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________________ हंस प्राचीन चरित्रकोश हनुमत् एवं इसे लत्ताप्रहार कर पाताल में ढकेल दिया। वहाँ अर्जुन से युद्ध-युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के समय, अर्जुन पाताल के सपों के दंश से इसकी मृत्यु हो गयी (ह.व. | के द्वारा रक्षण किया गया अश्व इसने पकड़ लिया, जिस ३.१२८)। कारण इसके सुधन्वन् एवं सुरथ नामक दो पुत्रों का अर्जुन महाभारत के अनुसार, अपने भाई डिम्भक के । ने वध किया। वध की वार्ता सुन कर, इसने स्वयं ही यमुना नदी में कूद पश्चात् अत्यधिक क्रुद्ध हो कर यह स्वयं युद्धभूमि में प्रविष्ट कर आत्महत्या कर ली (म. स. १३.४०-४२)। हुआ, एवं अर्जुन से युद्ध करने लगा। इससे युद्ध करने जरासंध का विलाए-इनके वध की वार्ता ज्ञात होते पर अर्जुन की निश्चित ही मृत्यु होगी, यह जान कर कृष्ण ही जरासंध राजा ने अत्यधिक शोक किया, एवं दीर्घकाल | ने इन दोनों में मध्यस्थता की, एवं अश्वरक्षण के कार्य तक विलाप करता रहा। आगे चल कर भीमसेन ने अपने में अर्जुन की सहायता करने की इससे प्रार्थना की। पूर्व दिग्विजय में जरासंध पर आक्रमण किया, उस समय परिवार-इसके सुरथ, सुधन्वन् , सुदर्शन, सुबल एवं सम भी उसने अपने इन दोनों स्वर्गीय मंत्रियों का स्मरण नामक पाँच पुत्र थे ( जै. अ. १७.२१)। किया था (म. स. १३.३६)। हंसवक्त्र--संद का एक सैनिक (म. श. ४४.७०)। ८. जरासंध की सेना का एक राजा, जो कृष्ण एवं हसिका--सुरभि नामक कामधेनु की एक गोस्वरूपी जरासंध के दरम्यान हुए सत्रहवें युद्ध में बलराम के द्वारा कन्या, जो दक्षिण दिशा को धारण करती है (म. उ. मारा गया (म. स. १३.४२-४३)। १००.८)। पाठभेद (भांडारकर संहिता)-'हंसका। ९. एक श्रेष्ठ पक्षी, जो कश्यपपत्नी ताम्रा का पौत्र, एवं हंसी--भगीरथ राजा की कन्या, जो कौत्स ऋषि की ताम्राकन्या धृतराष्ट्री की संतान मानी जाती है (म. आ. पत्नी थी (म. अनु. २००.२६)। ६०.५६)। हंडिदास--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। महाभारत में हंस पक्षियों का निर्देश अनेकबार आता हनुमत् अथवा हनूमत्--एक सुविख्यात वानर, जो है । सुवर्ण से विभूषित एक हंस ने नल एवं दमयंती के सुमेरु के केसरिन् नामक वानर राजा का पुत्र, एवं संदेश एक दूसरे को पहुँचा कर, उनमें अनुराग उत्पन्न किष्किंधा के वानरराजा सुग्रीव का अमात्य था। एक किया था (म. व. ५०.१९-३२)। कुशल एवं संभाषणचतुर राजनीतिज्ञ, वीर सेनानी एवं भीष्म की मृत्यु के समय, सप्तर्षियों ने हंस का रूप निपुण दूत के नाते इसका चरित्र-चित्रण वाल्मीकि धारण कर उसे दक्षिणायन में प्राणत्याग करने से रोका था रामायण में किया गया है। (म. भी. ११४.९०) । एक हंस एवं काक का रूपकात्मक वाल्मीकि रामायण में इसे शौर्य, चातुर्य, बल, धैर्य, आख्यान भी कणीजुन युद्ध के समय निर्दिष्ट है (म. क. पाण्डित्य, नीतिमानता एवं पराक्रम इन दैवी गुणों का २८.१०-५४)। आलय कहा गया है- , हंसकायन-एक क्षत्रिय लोकसमूह, जो युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भेंट ले कर उपस्थित हुआ था। शौर्य, दाक्ष्यं, बलं, धैर्य, प्राज्ञता नयसाधनम् | हंसचूड---कुबेरसभा का एक यक्ष (म. स. १०.१६)। विक्रमश्च प्रभावश्च हनृमति कृतालयाः॥ पाठभेद ( भांडारकर संहिता)-'अंगचूड' । (वा. रा. उ. ३५.३)। हंसजिह्व-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इस प्रकार निपुण राजनीतिज्ञ, समयोचित मंत्रणा हंस-डिम्भक-शाल्वदेव का एक राजाद्वय, जो जरासंध | देनेवाला सचिवोत्तम, एवं महापराक्रमी वीर पुरुष हो के प्रमुख मंत्री एवं सलाहगार थे (हंस ७. देखिये)। कर भी यह विनम्रता, निरभिमानता, दीनता, वाणी की __ हंसध्वज--चंपक नगरी का एक विष्णुभक्त राजा, | मनोहारिता आदि सत्त्वगुणों से भी भरपूर था । इसी कारण जिसके विदूरथ, चंद्र केतु, चंद्रसेन आदि बन्धु थे। इसके | एक पराक्रमी वीरपुरुष के नाते नहीं, बल्कि राम के परममंत्रियों के नाम सुमति, सुगति, तुष्ट एवं श्रद्धालु थे, एवं भक्त एवं दासानुदास के नाते ही लोग इसे पहचानते हैं, शंख एवं लिखित नामक बंधुद्वय इसके पुरोहित थे । अपने एवं यही सेवापरायणता इसका सर्वश्रेष्ठ विन्द माना राज्य में इसने एकपत्नीव्रत का पुरस्कार किया था। गया है। १०९८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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