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सुतंभर
प्राचीन चरित्रकोश
सुदक्षिण
है (ऋ. ५.१३.६ )। ऋग्वेद में अन्यत्र यही नाम एक | सुत्वन् कैरिशिय भार्गायण-एक राजा, जिसे विशेषण के रूप में प्रयुक्त किया गया है (ऋ. ५.४४.१३)। | मैत्रेय कोषारव नामक आचार्य ने 'ब्राह्मण परिमर'
सुतरा-श्वफरक राजा की कन्याओं में से एक। नामक अभिचार विद्या सिखायी थी। इस विद्या के कारण
सुतसोम--(सो. कुरु.) एक राजकुमार, जो भीमसेन | अपने पाँच शत्रु राजाओं का वध कर, यह महान् राजा एवं द्रोपदी का पुत्र था। इसकी उत्पत्ति विश्वेदेवों के अंश | बन गया (ऐ. बा. ८.२८.१८ )। से हुई थी। भारतीय युद्ध में इसका निम्नलिखित योद्धाओं| सुदक्षिण-पांडवपक्ष का एक राजा, जिसे द्रोणाचार्य के साथ युद्ध हुआ था:--१. विकर्ण (म. भी. ४३. | वध कर रथ से नीचे गिरा दिया था (म. द्रो. २०.४४)। ५५); २. दुर्मुख (म. भी. ७५,३६-३७); ३. विविंशति । २. कामरूप देश का एक शिवभक्त राजा, जिसका (म. द्रो. २४.२४); ४. अश्वत्थामन् (म. क. ३९.१५ - | रक्षण करने के लिए भीमाशंकर ने भीमासुर का वध किया १६) । अन्त में अश्वत्थामन् के द्वारा किये हुए रात्रिसंहार | था (शिव. शत. ४२.१९)। के समय इसका वध हुआ (म. सौ. ८.५२)। | सुदक्षिण कांबोज---एक राजा, जो कांबोज (काबुल)
सुतहोत्र--(सो. क्षत्र.) क्षत्रवंशीय महोत्र राजा का | देश का अधिपति था। महाभारत में इसका निर्देश नामान्तर (सुहोत्र २. देखिये )। इसके पुत्र का नाम शल | 'कांबोजाधिपति' (म. आ. १७७.१५ ), एवं 'कांबोज' था (शल ८. देखिये)। .
। (म. स. २४.२२) नाम से किया गया है। महाभारत में सतार--एक शिवावतार, जो वैवस्वत मन्वंतर के दसरे अन्यत्र इसे शक एवं यवन लोगों का राजा कहा गया है युगचक्र में उत्पन्न हुआ था। ध्यानयोग की सहायता से | (म. उ. १९.२१)। इसने मोक्ष प्राप्त किया था। इसके निम्नलिखित चार युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय, अर्जुन ने अपने शिष्य थे :--दुंदुभि, शतरूप, हृषीक एवं केतुमत् ( शिव. पश्चिम दिग्विजय में इसे जीता था (म. स. २४.२२)। शत. ४)।
____ भारतीय युद्ध में यह कौरवों के पक्ष में शामिल था, एवं . २. अनुशाल्व राजा का सेनापति ।
उस पक्ष के उत्कृष्ट रथियों में इसकी गणना की जाती थी . सुतारा--सुप्रभ गंधर्व की कन्या (पा. स्व. २२)। (म. उ. १६३.१)। इस युद्ध में सहदेवपुत्र श्रुतवर्मन् पद्म में अन्यत्र इसे चन्द्रकान्त गंधर्व की कन्या कहा गया | के साथ इसका घमासान युद्ध हुआ था (म. भी. ४३. है ( पद्म. उ. १२८)।
६४)। अन्त में अर्जुन ने इसका एवं इसके छोटे भाई सतीक्ष्ण--एक ऋषि, जो अगस्त्य ऋषि का शिष्य था। का वध किया (म. द्रो.६७-६८; क. ४०.१०५)। इसके ज्ञान एवं कर्म के समुच्चय की शिक्षा अगत्स्य ने इसे दी (यो. मृत शरीर को देख कर इसकी पत्नी ने अत्यधिक विलाप वा. १) । रामकुण्ड पर दीर्घकाल तक तपस्या कर त्रैलोक्य | किया (म. स्त्री. २५.१.५)। में इच्छानुरूप विचरण करने का सामर्थ्य इसने प्राप्त किया सुदक्षिण काशिराज--एक राजा, जो पौड़क वासुथा (स्कंद. ३.१.१८)। राम के वनवासकाल में, वह | देव के साथ कृष्ण का शत्रुत्त्व करनेवाले काशिराज का इसके आश्रम में दो बार आ कर ठहरा था। पुत्र था।
सुतेजन-एक राजा, जो भारतीय युद्ध में युधिष्ठिर इसके पिता का कृष्ण के द्वारा वध किये जाने पर, का सहायक था (म. द्रो. १३२.४०)।
इसने अपने पिता का बदला लेने के लिए कृष्ण का वध सुतीर्थ--कुरुवंशीय सुनीथ राजा का नामान्तर करने की घोर प्रतिज्ञा की, एवं तत्प्रीत्यर्थ वाराणसी क्षेत्र (सुनीथ ५. देखिये)।
में शिव की तपस्या प्रारंभ की। इसकी तपस्या से प्रसन्न सुतेमनस शांडिल्यायन-एक आचार्य, जो अंशु हो कर, शिव ने इसे जारणमारण की अधिष्ठात्री देवी धानंजय्य नामक आचार्य का शिष्य, एवं सुनीथ कापटव दक्षिणानि की आराधना करने का आदेश दिया। नामक आचार्य का गुरु था (वं. बा.१)।
शिव के उपर्युक्त आदेशानुसार, इसने अपने ऋत्विजों सुत्रामन्--रौच्य मन्वन्तर का एक गोत्रकार। के साथ दाक्षिणामि की आराधना प्रारंभ की। इस सत्वन्-एक आचार्य, जो ब्रह्मांड एवं वायु के आराधना के कारण इसके यज्ञकुण्ड से एक महाभयंकर अनुसार, व्यास की सामशिष्य परंपरा में से सुमन्तु नामक | 'अभिचार' अग्नि बाहर निकली, एवं दशदिशाओं को । आचार्य का शिष्य था।
जलाती हुयी द्वारका नगरी में पहुँच गयी । अक्षक्रीड़ा में १०५३