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________________ स्वर्भानवी प्राचीन चरित्रकोश - स्वायंभुव स्वर्भानवी--आयु राजा की पत्नी, जिसके पुत्र का ___ स्वस्स्यात्रेय--एक ऋषिसमुदाय, जिसका निर्देश नाम नहुष था (म. आ. ७०.२३)। | ऋग्वेद में वैदिक सूक्तद्रष्टा के नाते प्राप्त है (ऋ. ५.५०- स्वर्भानु-एक असुर, जिसके द्वारा सूर्य को ग्रस्त | ५१)। महाभारत में इन्हें अत्रिकुलोत्पन्न ऋषि कहा गया है करने का निर्देश ऋग्वेद में अनेक बार प्राप्त है (ऋ. ५. (म.आ. ८.२०)। हरिवंश में इनकी संख्या दस बतायी २०.५-९)। पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट राहु ग्रह गयी है (ह. वं. १.३१.१७, प्रभाकर एवं अत्रि देखिये)। संभवतः यही हैं ( राहु देखिये)। स्वस्थली--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। ___ इसने सूर्य को अंधःकार से आवृत किया, एवं सारी स्वह्न-स्वारोचिष मन्वन्तर के देवगणों में से एक । सृष्टि हीनदीन बन गयी । आगे चल कर देवताओं ने साम २. (स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार का पठन कर इस ग्रहण को दूर किया (पं. बा. ४.५.२; | यक्ष एवं दक्षिणा का पुत्र था (भा. ४.१.७)। ६.१३)। यह ग्रहण अत्रि के द्वारा (पं. ब्रा. ६.६.८); | स्वागज--शक्तिपुत्र पराशर ऋषि का नामान्तर। सोम एवं रुद्र के द्वारा (श. ब्रा. ५.३.२.२) दूर होने का स्वागत-(सू. निमि.) एक राजा, जो वायु के निर्देश भी प्राप्त है। अनुसार शकुनि राजा का पुत्र था । . देवताओं के द्वारा ग्रहण नष्ट करने पर, उस विनष्ट | — स्वाति--सोम की सत्ताईस स्त्रियों में से एक। अंधःकार से अनेक वर्ण के मेंढक उत्पन्न हुए, जिनके वर्ण. २.(आंध्र, भविष्य.) एक आंध्रवंशीय राजा जो क्रमशः काले, लाल, एवं सफेद थे। इन सारे मढकों को | मेघस्वाति राजा का पुत्र था। आदित्य को दे कर देवताओं ने विभिन्न ओषधियों का स्वातिवर्ण-(आंध्र. भविष्य.) एक राजा, जो मत्स्य निर्माण किया (तै. सं. २.१.२२; सां. बा. २४.३)। के अनुसार कुन्तलस्वाति राजा का पुत्र था। पौराणिक साहित्य में इस साहित्य में इसे कश्यप स्वायंभुव मनु--एक सुविख्यात राजा, जो स्वायंभुव एवं दनु का पुत्र कहा गया है (भा. ६.६.३; म. आ. नामक पहले मन्वन्तर का अधिपति मनु माना जाता है। ५९.२४; विष्णु. १.२१.५)। इसकी कन्या का नाम प्रभा 'मनुस्मृति' नामक सुविख्यात धर्मशास्त्रविषयक ग्रंथ का (सुप्रभा) था (विष्णु. १.२१.५), जिसका विवाह नमुचि कर्ता यही माना जाता है (मनु स्वायंभुव देखिये)। (मा. ६.६.३२), अथवा नहुष से हुआ था (ब्रह्मांड. राज्यविस्तार--भागवत में नवखण्डात्मक पृथ्वी का ३.६.२३-२५)। वर्णन प्राप्त है, जिनमें से भरतखंड नामक नौवाँ खण्ड २. एक सँहि केय असुर, जो जो विप्रचित्ति एवं सिंहिका आधुनिक भारतवर्ष माना जाता है। इस खण्ड में से के पुत्रों में से एक था। ब्रह्मावर्त नामक प्रदेश में स्थित बहिष्मती नगरी का स्वर्गीथे--(स्वा. उत्तान.) वत्सर राजा की पत्नी, | सर्वाधिक प्राचीन राजा स्वायंभुव मनु माना जाता है। ' जो पुष्णार्ण आदि पाँच पुत्रों की माता थी (भा. ४.१३. - पृथ्वी का सम्राट्र--भागवत में स्वायंभुव मनु को समस्त १२)। पृथ्वी का सम्राट् कहा गया है (भा. ३.२१.२५, २२. स्वश्न-एक असुर, जो इंद्र का शत्रु था। इंद्र ने | २९)। उस समय सारी पृथ्वी समतल एवं अखण्ड थी, इसका वध किया (ऋ. २.१४.५)। वह आज की तरह समुद्रों में विभाजित न थी। स्वश्रव--अंगिराकुलोत्पन्न एक मंत्रकार । परिवार-इसकी पत्नी का नाम शतरूपा (बार्हिष्मती) स्वश्व--एक राजा, जिसके पुत्र के रूप में स्वयं सूर्य | था, जिससे इसे प्रियव्रत एवं उत्तानपाद नामक दो पुत्र जन्म लिया था। एक बार इसका एव एतश राजा का | उत्पन्न हुए । इनमें से अपने ज्येष्ठ पुत्र प्रियव्रत को युद्ध चालु था, उस समय इंद्र ने एतश के पक्ष को सहायता स्वायंभुव ने अपना पृथ्वी का सारा राज्य प्रदान किया। की। इस कारण यह एवं इसका पुत्र पराजित हुए (ऋ. प्रियव्रत के राज्यकाल में पृथ्वी में स्थित समुद्रों का ४.१७.१४)। विस्तार हुआ, एवं सारी पृथ्वी सात द्वीप एवं सात समुद्रों स्वसृप-कौशिक ऋषि के पुत्रों में से एक ( पितृवर्तिन में विभाजित हुई । प्रियव्रत के कुल दस पुत्र थे, जिनमें देखिये)। से तीन बाल्यकाल से ही वन में चले गये। इसी कारण । स्वस्तिकर-वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। अपना सात द्वीपों का पृथ्वीव्याप्त राज्य प्रियव्रत ने अपने स्वस्तितर--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । | उर्वरित सात पुत्रों में बाँट दिये। १०९५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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