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स्थाणु
प्राचीन चरित्रकोश
स्वधा
,
स्थाणु--ग्यारह रुद्रों में से एक । यह ब्रह्मा का पौत्र, २. एक राक्षस, जो यातुधान राक्षस का पुत्र, एवं 'स्थाणु' का पुत्र था (म. आ. ६०.३)। इसका | एवं निकुंभ राक्षस का पिता था (ब्रह्मांड. ३.७.९५)। प्रजापति से संवाद हुआ था (म. शां. २४९.१-१२)। स्फोटन-एक व्याकरणकार (अ. प्रा. १.१०३;
२. ब्रह्मा का एक मानसपुत्र, जो ग्यारह रुद्रों का पिता | २.३८)। माना जाता है (म. आ. ६०.३)।
"स्फोटायन--एक व्याकरणकार (पा. सू. ६.१. ३. इन्द्रसभा में उपस्थित एक ऋषि (म. स. ७.१५)। | १२३)। स्थान--सुख देवों में से एक।
स्मदिभ--इन्द्र का एक शत्र, जिसे उसने तुज्र के
साथ कुन्स के अधिकार में सौंपा था (ऋ. १०. स्थिरक गार्ग्य-एक आचार्य, जो वसिष्ठ चैकिता
| ४९.४ )। नेय नामक आचार्य का शिष्य, एवं मशक गार्ग्य नामक
स्मय-स्वारोचिष मन्वंतर का एक प्रजापति । आचार्य का गुरु था (वं. वा. २.)। .
२. धर्म एवं पुष्टि का एक पुत्र । स्थूण--विश्वामित्र का एक पुत्र ।
स्मर--मरीचि एवं ऊर्णा के पुत्रों में से एक । २. स्थूणाकर्ण नामक यक्ष का नामांतर ।
स्मरदूती--जालंधर दैत्य की वृंदा नामक पत्नी की स्थूणकर्ण-एक ऋषि, जो पांडवों के वनवासकाल में
एक सखी (पन. ३.९)। उनके साथ द्वैतवन में निवास करता था (म. स. २७.
स्मृत-स्वारोचिष मनु का एक पुत्र । २३)।
स्मृति--धर्म एवं मेधा के पुत्रों में से एक । स्थूणाकर्ण--एक यक्ष, जिसने शिखण्डिन् को
२. अंगिरस कुलोत्पन्न एक गोत्रकार । अपना पुरुषत्व प्रदान किया था (शिखण्डिन् देखिये)।
३. दक्ष की कन्या, जो अंगिरस् ऋषि की पत्नी थी। यह कुबेर का अनुचर था (म. उ. १९२.२०-२२)।
' स्यातपायन-जपातय नामक पराशरकुलोत्पन्न पाठभेद-' स्थूण'।
गोत्रकार का नामांतर। 'स्थूलकर्ण-एक यक्ष, जो मणिवर एवं देवजनी के
स्थावास्य- शिखण्डिन् नामक शिवावतार का एक पुत्रों में से.एक था।
शिष्य। - स्थूलकेश--एक ऋषि, जिसने जंगल में अनाथ पड़ी
स्यमरश्मि--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.७७-- हुई प्रमद्वारा को पालपोस कर बड़ा किया था। आगे
७८)। यह अश्विनों के कृपापात्र व्यक्तियों में से एक चल कर यही कन्या इसने कुरु ऋषि को विवाह में प्रदान |
था, एवं अपने बाणों से उन्होंने इसकी रक्षा की थी की था (म. आ. ८)।
(ऋ. १.११२.१६)। इसके घर में इंद्र सोमपान के . स्थूलशिरस्--एक ऋषि, जो 'अश्वशिरस्' ऋषि का
लिए उपस्थित हुआ था। पुत्र था। इसने विश्वावसु नामक गंधर्व को कबंध राक्षस
२. एक ऋषि, जो कपिल ऋष का शिष्य था । गोरूप बनने का शाप दिया था ( यवक्रीत देखिये)।
धारण करनेवाले कपिल ऋषि से इसका प्रवृत्ति एवं निवृत्ति स्थूलाक्ष--एक राक्षस, जो दूषण राक्षस का अमात्य
मार्ग के विषय में संवाद हुआ था (म. शां. २६०था (वा. रा. अर. २३-३०)।
२६२)। स्थैरकायन--मित्रवर्चस् नामक आचार्य का पैतृक
स्योद--भव्य देवों में से एक । नाम (वं. बा. १)। स्थौर-अग्नियूप (अग्निस्थ ) नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा
स्त्रवस्--स्वायंभुव मन्वन्तर के जित देवों में से एक।
स्वकेतु--निमिवंशीय सुकेतु राजा का नामान्तर । का पैतृक नाम (ऋ. १०.११६ )। स्थौलाष्टीवि--एक वैयाकरण (नि. १०.३.१)।
स्वधर्मन्--वैवस्वत मनुपुत्र धृष्ट के पुत्रों में से एक
(पद्म. स. ८)। स्नातप--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार।
स्वधा-दक्ष की एक कन्या, जो पितरों को हविर्भाग स्पर्श--तुषित देवों में से एक ।
पहुँचानेवाले अंगिरस् ऋषि की पत्नी थी। इसकी वयुना स्फूर्ज-एक राक्षस, जो पौष माह में भग नामक सूर्य एवं धारिणी नामक दो कन्याएँ; एवं पितर तथा अथर्व के साथ भ्रमण करता है (भा. १२.११.४२)। । आंगिरस नामक दो पुत्र थे (भा. ४.१.६३, ६.६.९)।
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