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सूर्य
प्राचीन चरित्रकोश
सूर्याक्ष
१०. आशावह, ११. रवि १२. विवस्वत (म. आ. इसने आहत किया था (ऋ. १.११.१५४११४०
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एतश देखिये) ।
सूर्यक - ( प्रद्योत . भविष्य . ) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार विद्यासप राजा का पुत्र था।
सूर्यतेजस एक यक्ष मो मणिन्द्र एवं पुण्यव के पुत्रों में से एक था।
सूर्यदत्त--विराट का एक भाई, जो भारतीय युद्ध मं द्रोण के द्वारा मारा गया ( म. उ. १६८.१४९ वि. ३०. १२ १२३.१९.५.८३) पानेव (भांडारकर
१.४० ) ।
सूर्यदेवता के कल्पना का उद्गम-- आधुनिक भौतिक शास्त्र के अनुसार पृथ्वी की उत्पत्ति सूर्य से होने की कपना स्वीकृत की गयी है। वैदिक साहित्य में इसी कल्पना को स्वीकार किया गया है, जहाँ सूर्य को इस विश्व का आत्मा एवं पिता माना गया है:
आग्रा चावापृथिवी अन्तरिक्षे सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुप
ऋ. १.११५१) ।
(इस विश्व के चर एवं अचर वस्तुओं की आत्मा सूर्य ही है)।
इसी कलना के अनुसार सूर्यपत्नी अदिति अथवा दिति को विश्व की माता कहा गया है, एवं दितिपुत्र दैत्य को एवं अदितिपुत्रों को 'आदित्य' कहा गया है। पौराणिक साहित्य में कश्यप ऋषिको सूर्य का ही प्रति रूप माना गया है,एवं उसकी अदिति एवं दिति नामक दो पलियाँ दी गयी है, जो क्रमशः दिन एवं रात का प्रतिनिधित्व करती है। इन दोनों का पुत्र अग्नि है, जो पृथ्वी
सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार सूर्य एवं उससे संबंधित देवतापरिवार का संबंध सृष्टिउत्पत्ति एवं सृष्टि संचालन कार्य से स्पष्ट रूप से होता है।
सूर्य उपासना -- सूर्य की गति, उपासना एवं इसके एकसौ आठ नामों का जाप प्राचीन काल से भारतवर्ष में प्रचलित है। इसी उपासना का उपदेश धौम्य ऋषि ने युधिष्ठिर को किया था ( म. व. ३.१६-३३; १६०. २४-३७ ) ।
सूर्य उपासना के ग्रंथ - विश्वामित्र ऋषि के द्वारा विरचित 'गायत्रीमंत्र' एवं विभिन्न 'सौर सूक्त' ऋग्वेद में प्राप्त है, जो सूर्य देवताविषयक सर्वाधिक प्राचीन साहित्य कहा जा सकता है । उपनिषद ग्रंथों में से 'सूर्योपनिषद, सूर्योपासना से ही संबंधित है । 'सूर्य गीता' नामक एक ग्रंथ भी उपलब्ध है, जो 'गुरुशानवासि तत्सारायण ' नामक ग्रंथ में अंत है (कर्मकाण्ड २.१५) । पौराणिक साहित्य में से 'भविष्य' एवं 'ब्रह्मवैवर्त ' 'पुराण 'सौर' पुराण माने जाते हैं।
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संहिता ) - 'सुदर्शन' |
सूर्यध्वज-एक राजा, उत था (म. आ. १७७.१०) ।
सूर्यनेत्र -- गरुड़ का एक पुत्र ।
सूर्यभास -- कौरवपक्ष का एक राजा, जो भारतीय युद्ध में अभिमन्यु के द्वारा मारा गया (मं.. द्रो. ४७.१५) ।
सूर्यवर्चस - एक देवगंधर्व, जो कश्यप एवं मुनि के पुत्रों में से एक था। यह कार्तिक माह के विष्णु नामक आदित्य के साथ भ्रमण करता है । अपने अगले जन्म में यह घटोत्कच पुत्र बर्बरिक बन गया ।
सूर्यवर्मन त्रिगर्त देश का एक राजा, जो ि के अश्वमेधीय अश्व की रक्षा करनेवाले अर्जुन से परास्त हुआ था (म. आच ७२.११) । इसी युद्ध में इसका केतुवर्मन् नामक भाई मारा गया।
सूर्यशत्रु का एक राक्षस (बारा. ९)। सूर्यश्री एवं सूर्य सवित्री - एक सनातन विश्वेदेव ( म. अनु. ९१.३३-३४) । सूर्यासावित्री एक
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८५) । इसके द्वारा रचित सूक्त में इसके विवाह का वर्णन प्राप्त है। ऋग्वेद में अन्यत्र इसे सवितृकन्या कहा गया है, एवं अश्विनी के विवाहस्थ में इसके आद होने का निर्देश प्राप्त है (. १.११६.१७१२९.५)। ऐतरेय ब्राह्मण में, अश्विनों के द्वारा होड़ में विजय प्राप्त करने पर उनका विवाह इसके साथ संपन्न होने का निर्देश स्पष्ट रूप से प्राप्त है ( . ४७ पति देखिये ।
अश्विनों के साथ इसका विवाह होने का उपर्युक्त वर्णन वस्तुस्थिति निदर्शक है, या रूपकात्मक है यह कहना मुश्किल है ।
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शाकद्वीप से सूर्यप्रतिमा तथा सूर्योपासना भारत में सर्वप्रथम आयी, जिसका का स्वरूप वैदिक सूर्य उपासना से कई अंश में मित्र था (सांध देखिये) ।
सूर्याक्ष-- रामसेना का वानर ।
२. एक राजा, भारतीय युद्ध में कौरवपक्ष में शामिल सूर्य सौवश्व -- एतश नामक ऋषि का शत्रु,, जिसे ! था। यह क्रथ नामक असुर के अंश से उत्पन्न हुआ था।
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