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________________ सहदेव प्राचीन चरित्रकोश सांयमनि १५.७; ऐ.वा. ७.३४.९)। ब्राह्मण ग्रंथों में अन्यत्र भी सहस्राद-पुरूरवस्वशीय सहस्त्रजित् राजा का इसका निर्देश प्राप्त है (श. ब्रा. १२.८.२.३)। नामान्तर (सहस्त्रजित् १. देखिये)। कई अभ्यासकों के अनुसार सहदेव साजय एवं सहदेव सहस्रानीक--(सो. पू.) एक पूरवंशीय राजा, वागिर दोनों एक ही व्यक्ति थे । जो शतानीक राजा का पुत्र, एवं अश्वमेधज (अश्वमेधदत्त ) सहदेवा--देवक राजा की एक कन्या, जो वसुदेव की | नामक राजा का पिता था (भा. ९.२२.३९; म. आ. पत्नियों में से एक थी। इसके कुल आठ पुत्र थे, जिनमें | ९०.९५)। इसके द्वारा अश्वमेध यज्ञ किये जाने पर भयासख प्रमुख था (भा. ९.२४.२३)। इसे पुत्रप्राप्ति हुई, जिस कारण इसके पुत्र का नाम 'अश्वसहसात्यपुत्र--एक आचार्य, जो वायु के अनुसार मेधदत्त' रखा गया। व्यास की सामशिष्य परंपरा में से लोकाक्षि नामक आचार्य भागवत एवं महाभारत के अतिरिक्त अन्य पुराणों का शिष्य था। में इसका निर्देश अप्राप्य है, जहाँ शतानीक राजा के . सहसाह-परशुराम का सारथि (म. वि.११.२४२%; पुत्र का नाम असीमकृष्ण दिया गया है। ब्रह्मांड. ३.४६.१४)। सहस्राश्व--(सू. इ.) एक राजा, जो मत्स्य एवं सहस्रचित्त्य--केकय देश का एक राजा, शतायूप पद्म के अनुसार अहिनग राजा का पुत्र, एवं चंद्रावलोक राजा का पितामह था। इसने अपने प्राणों को त्याग कर राजा का पिता था (मत्य. १२.५४)। एक ब्राह्मण की जान बच यी (म, अनु. १३७.२०; शां. सहस्वत्--(सू. इ.) इश्वाकुवंशीय महत्वत्, २६६.३०)। पाठभेद-'सहस्रजित् । । राजा का नामांतर। सहस्रजित्-(सो. पुरूरवस् .) एक राजा, जो सहानंदिन-( शिशु. भविष्य.) मगध देश के भागवत, नत्स्य, वायु एवं पद्म के अनुसार वायु राजा का महानन्दिन् राजा का नामांतर । ब्रह्मांड में इसे नंदिवर्धन ज्येष्ठ पुत्र, एवं शत जित् राजा का पिता था। इसे राजा का पुत्र, एवं महापमा राजा का पिता कहा गया है । 'सहस्त्राद' नामान्तर भी प्राप्त था। (ब्रह्मांड. ३.७४. १३४)। २. कृष्ण एवं जांबवती के पुत्रों में से एक। सहाभोज-(सो. क्रोष्टु.) क्रोष्टुवंशीय महाभोज राजा का नामांतर । वायु में इसे सात्वत राजा का पुत्र कहा ३. केकय राजा सहस्र चित्त्य का नामान्तर (म. शां. गया है। २२६.३१)। सहस्रज्योति-विवस्वत् के पुत्रों में से एक । इसके सहितंडिपुत्र--एक आचार्य, जो वायु के अनुसार व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से लोकाक्षि नामक आचार्य कुल दस लाख पुत्र थे (म. आ. १.४४)। . का शिष्य था। सहस्रधार--वशवर्तिन् देवों में से एक । सहिष्णु--एक शिवावतार, जो वैवस्वत मन्वंतर के सहस्रपाद-एक ऋ.पे, जो शाप के कारण डुण्डुभ | छब्बीसवें युगचक्र में भद्रवटपुर नामक नगरी में अवतीर्ण नामक सर्प हो गया था। इसी सर्पयोनि में रुरु नामक ऋषि हुआ था। इसके निम्नलिखित चार शिष्य थे:- १. उन्लूक; इसका वध करने के लिए प्रवृत्त हुआ था, किन्तु इसने २. विद्यत: ३. शंबूक; ४. आश्वलायन (शिव. शत. ५)। उसे इस पापकर्म से प्रवृत्त किया था ( रुरु देखिये )। २. चाक्षुष मन्वंतर के सप्तर्षियों में से एक, जो पुलह पटों के वनवास काल में यह द्वैतवन में उनके साथ ऋषि एवं गती का पुत्र था। उपस्थित था (म. व. २७.२२)। . ३. स्वायंभुव मन्वंतर का एक ऋषि, जो पुलह ऋषि एवं सहस्त्रमख--पुष्करद्वीप के रावण नामक राक्षस की गती का पत्र था (माके. ५२.२३-२४)। उपाधि ( रावण सहस्रमुख देखिये )। ४. एक गंधर्व, जो अपने अगले जन्म में एक नामक सहस्रवा-(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के शतपत्रों में कंसपक्षीय असुर बन गया था ( बक. १. देखिये)। से एक । पाठभेद- ' सदसुवाक् । __सांयमनि-(सो. कुरु.) सोमदत्तपुत्र शल राजा का सहस्राजित् --(सो. क्रोष्टु.) एक यादव राजा, नामांतर (म. भी. ६१.११)। जो भजमान एवं उपबाह्यका के पुत्रों में से एक था (विष्णु. २. दुर्योधन के पक्ष के शल्य (शल) नामक राजा का ४.१३.२)। | एक पुत्र । धृष्टद्युम्न ने इसका वध किया। १०३०
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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