________________
सांवरणि
प्राचीन चरित्रकोश
सात्यकि
सांवरणि-- मनु सांवरणि राजा का पैतृक नाम, जो में से सनत्कुमार का शिष्य था। इसके शिष्यों में पराशर उसे संवरण का पुत्र होने के कारण प्राप्त हुआ था (ऋ. एवं बृहस्पति प्रमुख थे (भा. ३.८.७)। ९.१०१.१०-१२ मनु सावाण देखिये)।
२. शांखायन नामक सुविख्यात वैदिक आचार्य का साकमश्व देवरात--एक आचार्य, जो विश्वामित्र नामान्तर । ऋषि का शिष्य था (सां. आ. १५.१)।
३. एक ऋषि, जो गायत्री नामक सुविख्यात वैदिक सागर--शलि नामक ऋषि का पैतृक नाम । सूक्तद्रष्ट्री का पूर्वज था।
४. वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। सागरक--सागर देश का एक राजा, जो युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में भेंट ले कर उपस्थित हुआ था।
सांग--(स्वा. उत्तान.) हविर्धानपुत्र गय राजा का सागरध्वज--पांड्य देश का एक राजा, जो अस्त्र
नामांतर। विद्या में परशुराम, भीष्म, द्रोण, एवं कृप आदि आचार्यों सांगर-एक शाखाप्रवर्तक आचार्य (पाणिनि देखिये)। का शिष्य था।
सांजीवीपुत्र-एक आचार्य, जो प्राणीपुत्र आसुरइसके पिता एवं भाई का कृष्ण ने युद्ध में वध किया। वासिन् एवं मांडुकाय नि नामक आचार्यों का शिष्य. एवं इस कारण यह कृष्ण से बदला लेने के लिए, द्वारका नगरी प्राचीनयोगीपुत्र नामक आचार्य का गुरु था (बृ. उ. ६. पर आक्रमण करने के लिए प्रवृत्त हुआ। किन्तु उस | ५.४ काण्वः ६.४.३ माध्य.)। शतपथ ब्राह्मण में अविचार से इसके मित्रों ने इसे परावृत्त किया। अन्यत्र इसे माण्डव्य ऋषि का शिष्य कहा गया है (श.
भारतीय युद्ध में यह पांडवों के पक्ष में शामिल था। ब्रा. १०.६.५.९)। इससे प्रतीत होता है कि, यह दो इस के रथ के अश्व चन्द्रकिरणों के समान शुभ्रवर्णीय, एवं आचार्यों की परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता थाः--- वैदूर्यरत्नों की जाली से सुशोभित थे। इसकी सेना में एक १. शांडिल्य की अग्निपूजकपरंपरा, जिसका प्रमख लाख चालीस हजार रथ थे, जिन्हें श्वेतवर्णीय अश्व जोते आचार्य माण्डुकाय नि था; २. याज्ञवल्क्य वाजसनेय की गये थे।
तत्त्वज्ञान विषयक एरंपरा, जिसका प्रमुख आचार्य प्राणीसाग्नि--एक पितर।
पुत्र आसुरवा सिन् था। - सांकाश्य--यमसभा में उपस्थित एक राजर्षि (म.स.
सातकर्णि-(आंध्र. भविष्य.) आंध्रवंशीय शातकर्णि
राजा का नामान्तर | वायु में इसे कृष्ण राजा का पुत्र '८.१०)। सांकृति-एक क्षत्रोपेत ब्राह्मणसमूह, जो सांकृति
कहा गया है। राजा का वंशज था। आगे चल कर, ये आंगिरसगोत्रीय । २. एक आंध्रवंशीय राजा, जो वायु के अनुसार ब्राह्मण बन गये (वायु. ९९.१६४)।
| पुत्रिकषेण राजा का पुत्र था। २. अत्रिवंश में उत्पन्न एक ऋषि, जिसने अपने शिष्यों साति ओष्ट्राक्षि--एक आचार्य, जो सुश्रवस वार्षगण को निर्गुण ब्रह्म का उपदेश प्रदान किया था (म. शां. नामक आचाय का शिष्य, एवं मद्रगार शौंगाय नि नामक २२६.२२)।
आचार्य का गुरु था (वं. बा. १)। उष्ट्राक्ष नामक ३. विश्वामित्र ऋषि की पत्नियों में से एक। आचार्य का वंशज होने के कारण, इसे 'औष्टाक्षि' पैतक सांकृत्य--एक वैयाकरण( तै. प्रा. ८.२१)। नाम प्राप्त हुआ था।
२. एक आचार्य, जो पाराशय नामक आचार्य का गुरु | सात्यकामि--केशिन् नामक आचार्य का पैतृक नाम था (बृ. उ. २.५.२०, ४.५.२६ माध्यं.)। | (ते. सं. २.६.२.३)।
सांख्य--अत्रि नामक वैदिक सूक्तद्रष्टा का पैतृक नाम | सात्यकि (युयुधान)--(सो. वृष्णि.) एक यादव (अत्रि देखिये)।
| राजा, जो कृष्णार्जुनों का अत्यंत प्रिय मित्र था । यह शिनि सांकतीपुत्र-एक आचार्य, जो अलम्बीपुत्र नामक | नामक यादव राजा का पौत्र, एवं सत्यक राजा का पुत्र था आचार्य का शिष्य, एवं शौंगीपुत्र नामक आचार्य का गुरु | (म. आ. २११.११; भा. ९.२४.१४ )। महाभारत में था (श.बा. १४.९.४.३१)।
अन्यत्र इसे शिनि राजा का पुत्र कहा गया है (म. द्रो. सांख्यायन--एक आचार्य, जो भागवत शिष्यपरंपरा | ९७.२७; ५३, ११९.१७ )।
१०३१