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हनुमत् .
प्राचीन चरित्रकोश
हनुमत्
वन् .एवं सुपर्णवन आदि होता हुआ तपस्विनी स्वयंप्रभा | पर बैठ कर इसने रामचरित्र एवं स्वचरित्र का गान किया, के आश्रम में पहुँच गया। स्वयंप्रभा ने इसे एवं एवं अपना परिचय सीता से दिया। राम के द्वारा दी गयी अन्य वानरों को समुद्रकिनारे पहुँचा दिया। वहाँ जटायु | अभिज्ञान की अंगूठी भी इसने उसे दी (वा. रा. सं. का भाई संपाति इससे मिला, एवं सीता का हरण रावण के | ३२-३५)। द्वारा ही किये जाने का वृत्त उसने इसे सुनाया । उसी पश्चात् अपने पीठ पर बिठा कर सीता को बंधनमुक्त समय लंका में स्थित अशोकवन में सीता को बंदिनी कराने का प्रस्ताव इसने उसके सम्मुख रखा, किन्तु सीता किये जाने का वृत्त भी इसे ज्ञात हुआ (वा. रा. कि. | के द्वारा उसे अस्वीकार किये जाने पर (सीता देखिये), ४८-५९)।
इसने उसे आश्वासन दिया कि, एक महीने के अंदर राम समुद्रोल्लंघन-लंका में पहुंचने में सब से बड़ी समस्या | स्वयं लंका में आ कर उन्हें मुक्त करेंगे (वा. रा. सु.३८)। समुद्रोल्लंघन की थी। इसके साथ आये हुए. बाकी सारे | लंकादहन--सीताशोध का काम पूरा करने के वानर इस कार्य में असमर्थ थे । अतएव इसने अकेले ही | पश्चात् इसने चाहा कि यह रावण से मिले । अपनी समुद्र लांघने के लिए छलांग लगायी। राह में इसे आराम | ओर रावण का ध्यान खींच लेने के हेतु इसने अशोकदेने के लिए मेरुपर्वत समुद्र से उभर आया । देवताओं वन का विध्वंस प्रारंभ किया । यह समाचार मिलते ही उसने के द्वारा भेजी गयी नागमाता सुरसा ने इसके सामर्थ्य की पहले जंबुमालिन् , एवं पश्चात् विरूपाक्षादि पाँच सेनापरीक्षा लेनी चाही, एवं पश्चात् इसे अंगीकृत कार्य में पतियों के साथ अपने पुत्र अक्ष को इसके विनाशार्थ भेजा। यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।
किन्तु इन दोनों का इसने वध किया । पश्चात् इंद्रजित् ने ___ आगे चल कर लंका का रक्षण करनेवाली सिंहिका | इसे ब्रह्मास्त्र से बाँध कर रावण के सामने उपस्थित
राक्षसी इससे युद्ध करना चाही, किन्तु इसने उसे किया (वा. रा. सु. ४१-४७)। • परास्त किया । पश्चात् एक सूक्ष्माकृति मक्खी का रूप
| रावण ने इसके वध की आज्ञा दी, किन्तु विभीषण के धारण कर यह लंब पर्वत पर उतरा, एवं वहाँ से लंका में
के द्वारा समझाये जाने पर इसके वध की आज्ञा स्थगित प्रवेश किया (वा. रा. सु. १; म. व. २६६)। वहाँ लंका
कर दण्डरवरूप इसकी पूंछ में आग लगाने की आज्ञा दी देवी को युद्ध में परास्त कर यह सीता शोध के लिए
| (वा. रा. सु. ५२)। इस समय अपनी माया से पूँछ बढ़ाने 'निकल पड़ा।
की, एवं रावणसभा में कोलाहल मचाने की चमत्कृतिपूर्ण , अशोकवन में-सीता की खोज करने के लिए इसने
कथा आनंदरामायण में प्राप्त है (आ. रा. सार. ९)। यहाँ लंका के सारे मकान हूँढे । पश्चात् रावण के सारे महल,
र महल तक की इसने रावण के मूंछदादी में आग लगायी। शयनागार, भंडारघर, पुष्पक विमान आदि की भी इसने
पश्चात् इसने अपनी जलती पूँछ से सारी लंका में छानबीन की। किन्तु इसे कहीं भी सीता न मिली।
आग लगायी । पश्चात् इसे यकायक होश आया कि, लंकाअतः सीता की सुरक्षा के संबंध में यह अत्यंत चिंतित हुआ, एवं अत्यंत निराश हो कर वानप्रस्थ धारण करने का
दहन से सीता न जल जाये। यह ध्यान आते ही, यह पुनः
एक बार सीता के पास आया, एवं उसे सुरक्षित देख कर विचार करने लगा
अत्यंत प्रसन्न हुआ। बाद में सीता को वंदन कर एक छलांग हस्तादानो मुखादानो नियतो वृक्षमूलिकः । में यह पुनः एक बार महेंद्र पर्वत पर आया (वा. रा. सं. वानप्रस्थो भविष्यामि अदृष्ट्वा जनकात्मजाम् ॥ . (वा. रा. सु. १३.३८)।
| सुग्रीव से भेंट -सीता का शोध लगाने का दुर्घट कार्य (सीताशोध के कार्य में अयशस्विता प्राप्त होने के कारण यशस्वी प्रकार से करने के कारण सुग्रीव ने इसका अभियही अच्छा है कि,मैं वानप्रस्थ का स्वीकार कर,एवं विरागी नंदन किया । पश्चात् राम ने भी एक आदर्श सेवक के बन कर यहीं कहीं फलमूल भक्षण करता रहूँ)। | नाते इसकी पुनः पुनः सराहना की (वा. रा. यु. १.
सीता से भेंट--अंत में यह नलिनी नदी के तट पर | ६-७)। उस समय राम ने कहा, 'हनुमत् एक ऐसा स्थित अशोकवन में पहुँच गया, जहाँ राक्षसियों के द्वारा आदर्श सेवक है, जिसने सुग्रीव के प्रेम के कारण एक यातना पाती हुई सीता इसे दिखाई दी। वहाँ एक पेड़ अत्यंत दुर्घट कार्य यशस्वी प्रकार से पूरा किया है
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