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हनुमत्
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प्राचीन चरित्रकोश
हनुमत
• 'हनुमत्' एक द्राविड शब्द--'रावण' शब्द की भाँति | हनुमत् देवता का सद्यःस्वरूप--भारतवर्ष के सभी 'हनुमत् ' भी एक द्राविड शब्द है, जो 'आणमंदी' | प्रदेशों में हनुमत् की उपासना अत्यंत श्रद्धा से आज की अथवा 'आणमंती' का संस्कृत रूप है; 'अण्' का | जाती है, जहाँ इसे साक्षात् रुद्रावतार एवं सदाचरण का अर्थ है 'नर', एवं 'मंदी' का अर्थ है 'कपि'। इस | प्रतीक रूप देवता माना जाता है। आध्यात्मिक ज्ञान प्रकार एक नरवानर के प्रतीकरूप में हनुमत् की कल्पना सर्व प्रदान करनेवाले शिव की, एवं व्यावहारिक कामनापूर्ति प्रथम प्रसृत हुई । इसी नरवानर को आगे चल कर देवता- | करनेवाले हनुमत् , भारत के सभी ग्रामों में आज सब से स्वरूप प्राप्त हुआ, एवं उत्तरकालीन साहित्य में राम एवं अधिक लोकप्रिय देवता हैं। इनमें से हनुमत् की उपासना लक्ष्मण के समान हनुमत् भी एक देवता माना जाने लगा। आरोग्य, संतान आदि की प्राप्ति के लिए,एवं भूतपिशाच
गुणवैशिष्टय--हनुमत् की इस देवताविषयक धारणा आदि की पीड़ा दूर करने के लिए की जाती है । हनुमत् में इसका अर्थ वानराकृति रूप यही सब से बड़ी भूल.कही | का यह 'ग्रामदेवता स्वरूप' वाल्मीकि रामायण में जा सकती है। सुंग्रीव, वालिन् आदि के समान यह निर्दिष्ट हनुमत् से सर्वथा विभिन्न है, एवं वह ई. स. वानरजातीय अवश्य था, किन्तु बंदर न था, जैसा कि, ८ वी शताब्दी के उत्तरकाल में उत्पन्न हुआ प्रतीत
आधुनिक जनश्रुति मानती है। वाल्मीकिरामायण में | होता है। निर्दिष्ट अन्य वानरजातीय वीरों के समान यह संभवतः जन्म-जैसे पहले ही कहा जा चुका है, यह सुमेरु उन आदिवासियों में से एक था, जिनमें वानरों को देवता | के राजा केसरिन् एवं गौतमकन्या अञ्जना का पुत्र था। मान कर पूजा की जाती थी ( वानर देखिये)। यह अञ्जना को वायुदेवता के अंश से उत्पन्न हुआ था,
हनुमत् के व्यक्तित्व की यह पार्श्वभूमि भूल कर, उसे | एवं इसका जन्मदिन चैत्र शुक्ल पुर्णिमा था। एक सामान्य वानर मानने के कारण इसका स्वरूप, इसके जन्म के संबंध में अनेकानेक कथाएँ पौराणिक पराक्रम एवं गुणवैशिष्टयों को काफी विकृत स्वरूप प्राप्त | साहित्य में प्राप्त है, जो काफ़ी चमत्कृतिपूर्ण प्रतीत हुआ है, जो उसके सही स्वरूप एवं गुणवैशिष्टयों को होती हैं। शिवपुराण के अनुसार, एक बार विष्णु ने मोहिनी धुंधला सा बना देता है।
का रूप धारण कर शिव को कामोत्सुक किया । पश्चात् हनुमत् देवता का मूल स्त्रोत-कई अभ्यासकों के | मोहिनी को देख कर स्खलित हुआ शिव का वीर्य सप्तर्षियों अनुसार, प्राचीन काल में हनुमत् कृषिसंबंधी एक देवता / ने अपने कानों के द्वारा अंजनी के गर्भ में स्थापित किया, था, जो संभवतः वर्षाकाल का, एवं वर्षाकाल में उत्पन्न हए | जिससे यह उत्पन्न हुआ (शिव. शत. २०)। वायु का अधिष्ठाता था। इसी कारण हनुमत् का बहुत
आनंदरामायण के अनुसार, दशरथ के द्वारा किये गये सारा वर्णन वैदिक मरुत् देवता का स्मरण दिलाता है। पुत्रकामेष्टियज्ञ में उसे अग्नि से पायस प्राप्त हुआ, जो यह वायुपुत्र बादलों के समान कामरूपधर, एवं आकाश- |
आगे चल कर उसने अपने पत्नियों में बाँट दिया। इसी गामी है। यह दक्षिण की ओर से, जहाँ से वर्षा आती पायस में से कुछभाग एक चील उड़ा कर ले गयी । आगे है, सीता अर्थात कृषि के संबंध में समाचार राम को चल कर, वहीं पायस चील के चोंच से छूट कर तप करती पहुँचाता है। इस प्रकार इंद्र के समान हनुमत का भी हुयी अञ्जनी के अंजुलि में जा गिरा। उसी पायस- के संबंध वैदिककालीन वर्षादेवता से प्रतीत होता है। | प्रसाद से इसका जन्म हुआ।
आँठवी शताब्दी तक यह रुद्रावतार माने जाने भविष्यपुराण में इसके कुरूपता की मीमांसा इसे शिव लगा, एवं इसके ब्रह्मचर्य पर जोर दिया जाने लगा। एवं वायु का अंशावतार बता कर की गयी है। एक बार बाद में महावीर हनुमत् का संबंध, प्राचीम यक्षपूजा | शिव ने अपने रौद्रतेज के रूप में, अंजनी के पति केसरिन् (वीरपूजा) के साथ जुड़ गया, एवं बल एवं वीर्य की वानर के मुह में प्रवेश किया, एवं उसीके द्वारा अंजनी के देवता के नाते इसकी लोकप्रियता एवं उपासना और | साथ संभोग किया । पश्चात् वायु ने भी केसरिन् वानर भी व्यापक हो गयी है। आनंद रामायण के अनुसार, के शरीर में प्रविष्ट हो कर अंजनी के साथ रमण किया। पृथ्वी के सभी वीर हनुमत् के ही अवतार है:
इन दो देवताओं के संभोग के पश्चात् अंजनी गर्भवती ये ये वीरास्त्वत्र भूम्यां वायुपुत्रांशरूपिणः। हुई, एवं उसने एक वानरमुख वाले पुत्र को जन्म दिया, ' (आ. रा.८.७.१२३)। | जो हनुमत् नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसका विरूप मुख देख
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