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हनुमत्
प्राचीन चरित्रकोश
हनुमत
कर अंजनी ने उसे पर्वत के नीचे फेंकना चाहा, किंतु | त्रस्त करने लगा। एक बार इसने भृगु एवं अंगिरस् वायु की कृपा से यह जीवित रहा ( भवि. प्रति. ४.१३. ऋषियों को त्रस्त किया, जिस कारण उन्होंने इसे शाप ३१.३६)।
दिया, 'अपने अगाध देवी सामथ्र्य का तुम्हें स्मरण न नामांतर- वाल्मीकि रामायण एवं महाभारत में रहेगा, एवं कोई देवतातुल्य व्यक्ति ही केवल उसे पहचान इसे सर्वत्र 'वायुपुत्र , 'पवनात्मज', 'अनिलात्मज', कर उसका सुयोग्य उपलोग कर सकेगा। 'वायुतनय आदि उपाधियों से भूषित किया गया है। सुग्रीव का मंत्री-सूर्य ने इसे व्याकरण, सूत्रवृत्ति,
इसके अतिरिक्त इसे निम्नलिखित नामांतर भी प्राप्त वार्तिक, भाष्य, संग्रह आदि का ज्ञान कराया, एवं यह थे :--१. मारुति, जो नाम इसे मरुतपुत्र होने के कारण, सर्वशास्त्रविद् बन गया। पश्चात् सूर्य की ही आज्ञा से प्राप्त हुआ था; २. हनुमत् , जो नाम इसे इन्द्र के वज्र के यह सुग्रीव का स्नेही एवं बाद में मंत्री बन गया (शिव. द्वारा इसकी हनु टूट जाने के कारण प्राप्त हुआ था; शत. २०)। ३. वज्रांग (बजरंग)), जो नाम इसे वज्रदेही होने के सीताशोध के लिए किष्किंधा राज्य में आये हुए कारण प्राप्त हुआ था, ४. बलभीम, जो नाम इसे अत्यंत राम एवं लक्ष्मण से परिचय करने के हेतु सुग्रीव ने इसे बलशाली होने के कारण प्राप्त हुआ था।
ही भेजा था। उस समय भिक्षुक का रूप धारण कर यह अस्त्रप्राप्ति--यह बाल्यकाल से ही बलपौरुष से युक्त पंचासरोवर गया, एवं अत्यंत मार्मिक भाषा में अपना है, जिसके संबंध में चमत्कृतिपूर्ण कथाएँ विभिन्न पुराणों / परिचय राम को दे कर, किष्किंधा राज्य में आने का :में प्राप्त है । एक बार अमावास्या के दिन अंजनी फल उसका हेतु पूछ लिया। लाने गयी, उस समय भूखा हुआ हनुमत् खाने के लिए
___संभाषणचातुर्य-उस समय इसकी वाक्चातुर्य एवं फल ढूँढने लगा। पश्चात् उदित होनेवाले रक्तवर्णीय
संभाषण पद्धति से राम अत्यधिक प्रसन्न हुआ:--. सूर्यबिंब को देख कर यह उसे ही एक फल समझ बैठा, अविस्तरमसंदिग्धमविलम्बितमव्ययम्। . एवं उसे प्राप्त करने के लिए सूर्य की ओर उड़ा।
उरस्थं कण्ठगं वाक्यं वर्तते मध्यमस्वरम् ॥ उड़ान करते समय इसने राह में स्थित राहु को धक्का
संस्कारक्रमसंपन्नाम् , अद्रतामविलम्बिताम् । लगाया, जिससे क्रोधित हो कर इंद्र से इसकी शिकायत की।
उच्चारयति कल्याणी वाचं हृदयहर्षिणीम् ॥ इंद्र ने अपना वज्र इस पर प्रहार किया, एवं यह एक
(वा. रा. कि. ४.३१-३२)। पर्वत पर मूच्छित हो कर गिर पड़ा। अपने पुत्र को मूछित हुआ देख कर वायुदेव इंद्र से युद्ध करने
(हनुमत् का संभाषण अविस्तृत, स्पष्ट, सुसंस्कारित के लिए उद्यत हुआ। यह देख कर समस्त देवतागण
एवं मुसंगत है। वह कंट, हृदय एवं बुद्धि से एकसाथ घबरा गया, एवं अंत में स्वयं ब्रह्मा ने मध्यस्थता कर
उत्पन्न हुआ सा प्रतीत होता है। इसी कारण इसका हनुमत् एवं इंद्र में मित्रता प्रस्थापित की ।
संभाषण एवं व्यक्तित्व श्रोता के हृदय के लिए प्रसन्न,
एवं हर्षजनक प्रतीत होता है)। उस समय इंद्र के सहित विभिन्न देवताओं ने इसे निम्नलिखित अनेकानेक अस्त्र एवं वर प्रदान कियेः-- ___ पश्चात् इसकी ही सहायता से राम एवं सुग्रीव में १. इंद्र--वज्र से अवध्यत्व एवं हनुमत् नाम; २. सूर्य- मित्रता प्रस्थापित हुई । तदुपरांत राम एवं सुग्रीव में जहाँ सूर्यतेज का सौवा अंश, एवं अनेकानेक शास्त्र एवं अस्त्रों कलह के, या मतभेद के प्रसंग आये, उस समय यह उन का ज्ञान; ३. वरुण- वरुणपाशों से अवद्धत्व; ४. यम- दोनों में मध्यस्थता करता रहा। वालिन्वय के पश्चात् आरोग्य, युद्ध में अजेयत्व एवं चिरउत्साह; ५. ब्रह्मा-विषयोपभोग में लिप्त सुग्रीव को इसने ही जगाया, एवं युद्ध में भयोत्पादकत्व, मित्रभयनाशकत्व, कामरूपधारित्व | राम के प्रति उसके कर्तव्य का स्मरण दिलाया (वा. रा. एवं यथेष्टगामित्व; ६. शिव- दीर्घायुष, शास्त्रज्ञत्न एवं | कि. २९)। समुद्रोल्लंबनसामर्थ्य (पद्म. पा. ११४; उ. ६६; नारद । सीताशोध- सीताशोध के लिए दक्षिण दिशा १. ७९)।
की ओर निकले हुए वानरदल का यह प्रमुख बना, एवं ऋषियों से शाप--देवताओं से प्राप्त अस्त्रशस्त्रों के सीताशोध के लिए निकल पड़ा । इस कार्य के लिए कारण यह अत्यधिक उन्मत्त हुआ, एवं समस्त सृष्टि को | जाते समय रास्ते में यह कण्डुक ऋषि का आश्रम, लोध्र
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