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सुदास
प्राचीन चरित्रकोश
सुदास
३. एक यवन राजा (मनु. ७)।
ऋषि इसके शत्रपक्ष में शामिल हुआ, एवं उसने इसके ४. एक शूद्र, जो अपने अगले जन्म में कृतन नामक विरुद्ध दाशराज्ञ युद्ध में भाग लिया ( वसिष्ठ मैत्रावरुणि एवं पिशाच बन गया । वैशाख व्रत का माहात्म्य बताने के विश्वामित्र देखिये)। उत्तरकालीन वैदिक साहित्य में भी लिए इसकी कथा पद्म में दी गयी है ( पद्म. पा.९८)। सुदास एवं विश्वामित्र ऋषि के घनिष्ठ संबंधों के निर्देश पुनः
दास पैजवन--उत्तर पांचाल देश का एक पुनः प्राप्त है। सुविख्यात राजा, जिसने ' दाशराज्ञ युद्ध' नामक मुवि- दाशराज्ञ युद्ध-ऋग्वेद के सभी मंडलों में दाशराज्ञ ख्यात युद्ध में दस सामर्थ्यशाली राजाओं पर विजय युद्ध का निर्देश पुनः पुनः आता है, जिससे प्रतीत होता प्राप्त किया था (३. ७.१८) । दाशराज्ञ में इसके द्वारा है कि उक्त ग्रंथरचना काल में, यह युद्ध काफ़ी महत्त्वपूर्ण प्राप्त किये गये विजय का निर्देश ऋग्वेद में अन्यत्र भी माना जाता था। ऋग्वेद के सातवें मण्डल में इस युद्ध का प्राप्त है (ऋ ७.२०.२, २५.३; ३२.१०)। ' दाशराज्ञ सविस्तृत वर्णन करनेवाले अनेक सूक्त प्राप्त हैं (ऋ. ७, युद्ध' से संबंधित निर्देशों में, इसे सर्वत्र 'तृत्सभरतों' का १८)। राजा कहा गया है।
इस युद्ध में इसने तुवंश, द्रा आदि दस राजाओं से नाम-ऋग्वेद में सर्वत्र सुदास राजा को 'पैजवन' युद्ध किया, एवं इन सारे राजाओं को परास्त कर वह उपाधि दी गयी है (ऋ. ७.१८.२३)।सुदास 'पैजवन' विजयी साबित हुआ। दाशराज्ञ युद्ध में इसके विपक्ष में का एक सूक्त भी प्राप्त है (ऋ. १०.१३३)। किन्तु भाग लेनेवाले राजाओं के नाम वैदिक साहित्य में विभिन्न 'पैजवन' इसका पैतृक नाम है, या कुल नाम है यह प्रकार से पाये जाते हैं, जिनकी संख्या १० से कतिपय कहना कठिन है। निरुक्त में इसे 'पिजवन' राजा का पुत्र अधिक प्राप्त होती है। इससे प्रतीत होता है कि इस . कहा गया है, एवं इस प्रकार 'पैजवन' इसका पैतृक नाम युद्ध में 'दाशराज्ञ' (दस राजा) शब्द का प्रयोग 'अनेक बताया गया है (नि. २.२४)। किन्तु प्रत्यक्ष ऋग्वेद में अर्थ से किया गया होगा। एक स्थान पर इसे दिवोदास राजा का पुत्र (ऋ. ७.२८. विपक्षीय राजा-दाशराज युद्ध में सुदास के विपक्ष में २५), एवं देववत् राजा का पौत्र (ऋ. ७.१८.२२) भाग लेनेवाले राजाओं की नामावलि निम्म प्रकार पायी कहा गया है।
जाती है:-१. शिम्यु; २. तुवंश; २. द्रा; ४. कवध; ऐतरेय ब्राह्मण में, दिवोदास को वयश्व राजा का ५. पुरु (पूरु.); ६. अनु; ७. भेद ८. शंबर; ९. वैकर्ण; पुत्र कहा गया है। संभवतः 'देववत्' वयश्व राजा १० दूसरा वैकर्ण; ११. यदु, १२. मत्स्य, १३. पक्थ; की ही एक उपाधि होगी, अथवा वह वयश्व का १४. भलानस् ; १५. अलिन् ; १६. विषाणिन : १७. अज; मातामह होगा (ऐ. बा. ८.२१)। आधुनिक अभ्यासक १८. शिव; १९. शिग्र; २०. यक्षः २१. युध्यामधि; इसे 'पिजवन' का पुत्र, एवं दिवोदास का पौत्र मानते २२. याद; २३. देवक मान्यमानः २४. चायमान कपिः है। इसके नाम का 'सुदास् ' पाट भी ऋग्वेद में कई | २५. सुतक; २६. उचथ; २७. अतः २८. वृद्ध; २९. स्थानों पर प्राप्त है।
मन्यु. ३०. पृथु. पुरोहित-वसिष्ठ ऋषि के द्वारा इसके राज्याभिषेक उपर्युक्त राजाओं की नामावलि के संबंध में ऋग्वेद किये जाने का निर्देश ऐतरेय ब्राहाण में प्राप्त है (ऐ. ब्रा के भाष्यकारों में भी एकवाक्यता नहीं है। उक्त ८.२१)। किन्तु ऋग्वेद में एक स्थान पर विश्वामित्र को इसका नामावलि में से १३ से १६ तक के नाम, राजाओं के न पुरोहित कहा गया है, एवं विषाश (बियास ) एवं शुतुद्री हो कर पुरोहितों के थे, ऐसा सायणाचार्य का कहना है। (सतलज) नदियों पर इस के विजयी अभियानों के साथ | १७ से २९ तक के राजाओं की ऐतिहासिकता उसके उपस्थित होने का, एवं इसके द्वारा एक अश्वमेध | विवाद्य है। यज्ञ कराने का निर्देश वहाँ प्राप्त है (ऋ. ३.५३.९-११)। | अन्य पराक्रम-ऋग्वेद के एक सूक्त में त्रसदस्यु राजा
इन सारे निर्देशों से प्रतीत होता है किः,सर्वप्रथम इसका | के साथ इसके द्वारा युद्ध करने का निर्देश प्राप्त है पुरोहित विश्वामित्र था (ऋ. ३.३३.५३)। किंतु उसके इस (ऋ. ७.१९.३)। ऋग्वेद में अन्यत्र त्रसदत्यु राजा के पद से भ्रष्ट होने के पश्चात् , वसिष्ठ ऋषि भरत राजवंश का पिता पुरुकुत्स राजा के द्वारा यह पराजित होने का निर्देश एवं सुदास राजा का पुरोहित बन गया। तदुपरांत विश्वामित्र प्राप्त है (ऋ. १.६३.७ )।
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