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सृगाल
प्राचीन चरित्रकोश
संजय
सृगाल--एक राजा, जो स्त्रीराज्य का अधिपति | निवासस्थान-हिलेबांट के अनुसार सृजय लोग था । कलिंगराज चित्रांगद की कन्या के स्वयंवर में यह | दिवोदास के साथ सिधु नदी के पश्चिम में कहीं निवास उपस्थित था (म. शां. ४.७) । पाठभेद-'शुगाल'|| करते थे। कई अभ्यासक इन्हें युनानी 'सेरांगै' लोगों के
संजय-उत्तम मनु के पुत्रों में से एक। साथ समीकृत करते है, एवं इनका आद्य निवासस्थान
२. (सु. नाभाग.) एक राजा, जो विष्णु के अनुसार ड्रेन्जिनाना में बताते है। त्सीमर के अनुसार ये लोग नाभाग राजा का पुत्र था।
सिंधुघाटी के उपरि भाग में बसे हुए थे। इनके मित्र तृत्सु३. ( सो. अनु.) एक राजा, जो भागवत के अनुसार | गण मध्य देश में स्थित थे, इस कारण इनके सिंधु नदी कालनर राजा का पुत्र, एवं जनमेजय राजा का पिता था।
के पूर्व भाग में निवास करने की संभावना प्रतीत होती है। बायु एवं मत्स्य में इसे क्रमशः 'कालनल' एवं 'कोलाहल'| ऐतिहसिक निर्देश-इन लोगों के द्वारा दृष्टरितु पौसायन राजा का पुत्र कहा गहा है। मत्स्य में इसका संजय नामक राजा को, एवं रेवोत्तरस् पाटव चाक्रस्थपति नामक नामान्तर प्राप्त है। यह प्रारंभ से ही कृष्ण का विरोधक
अमात्य को अधिकारभ्रष्ट करने का निर्देश शतपथ ब्राह्मण था, जिसने इसको परास्त किया था।
में प्राप्त है (श. ब्रा. १२.९.३.१)। आगे चल कर ४. ( सो. नील ) एक राजा, जो पंचजन नामक राजा | रेवोत्तरस् पाटव ने कुरु राजा बाह्निक प्रातीप्य के विरोध के का पिता था (ह. वं. १.३२ )। संभवतः संजय पांचाल | विपरित भी अपने राजा को पुनः एक बार राजगद्दी पर एवं यह दोनों एक ही होंगे (संजय पांचाल देखिये)। प्रतिष्ठापित किया।
५. (सो. क्रोष्टु.) एक राजा, जो भागवत, मत्स्य एवं इन लोगों के राजाओं में, संजय दैववात, प्रस्तोक संजय वायु के अनुसार शूर राजा का पुत्र, एवं धनु एवं वज्र (ऋ. ६.४७.२२); वीतहव्य संजय; साह देव्य सोमक नामक राजाओं का पिता था (मत्स्य. ४६.३)। इसकी। (ऋ.४.१५.७; ऐ. ब्रा. ७.३४.९); एवं साहदेव्य सोमक पत्नी का नाम राष्ट्रपाली था, जो कंस राजा की भगिनी
के पिता सहदेव (सुप्लन् ) सार्जय (ऐ.ब्रा. ७.३४.९) थी। कई पुराणों में इसके पुत्रों के नाम कृश एवं दुर्मर्षण का निर्देश विशेष प्रमुखता से पाया जाता है। इनमें से दिये गये हैं।
अंतिम दो राजाओं को पर्वत एवं नारद ने राज्याभिषेक
किया था। ६. क्षत्रवंशीय संजय राजा का नामांतर (संजय २. देखिये )।
| संजय दैववात-संजय लोगों का एक राजा, जिसने ७. एक लोकसमूह, जो भारतीय युद्ध में पाण्डव पक्ष
तुर्वश एवं वृचीवन्त जाति के अपने शत्रओं पर विजय में शामिल था (म. द्रो. ३४.५, ३९.१७)।
किया था (ऋ. ६.२७.७)। स्वयं इंद्र ने इसकी मदद कर
तुर्वशों को इसके हाथ सौंपा दिया । देवत् का वंशज होने वैदिक साहित्य में इस साहित्य में इन लोगों का उल्लेख
के कारण इसे 'दैववात' पैतृक नाम प्राप्त हुआ था (ऋ तृत्सु लोगों के साथ प्राप्त है, जहाँ तृत्सु राजा दिवोदास
४.१५.१)। इसके यज्ञाग्नि का निर्देश भी ऋग्वेद में एवं संजय राजा की एकसाथ ही प्रशस्ति की गयी है, एवं
| प्राप्त है। उन दोनों को तुर्वशों के शत्रु बताये गये हैं (ऋ. ६.२७.
आप बााण में भी देवभाग श्रौतर्षिको क संजय पांचाल-(सो. नील.) पांचाल देश का संजय लोगों का पुरोहित बताया गया है (श. ब्रा. एक राजा, जो विष्णु के अनुसार हर्यश्व राजा का, एवं २.४-५)।
वायु के अनुसार रिक्ष राजा का पुत्र था। भागवत अथर्ववेद के अनुसार ये लोग कोई नैसर्गिक आपत्ति
| एवं मत्स्य में इसे क्रमशः 'संजय 'एवं 'जय' कहा की शिकार बने थे.एवं इसी आपत्ति में इनके विनष्ट होने गया है, एवं इसके पिता का नाम क्रमशः भाश्व एवं का अस्पष्ट निर्देश वहाँ प्राप्त है (अ. वे. ५.१९.१)। काठक भद्राश्व दिया गया है। संहिता एवं तैत्तिरिय संहिता में भी इसी तर्क की पुष्टि संजय वैतहव्य--एक लोकसमूह, जो संभवतः मिलती है, जहाँ किसी सांस्कारिक त्रुटि के कारण इनके | सृजय लोगों का ही नामान्तर था। भृगु ऋषि की हत्या विनष्ट होने का निर्देश प्राप्त है (का. सं. १२.३; तै. सं. करने के कारण, इन लोगों का नाश हुआ (अ. वे... ६.६.२.२)।
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