SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1114
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्कंद प्राचीन चरित्रकोश स्थविर ( वसु. १. देखिये)। महाभारत के अनुसार, एक बार स्तंबमित्र शाङ्ग--एक शार्गक पक्षी, जो मंदपाल इन्द्र के द्वारा इसके पीठ पर वज्र प्रहार करने से, उसी ऋषि एवं जरितृ शाम का पुत्र था। खांडववनदाह से इसे प्रहार से इसका विशाख नामक पुत्र, एवं कन्यापुत्र आदि | अग्नि ने मुक्त कराया (म. आ. २२३.१२)। पार्षद उत्पन्न हुए (म. व. २१७.१; २१९)। २. एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १०.१४२.७-८)। कई अभ्यासकों के अनुसार इसकी पत्नी देवसेना एक स्तंभ-स्वारोचिष मन्वंतर के सप्तर्गियों में से एक । स्त्री न हो कर, देवों के उस सेना का प्रतिरूप है, जिसका २. एक शाखाप्रवर्तक आचार्य (पाणिनि देखिये)। आधिपत्य इस पर सौंपा गया था। स्तुति--(स्वा. प्रिय.) प्रतिहतू राजा की पत्नी, स्कंद के पार्षद-इसके सैनापत्य के अभिषेक के | निम जिससे इसे अज, एवं समन् नामक पुत्र उत्पन्न हुए थे समय विभिन्न देवताओं के द्वारा इसे अनेकानेक | (भा. ५.१५.५)। पार्षद, एवं महापार्षद दिये गये, जिनकी नामावलि - स्तुत्यवत--(स्वा. प्रिय) एक राजा, जो कुशद्वीप महाभारत में दी गयी है (म. व. २१३-२२१; श. के हिरण्यरेतम् राजा का पुत्र था। इसके राज्य का नाम ४४-४५)। इसीके ही कारण 'स्तुत्यव्रत' नाम से प्रसिद्ध हुआ (भा. __मातृका--स्कंद के सप्तमाताओं को मातृका कहा ५.२०.१४)। जाता है, जिनकी नामावलि निम्नप्रकार प्राप्त है:-१. स्तुभ--भानु नामक अग्नि के छः पुत्रों में से एक । काकी; २; हलिमा; ३. माता; ४. हली; ५. आर्या; ६. बाला; ७. धात्री । इन सप्तमाताओं के ब्राह्मी, स्तोक-एक गोप, जो कृष्ण का मित्र था (भा. १०. माहेश्वरी आदि विभिन्नगण भी प्राप्त हैं। इन मातृकाओं १५.२०)। स्थंडिलेयु--(सो. पूरु.) एक राजा, जो रौद्राश्व राजा । की, एवं इसकी, शिशुओं के आरोग्यप्राप्ति के लिए पूजा की जाती है। के दस पुत्रों में से एक था। इसकी माता का नाम 'घृताची' स्कंद की अनुचरी मातृकाओं की नामावलि भी महा था (भा. १०.२०.४)। भारत में सविस्तृत रूप में प्राप्त है (म. व. २१३-२२१)। स्थपति--जनमेजय राजा का एक सूत, जिसका मूल इन मातृका, एवं उनके साथ उपस्थित पुरुषग्रह ' स्कंद के नाम लौहिताक्ष था। इसे स्थलमापनादि अनेक शास्त्र, ग्रह माने जाते हैं (म. व. २१९)। कई अभ्यासकों के अवगत थे (म. आ. ४७.१४, ५३.१२ )। अनुसार, 'स्कंदापस्मार ' आदि 'स्कंदग्रह ' अपस्मार स्थल--(सू. इ.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार आदि व्याधियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बल राजा का पुत्र था। २. एक शाखाप्रवर्तक आचार्य ( पाणिनि देखिये)। स्थलपिंड--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । ३. धर्मपुत्र आयु नामक वसु का एक पुत्र (आयु स्थलेय--एक राजा, जो रौद्राश्व राजा के दस पुत्रों में ८. देखिये)। एक था। स्कंदस--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। स्थविर कौडिन्य--एक वैयाकरण, जिसके द्वारा स्कंदस्वाती--(आंध्र. भविष्य.) एक आंध्रवंशीय | नकार ' का उच्चार सानुनासिक एवं तीव्रतर बताया राजा, जो स्वाती राजा का पुत्र था ( मत्स्य. २७३.६)। | गया है (ते. प्रा. १७.४ )। स्कंध--एक शाखाप्रवर्तक आचार्य (पाणिनि देखिये)। स्थविर जातुकर्ण्य--जातुकर्ण्य नामक आचार्य की २. धृतराष्ट्रकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के एक उपाधि, जिसका शब्दशः अर्थ श्रेष्ठ' होता है (को. सर्पसत्र में दग्ध हुआ था। ब्रा. ६५.१)। स्कंभ-एक शाखाप्रवर्तक आचार्य (पाणिनि देखिये)। स्थविर शाकल्य--एक उच्चारशास्त्रज्ञ आचार्य स्तनयित्न-धर्मपुत्र विद्योत के पुत्रों का सामूहिक | (ऋ. प्रा. १८५)। शतपथ ब्राह्मण में एक तत्त्वज्ञ नाम (भा. ६.६.५)। आचार्य के नाते इसका निर्देश प्राप्त है, जहाँ मानवीय स्तनित--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। प्राण में चक्षु, कर्ण आदि पंच इंद्रियाँ सूक्ष्मरूप से विद्यस्तंब-शाभपराशरकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । मान होने के इसके मत का निर्देश प्राप्त है (ऐ. आ.३. २. स्वारोचिष मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक । | २.१.६; सां. आ. ७.१६)। पाठभेद-'स्थवीर'। १०९२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy