुलियों घुटने तक पहुँचती थी। इसके देश परा थे एवं छाती चौड़ी थी।
.
इसकी आवाज अतिसुंदर एवं मधुर थी, जिसमें उत्कृष्ट वक्ता के लिए आवश्यक प्रवाह, माधुर्य, सुस्पष्टता, तर्कशुद्धता एवं नादमधुरता ये सारे गुण समाविष्ट थे ( मज्झिम. १.२६९, १७५ ) । बौद्ध साहित्य में निर्दिष्ट महापुरुष के बत्तीस लक्षणों से यह युक्त था ।
बाल्यकाल एवं साग्य उसकी आयु के पहले उन्तीस वर्ष शाही आराम में व्यतीत हुए। इसके रम्य, सुरम्य,
११२४