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________________ स्वधामन् प्राचीन चरित्रकोश स्वर्णा स्वधाम--उत्तम मन्वन्तर का एक देवगण । स्वरदिन--एक गंधर्व, जिसकी कन्या का नाम २. रैवत मन्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । सुत्वरा था। ३. रुद्रसावर्णि मन्वन्तर का एक अवतार, जो सत्यसह स्वरा--मद्रदेशीय राजकन्या ( पन, उ. १०५)। एवं सुनृता के पुत्रों में से एक था । २. उत्तानपाद एवं सूनृता की कन्याओं में से एक। स्वनद्रथ--एक राजा, जो मेधातिथि का आश्रय | स्वराज-कर्दम प्रजापति की एक कन्या, जो अथर्व दाता था (ऋ. ८.१.३२)। लुडविग के अनुसार यह आंगिरस की कन्या थी। इसके अयास्य, उतथ्य, उशिति, आसङ्ग का ही नामान्तर था (लुडविग,ऋग्वेद का अनुवाद- | गौतम एवं वामदेव नामक पाँच पुत्र थ (ब्रह्मांइ. ३.१. ३. १५९)। १०२)। स्वनय आवयव्य--सिंधु देश का एक राजा, जिसने स्वराष्ट्र--एक राजा, जिसकी पत्नी का नाम उत्पलाकक्षीवत् को उपहार प्रदान किया था (ऋ. १.१२६. वती, एवं पुत्र का नाम तामस मनु था (तामस ३. देखिये)। १)। बृहस्पति की कन्या रोमशा इसकी पत्नी थी। स्वरूप--वरुणलोक का एक असुर (म. स. ९.१४)। (ऋ. १.१२६.६-७; बृहदे. ३.१४५-१५५; सा.श्री. १६. | पाठभेद (भांडारकर सहिता)-सुरूप'। ११.५) । इसे 'स्वनय भाव्य' नामान्तर भी प्राप्त था। स्वरोचिष--एक राजा, जो कलि राजा का पात्र, एवं स्वभूमि--(सो. कुकुर.) एक राजा, जो विष्णु के | स्वरोचित दातिमत: स्वरोचिप ( द्युतिमत् ) मनु राजा का पुत्र था। इसकी माता अनुसार उग्रसेन राजा का पुत्र था। का नाम वरुथिनी था। . स्वमति--(स. दिष्ट.) दिष्टवंशीय प्रमति राजा का इसे समस्त प्राणियों की भाषाएँ जानने की विद्या, एवं नामान्तर (प्रमति ५. देखिये)। 'पद्मिनी विद्या' ज्ञात थी, जो इसे क्रमशः मंदारविद्याधर की. स्वमूर्धन--एक देव, जो भृगुऋषि का पुत्र था। कन्या विभावरी, एवं पार यक्ष की कन्या कलावती से प्राप्त स्वमृडीक--सत्य देवों में से एक । हुई थी (मार्क. ६१)। स्वयंप्रभा--एक अप्सरा, जो मेरुस पावणि की कन्या, ___पद्मिनी' विद्या के बल से इसने पूर्व दिशा में पूर्व मामा एवं हेमा नामक अप्सरा की सखी थी। इसे प्रभावती कामरूप में विजय, उत्तर दिशा में नंदवती नगर, एवं नामान्तर भी प्राप्त था। दक्षिण में ताल नगर 'नामक नगरों का निर्माण किया। . इसकी सखी हेमा ने अपने स्वर्गवास के समय,मय के एक बार एक हंसयुगल ने इसे कामासक्त कह कर इसकी द्वारा तैयार किया गया दैवी स्थान इसे प्रदान किया था। आलोचना की, जिस कारण विरक्त हो कर यह बन में चला उसी स्थान के कारण इसे अनेकानेक दैवी शक्तियाँ प्राप्त | गया (मार्क. ६३)। हुई थी। सीताशोध के लिए निकले हुए अंगदा दि वानरों __ परिवार-इसकी मनोरमा, विभावरी एवं कलावती को इसने ही समुद्र के तट पर पहुँचाया था। आगे चल | नामक तीन पत्नियाँ थी, जिससे इसे क्रमशः विजय, कर, राम के दर्शन से मुक्ति प्राप्त कर यह स्वर्गलोक चली मेरुमन्द, एवं प्रभाव नामक तीन पुत्र उत्पन्न हुए थे। गयी (वा. रा. कि. ५०-५२)। आगे चल कर एक वनदेवता से इसे स्वारोचिप अर्थात् स्वयंप्रभु--अट्ठाईस व्यासों में से एक । द्युतिमत् नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो आगे चल कर स्वयंभु ब्रह्मन--अहाईस व्यासों में से एक। चक्रवर्ती सम्राट् बन गया। स्वयंभू--एक आचार्य, जो श्राद्ध विधि का प्रथम स्वर्ग--धर्म एवं यामी का एक पुत्र, जिसके पुत्र का पुरस्कर्ता माना जाता है (म. अनु. १९१)। . . .) | नाम नंदिन था (भा. ६.६.६)। स्वयंभोज---(सो. कोष्टु.) एक यादव राजा, जो स्वर्जित् नानजित-एक राजा (श. बा. ८.१. भागवत के अनुसार शिनिराजा का पुत्र, एवं हृदिक राजा | ४.१०)। का पिता था (भा. ९.२४,४६)। विष्णु एवं वायु में इसे स्वर्णर-एक यज्ञकर्ता (ऋ. ८.३.१२, १२.२)। क्रमशः प्रतिक्षत्र एवं प्रतिक्षित राजा का पुत्र कहा गया है। स्वर्णरोमन--(सू. निमि.) विदेह देश का एक राजा, स्वरक्षस--अट्ठाईस व्यासों में से एक । जो महारोमन् जनक का पुत्र था। स्वरपुरंजय--एक राजा, जो वायु के अनुसार मथुरा स्वर्णा-एक अप्सरा, जो वृन्दा की माता थी ( पन. नगरी में राज्य करता था। | उ. ४)। १०९४
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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