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सुदक्षिण
प्राचीन चरित्रकोश
___ सुदर्शन
निमग्न हुए कृष्ण को वह जलानेवाली ही थी कि, कृष्ण ओधवती नामक कन्या से इसका विवाह हुआ था (भा. ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ कर उस अग्नि को लौटा। ९.२.१८)। दिया। पश्चात् उस अग्नि ने वाराणसी की ओर पुनः एक गृहस्थाश्रमधर्मीतर्गत अतिथिसत्कार आदि का आचबार मुड़ कर, इसे एवं इसके ऋत्विजों को जला कर भस्म
रण करने के कारण, प्रत्यक्ष मृत्यु पर विजय प्राप्त कर दिया (भा. १०.६६.२७-४२)।
कर यह ब्रह्मलोक में प्रविष्ट हुआ था। इसकी पत्नी सदाक्षिण क्षेमि---एक आचार्य, जिसे तिरस्कृत मान ओघवती भी तपस्विनी थी. जिसने अपने तपोबल से
| अपना आधा शरीर एक नदी में रूपांतरित किया था। इसके स्थान पर, शुक्र एवं गोश्रु जाबालि नामक आचार्या अपने बचे हुए आधे शरीर से वह अपने पति के की उस यज्ञ में नियुक्ति की गयी थी (जै. उ. ब्रा. ३.६.
साथ स्वर्लोक गयी (म. अनु. ३. ८४)। ३; ७.१.३-६)।
७. एक राजा, जो गांधार देश के नाम जित् राजा के सुदक्षिणा--अंशुमत् राजा के पुत्र दिलीप (प्रथम)
लाप (प्रथम) द्वारा बंदी बनाया गया था । कृष्ण ने नम जित् के पुत्रों राजा की पत्नी।
का वध कर, इसे बंधमुक्त किया, (म. उ. ४७.६९)। सुदत्ता-श्रीकृष्ण की एक पत्नी। द्वारका में स्थित
८. एक नरेश, जो भारतीय युद्ध में पांडव पक्ष में इसके प्रासाद का नाम 'केतुमत् ' था (म. स. परि. १.
शामील था। इस युद्ध में अश्वत्थामन के द्वारा यह २१.१२६४)।
मारा गया (म. द्रो. १७.६३)। सुदती-एक अप्सरा, जो कश्यप एवं मुनि की कन्या थी (ब्रह्मांड. ३.७.८)।
९. (सू . इ.) एक राजा, जो मनुवंशीय दीर्घबाहु
राजा का पुत्र था। काशिराज की कन्या इसकी पत्नी थी, सुदत्त पाराशर्य-एक आचार्य, जो जनश्रुत वारक्य नामक आचार्य का शिष्य, एवं आषाढ उत्तर नामक आचार्य
एवं वसिष्ठ ऋषि इनके पुरोहित थे। संपूर्ण पृथ्वी जीतं
कर, यह चक्रवर्ती सम्राट् बन गया था। का गुरु था ( जै. उ. ब्रा. ३.४१; ४.१७)।
सुदमोदम-दम नामक अंगिराकुलोत्पन्न गोत्रकार ___एक बार महाकाली देवी ने इसे सपने में आकर दृष्टांत का नामांतर।
दिया कि, पृथ्वी में जल्द ही जलप्रलय होनेवाला है।' सुदरिद्र--कांपिल्य नगरी का एक ब्राह्मण, जिसके
पश्चात् महालक्ष्मी के आदेशानुसार, यह अपनी पत्नी वेदविद्या निपुण पुत्रों के नाम धृतिमत् , तत्त्वदर्शिन ,
एवं पुरोहित वसिष्ठ के साथ हिमालय पर्वत के गुफा में जा विद्याचंड, एवं सत्यदर्शिन् थे ( पितृवर्तिन देखिये)।
छिपा । तदुपरांत उत्तर दिशा का हिम समुद्र, पश्चिम दिशा
का रत्नाकर, एवं दक्षिण दिशा का वाडव समुद्र, इन तीनों खुदर्शन--एक विद्याधर, जो आंगिरस ऋषि के शाप | के कारण सर्प बन गया था। आगे चल कर, इसने
में स्थित समस्त देश जलप्लावन से विनष्ट हुए। कृष्ण पिता नंद को निगल लिया, जिस कारण कृष्ण ने
आगे चल कर दस सालों के बाद, पृथ्वी का जलप्रलय इसका वध कर, इसे मुक्ति प्रदान की (भा. १०.३४. समाप्त हा कर सारा पृथ्वा पुनः एक बार आबाद हो गयी।
इस पर वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन यह अयोध्या लौट १-१८)। २. चंपक नगरी के हंसध्वज राजा का एक पुत्र।
आया, एवं पुनः एक बार राज्य करने लगा (भवि. प्रति. ३. (सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से एक। भीमसेन ने इसका वध किया (म. द्रो. १०२.९९; श. कालिका पुराण के अनुसार, जलप्लावन के पश्चात् २६.४८)।
हिमालय पर्वत का ही एक अरण्य तोड़ कर, इसने वहाँ ४. कौरवपक्ष का एक राजा, जो सात्यकि के द्वारा | खांडवी नामक नगरी की स्थापना की थी। कालोपरांत मारा गया (म. द्रो. ९४.१४)।
भैरववंश में उत्पन्न विजय नामक राजा ने इसका वध कर, ५. एक ऋषि, जो शरशय्या पर पड़े हुए भीष्म से | इसका राज्य जीत लिया (कालि. ९२)। मिलने उपस्थित हुआ था (भा. १.९.७)।
१०. (सू . इ.) एक राजा, जो ध्रुवसंधि राजा का पुत्र, ६. अग्निदेव का एक पुत्र, जो इक्ष्वाकुवंशीय दुर्योधन एवं कुरुवंशीय अभिवर्ण राजा का पिता था (भा. ९.१२. की कन्या सुदर्शना का पुत्र था। ओघवत् राजा के | ५)। इसकी माता का नाम मनोरमा था। देवी उपासना
१०५४
| १.१)।