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सरमा
प्राचीन चरित्रकोश
सान्त
एक बार इसका पुत्र जनमेजय के सर्पसत्र में गया, जहाँ सरूपा-भूत ऋषि की पत्नी, जो रुद्रगणों की माता जनभेजय के बांधवों ने उसे खूब पीटा, एवं यज्ञभूमि से मानी जाती है (भा. ६.६.१७)। भगा दिया। अपने पीटे गये पुत्र के दुःख से अत्यधिक सरूप्य-तुर्वसुवंशीय शख्थ राजा का नामान्तर। दुःखी हो कर, इसने जनमेजय को शाप दिया, 'तुम एवं सरोगय---एक असुरविशेष, जिन्होंने भीमसेन तुम्हारे सर्पसत्र पर अनेकानेक आपत्तियाँ आ गिरेंगी पाण्डव को परास्त किया था ( रकंद. १.२.६६)। (म. आ. ३.१-८)। आगे चल कर इसकी यह शापवाणी सरोजवदना--एक स्त्री, जिसकी कथा भगद्गीता के सही सिद्ध हुई, एवं जनये जय का सर्पसत्र आस्तीक ऋषि दसवें अध्याय का महात्म्य कथन करने के लिए पद्म में के द्वारा बंद किया गया।
दी गयी है। सरमाण-एक सैहि केय असुर, जो हिरण्यकशिपु का । सर्प--ग्यारह रुद्रों में से एक, जो ब्रह्मा का पौत्र, एवं. भतीजा था (मत्स्य. ६.२७)।
। स्थाणु का पुत्र था (म. आ.)। सरय--वीर नामक अग्नि की पत्नी, जिसके पुत्र का २. एक नागजातिविशेष, जिनके राजा का नाम तक्षक नाम सिद्धि था (म. व. २०१.११)।
| था (मत्स्य. ८.७; नाग देखिये )। जमीन पर घसीट कर सरस--सारस्वत नगरी के वीरवर्मन् राजा के पुत्रों।
| चलने के कारण (सरीसृप ) इन्हें सर्प नाम प्राप्त हुआ में से एक (वीरवर्मन् देखिये)।
(मत्स्य. ३८.१०)।
| प्राचीन पौराणिक साहित्य में तीन सुविख्यात सघ-- सरस्वत्--एक राजकुमार, जो पुरूरवस् एवं सरस्वती ।
| सत्रों के निर्देश प्राप्त हैं :- 1. जनमेजय सर्पसत्र, जो के पुत्रों में से एक था। इसके पुत्र का नाम बृहद्रथ था
जनमेजय ने अपने पिता परिक्षित् का वध करनेवाले (ब्रह्म. १०१.९)।
तक्षक नाग का बदला लेने के लिए आयोजित क्रिया . सरस्वती ब्रह्मा की कन्या शतरूपा का नामान्सर।। या (जनमेजय पारिक्षित देखिये); २. मरुत्त का सर्पसत्र, यह स्वायंभूव मनु की पत्नी थी (म. उ. ११५.१४; जो उसने अपनी मातामही के कहने पर आयोजित किया शतरूपा देखिये )। पद्म में इसे ब्रह्मा की पत्नी कहा गया
| था। पश्चात् मरुत्त की माता भामिनी ने मध्यस्थता कर है, एवं इसके 'ज्ञानशक्ति', 'सावित्री' 'गायत्री' एवं
मरुत्त का यह सर्पसत्र स्थगित करवा दिया था । मस्त का . 'वाच' नामान्तर दिये गये है ( पद्म. पा. १०७)।
यह सर्पसत्र संवर्त ऋषि के द्वारा आयोजित किये गये यज्ञ महाभारत में भी इसे 'शतरूपा' का नामान्तर
के पश्चात् आयोजित किया गया था (मार्क. १२६- बताया गया है, एवं इसे दण्ड, नीति आदि शास्त्रों की
१२७; मरुत्त आविक्षित एवं भामिनी देखिये); . तीसरा की कहा कया है (म. शां. १२२.२५)।
सर्पसत्र, 'जो सपों के समृद्धि के लिए किया गया था २. सार्वभौम नामक विष्णु के अवतार की माता (भा. (जनमेजय देखिये)। ८.१३.१७)।
__इनसे उत्पन्न राक्षससग्रह भी 'सर्प' नाम से ही ३. पूरुवंशीय अंतीनार राजा की पत्नी, जिसके पुत्र सविण्यात
जिसक पुत्र सुविख्यात था (ब्रह्मांड. २.३२.१)। का नाम त्रस्नु था (म. आ ९०.२६)।
३. कन्या एवं सुरभि के पुत्रों में से एक। ४. पुरुरवस् राजा की पत्नी, जिसके पुत्र का नाम ४. एक राक्षा, जो ब्रह्मधान के पुत्रों में से एक था सारस्वत था (ब्रह्म. १०१.९)।
(वायु. ६९.१३३)। ५. दधीचि नापि की पत्नी, जिसके पुत्र का नाम
५. अर्बुद काद्रवेय नामक प्रषि का नामान्तर । सारस्वत था (वायु. ६५.९१; सारस्वत देखिये)। ६. आदित्य की पत्नी, जो दनु एवं दिति की माता
सर्पराज्ञी-एक वैदिक सूक्तद्रष्टी, जिसे ऋग्वेद के एक
सूक्त (ऋ. २०.१८९) के प्रणयन का श्रेय दिया गया थी (मत्स्य. १७१.७०)।।। ७. रन्ति राजा की पत्नी (वायु. ९९.१२५)।
| २.२.६.१; ऐ. बा.५.२३.१.२)। इसके नाम के लिए सरिभवि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार।।
'सार्पराज्ञी' पाटभेट प्राप्त है। सरिद्यम वृकक-एक मरुत् , जो मरुतों के पाँचवे सर्पान्त--गरुड की प्रमुख संतानों में से एक (म.उ. गण में समविष्ट था।